Temple Stairs: हम में से ज़्यादातर लोग मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर आराम कर लेते हैं या फिर दोस्तों के साथ गप्पें मारने लगते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्राचीन समय में इन सीढ़ियों, जिन्हें ‘पैड़ी’ कहा जाता है, का एक बहुत गहरा आध्यात्मिक महत्व हुआ करता था?
क्या है पैड़ी पर बैठने की सही विधि
जब भी आप मंदिर में दर्शन करके बाहर निकलें, तो थोड़ी देर के लिए पैड़ी पर ज़रूर बैठें। यहाँ बैठकर आपको एक खास श्लोक का पाठ करना चाहिए।
‘अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि में परमेश्वरम्।’
इस श्लोक का मतलब है, “हे भगवान! हमारी मृत्यु बिना किसी पीड़ा के हो, हमारा जीवन किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े और अंत समय में आपका सान्निध्य मिले।”
क्या नहीं करना चाहिए
इस श्लोक का उद्देश्य हमें सिखाना है कि भगवान से सांसारिक चीज़ों (जैसे घर, गाड़ी, नौकरी) के लिए याचना नहीं करनी चाहिए। ये सब तो वे अपनी कृपा से देते ही हैं। असली प्रार्थना तो अच्छे जीवन और मोक्ष के लिए होनी चाहिए।
दर्शन और ध्यान का सही तरीका
मंदिर के अंदर: भगवान के दर्शन करते वक्त आँखें खुली रखें। उनके स्वरूप, चरणों और श्रृंगार को ध्यान से देखें और आनंद लें। आँखें बंद करके दर्शन करना ठीक नहीं माना जाता।
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मंदिर के बाहर: पैड़ी पर बैठकर आँखें बंद करें और भगवान का ध्यान करें। अगर उनका स्वरूप याद न आए, तो दोबारा दर्शन करके आएं और फिर से बैठकर ध्यान लगाएं।
यह छोटी सी प्रक्रिया हमारे शास्त्रों में बताई गई है, जिसका मकसद हमें असली मानसिक शांति, स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद दिलाना है। अगली बार मंदिर जाएँ, तो इस परंपरा को ज़रूर आज़माएँ।
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