Poem: “ठंढी में ना जरी अलाव”

माह पूस कै बीति जात है, ठिठुरत है अब शहर औ गांव! माघौ में ना आगी मिलिहै, इहै हकीकत जानि तूं जाव! सरकारी कागज में बाऊ, हर चौराहेप जरा अलाव।…

Poetry: हल्ला बोल!

बोल जम्बूरे हल्ला बोल, बोल जम्बूरे हल्ला बोल। पगड़ी जिसकी चाहे खोल, बोल जम्बूरे हल्ला बोल। सेज बिछाकर लोकहितों की, लोकतन्त्र का चीर-हरण कर, कातिल, गुंडे, चोर, लुटेरे, गले लगाकर…