Poem: भटक गए हम राहों में
भटक गए हम राहों में, मंजिल का ठिकाना नहीं था। ले गई जिंदगी उन राहों में, जहां हमें जाना नहीं था। कुछ क़िस्मत की मेहरबानी, कुछ हमारा कसूर था। हमने…
भटक गए हम राहों में, मंजिल का ठिकाना नहीं था। ले गई जिंदगी उन राहों में, जहां हमें जाना नहीं था। कुछ क़िस्मत की मेहरबानी, कुछ हमारा कसूर था। हमने…