रविंद्र प्रसाद मिश्र
लखनऊ: राजनीति में उथल-पुथल का सिलसिला चलता रहता है। लेकिन जब कोई बड़ा परिवर्तन हो तो उसकी चर्चा लाजिमी हो जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिवपाल सिंह यादव की मुलाकात के बाद यूपी की राजनीति में सियासी कयासबाजी तेज हो गई है। कुछ लोग कहा रहे हैं कि चाचा शिवपाल भतीजे अखिलेश यादव को झटका देने की तैयारी में हैं, तो कुछ राजनीतिक राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वह जल्द सपा का दामन छोड़ सकते हैं, तो वहीं कुछ लोगों का मानना है कि शिवपाल सिंह यादव अपना और अपने बेटे आदित्य की राजनीतिक कॅरियर बनाने में जुट गए हैं, इसलिए वह जल्द बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। ऐसे में यहां डॉ. राम मनोहर लोहिया के उस कथन का जिक्र करना लाजिमी हो जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जिन्दा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं।
गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी की कभी नींव की ईंट रहे शिवपाल सिंह यादव को भतीजे अखिलेश यादव ने वर्ष 2017 चुनाव से पहले ही निकाल दिया था। तब से शिवपाल सिंह यादव को सपा से तिरस्कार, अपमान के सिवाए कुछ हासिल नहीं हुआ है। करीब 6 वर्ष पहले अखिलेश यादव ने न सिर्फ शिवपाल सिंह यादव को पार्टी से बाहर कर दिया, बल्कि पिता मुलायम सिंह यादव से जबरन पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की कमान अपने हाथ में ले लिया। नतीजा रहा कि सपा को न सिर्फ वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा, बल्कि वर्ष 2022 में सपा के पक्ष में मजबूत लहर के बावजूद भी सत्ता में वापसी करने से रह गई।
बात करें पार्टी में योगदान की तो अखिलेश के पास मुलायम सिंह यादव का बेटा होने के सिवाय कोई खास उपलब्धि नहीं है। वह वर्ष 2014 में मुख्यमंत्री बने तो वह पिता मुलायम सिंह यादव की वजह से। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार भाई शिवपाल सिंह यादव के साथ दगा करते हुए बेटे अखिलेश यादव को प्रदेश की कमान सौंप कर जो गलती की उसका खामियाजा वर्ष 2016 में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद गंवाकर भुगतना पड़ा।
इस बीच कई बार अखिलेश यादव की तरफ से मुलायम सिंह यादव को बंधक बनाए जाने की खबरें भी आईं, लेकिन इसकी सच्चाई की कोई प्रमाणिकता नहीं है। हालांकि पुत्र मोह में फंसे मुलायम सिंह यादव ने कभी भी सार्वजनिक मंच से अखिलेश यादव के खिलाफ नहीं गए। वह जब भी मंच पर आए तो अखिलेश यादव की तारीफ ही की। यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान करहल में बेटे अखिलेश यादव के पक्ष में प्रचार करने वह करहल भी गए थे। मुलायम सिंह यादव की याददाश्त इतनी कमजोर हो चुकी है कि करहल में वह किसके लिए वोट मांगने गए थे, मंच पर वही भूल गए। लेकिन यह पुत्रमोह और सत्ता की लालच ही थी कि ऐसी स्थिति में उन्होंने प्रचार किया।
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इतना ही नहीं चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी की हार के बावजूद वह कार्यालय पहुंच कर अखिलेश यादव के प्रदर्शन की जमकर तारीफ भी की। लेकिन इन सबके बीच शिवपाल यादव कही नजर नहीं आए। जबकि वर्ष 2016 में समर्थकों के साथ सपा से हटाए जाने के बाद उन्होंने अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली। उन्होंने दावा किया था कि मुलायम सिंह यादव की सहमति से उन्होंने पार्टी का गठन किया है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा।
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने सियासी चाल चलते हुए चुनाव की तैयारी में जुटे चाचा शिवपाल से मिलकर साथ लड़ने के लिए राजी कर लिया। सपा और परिवार के मोह में आकर शिवपाल सिंह यादव अखिलेश के साथ तो आ गए, लेकिन इस बार भी उन्हें अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ा। अखिलेश यादव ने शिवपाल की तरफ से सौंपी गई प्रत्याशियों की सूची को खारिज करके केवल उन्हें जसवंत नगर सीट से सपा के टिकट से प्रत्याशी बनाया।
चुनाव परिणाम आने के बाद शिवपाल सिंह यादव एकबार फिर अज्ञात वास में चले गए। आलम यह रहा कि पार्टी विधायक दल की बैठक में सपा की तरफ से शिवपाल सिंह यादव को बुलाया ही नहीं गया। इससे आहत होकर शिवपाल सिंह यादव ने मीडिया को बताया कि उन्हें पार्टी विधायक दल की बैठक में शामिल होने का इंतजार था। बता दें कि शिवपाल सिंह यादव 7 मार्च तक भतीजे अखिलेश यादव को फिर से मुख्यमंत्री बनाने का दावा कर रहे थे। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो शिवपाल सिंह यादव अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने के लिए बीजेपी में शामिल होने के सिवाए कोई और रास्ता नहीं बचा है। क्योंकि यूपी विधानसभा चुनाव के समय सपा से हाथ मिलाकर उन्होंने अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के साथ जुड़े नेताओं के साथ जो धोखा किया है, वह बेहद शर्मनाक है।
गत पांच वर्षों से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे नेताओं के मंसूबे पर चुनाव के दौरान अचानक पानी फिर जाने से शिवपाल के समर्थकों में काफी आक्रोश है। शिवपाल सिंह यादव के सामने अब अपने राजनीतिक कॅरियर के साथ बेटे आदित्य यादव को पदास्थापित करने की चुनौती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ शिवपाल की मुलाकात के बाद सोशल मीडिया में कई तरह की खबरें प्रसारित हो रही हैं। इसमें बताया जा रहा है कि शिवपाल सिंह यादव बीजेपी से राज्यसभा जा सकते हैं और बेटे आदित्य यादव को एमएलसी बनवा सकते हैं। फिलहाल राजनीतिक कयासबाजी का कोई आधार नहीं होता। यह देखना दिलचस्प होगा कि शिवपाल सिंह यादव भगवा रंग रहते हैं या अभी भी उन्हें सपा से उम्मीद नजर आ रही है।
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