Varanasi: भारतीय संस्कृति (Bhartiya Sanskriti) हमेशा से महापुरुषों को जन्म देती आई है। इसी संस्कृति के कारण महिलाओं ने श्रेष्ठ पुरुषों को जन्म दिया। सनातन संस्कृति (Sanatan Sansad) चिरंतन और अनन्त है। यह विचार समापन समारोह के मुख्य अतिथि सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में शुक्रवार को आयोजित संस्कृति संसद (Sanskriti Sansad) के समापन सत्र में व्यक्त किया। संस्कृति संसद (Sanskriti Sansad) का आयोजन गंगा महासभा द्वारा किया गया है। यह आयोजन अखिल भारतीय सन्त समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, श्रीकाशी विद्वत परिषद् के सहयोग से आयोजित है।
उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति (Sanskriti Sansad) में पर्यावरण और नारी का सम्मान है। सनातन संस्कृति में विकृति के तत्व गुलामी के कारण हैं। उन्होंने कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला आरक्षण अधिनियम नारी शक्ति वंदन की परम्परा को आगे बढ़ाया। हमारे देश में नारियों का सम्मान सदा से रहा है और उस गौरव को प्रधानमंत्री ने फिर से आगे बढ़ाया। भारत में नारियों की पूजा सदा से होती रही है और आज भी है, यही सनातन संस्कृति का मूल तत्व है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल तत्व मानव धर्म है। संस्कार, पर्व एवं संस्कृतियों का विस्तार भारत में हुआ।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महंत रविन्द्रपुरी ने कहा कि काशी मुक्ति की नगरी है। तथा यह तीनों लोकों से न्यारी है। इसका विनाश कभी नहीं होता। ऐसी नगरी में आयोजित यह सांस्कृतिक संगम निश्चित ही दुनिया को राह दिखाएगा। इस आयोजन से संतों का जागरण हुआ और संत पूरे सनातन समाज का जागरण करेंगे। अखिल भारतीय सन्त समिति के अध्यक्ष आचार्य अविचल देवाचार्य जी ने सांस्कृतिक संगम में आए देश के 127 पंथों, 13 अखाड़ों के डेढ़ हजार संतों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यहां का संदेश सनातन धर्म की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण होगा। यह पहली बार हो सका कि काशी में देश के उत्तर एवं दक्षिण के संत एक साथ सम्मिलित हुए। पहली बार इतनी बड़ी संख्या में दक्षिण भारत के संतों का समागम हो सका। संस्कृति संसद का संदेश निश्चित ही यह भावी भारत में सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।
प्रो. गिरिशचंद्र त्रिपाठी ने कहा कि सनातन संस्कृति परमात्मा द्वारा निर्मित है और इसने दुनिया को दिशा दिखाई। समापन समारोह में मंच पर काशी विद्वत परिषद के प्रो. रामनाराण द्विवेदी, संस्कृति संसद के संयोजक गोविंद शर्मा, गंगा महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो. ओमप्रकाश सिंह, दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक भारतीय बसंत, विश्व हिन्दू परिषद के दिनेश, विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मंत्री अशोक तिवारी, आयोजन समिति के अध्यक्ष विधायक कैलाश खरवार, आयोजन समिति के सचिव सिद्धार्थ सिंह एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति गिरिशचंद्र त्रिपाठी उपस्थित थे। समापन समारोह का प्रारम्भ अतिथियों के माल्यार्पण से हुआ। अतिथियों का स्वागत गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन गोविन्द शर्मा ने किया। समारोह का समापन राष्ट्रगान से हुआ। इस समारोह का संचालन गंगा महासभा एवं अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती ने किया।
केरल में मठ एवं सन्त संकट में: स्वामी प्रभाकरानन्द सरस्वती
राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के सांस्कृतिक सूत्र, ढाई मोर्चों के युद्ध पर भारत और कट्टरपंथ के बढ़ते प्रभाव से आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ विषयक सत्र को सम्बोधित करते हुए अखिल भारतीय सन्त समिति कर्नाटक प्रान्त के अध्यक्ष स्वामी विद्यानन्द सरस्वती ने कहा कि दक्षिण भारत में सन्तों और मठों की स्थिति चिंताजनक है। सबसे कठिन स्थिति केरल में है, जहां कार्य करना कठिन है। कुछ क्षेत्रों में सन्तों को चुप होकर जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि केरल की कम्युनिस्ट सरकार के कारण वहां के लगभग 500 शेष बचे सन्तों का जीवन कठिनाई पूर्ण हैं और उन्हें निरंतर चुनौतियां मिल रही हैं। अखिल भारतीय सन्त समिति के राष्ट्रीय संगठन मंत्री एवं केरल के सन्त स्वामी प्रभाकरानन्द सरस्वती ने कहा कि वर्तमान सरकार में स्थितियां चुनौतीपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि केरल में कुछ ऐसे मठ हैं, जहां की आवश्यक सुविधाएं भी नहीं हैं, फिर भी सन्त कठिनाई का सामना करते हुए निरंतर कार्य कर रहे हैं।
स्वामी प्रभाकरानंद सरस्वती ने कहा कि इस विषम परिस्थिति से उबरने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर संतों द्वारा मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। यद्यपि केरल में हिन्दू बहुसंख्यक है फिर भी सनातन चेतना उसमें नहीं होने से धर्म-विस्तार में कठिनाई है। पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने कहा कि ढाई मोर्चे का युद्ध सिर्फ भारत नही लड़ रहा है। हर दुश्मन ढ़ाई मोर्चे के युद्ध लड़ रहा है। आज ढ़ाई मोर्चे पर युद्ध लड़ने में हम इसलिए सक्षम है क्योंकि इस देश में स्थिर सरकार है। ढाई में जो आधा मोर्चा है उसका ज्यादा हिस्सा देश के विश्वविद्यालयों में खुला हुआ है। भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाने वाले लोग उस आधे मोर्चे के हिस्सा हैं। उन्होंने आगे कहा कि हम किसी विशेष वर्ग या पार्टी की बात नही कर रहे हैं। परन्तु भारत तेरे टुकड़े होंगे का ख्वाब देखने वाले लोग देश के दुश्मन हैं। आगे उन्होंने पूर्व राज्यसभा सांसद और कांग्रेस के मंत्री हुसैन दलवई के पुत्री समीना दलवई का जिक्र करते हुए कहा कि जिंदल विश्वविद्यालय में उन्होंने हमास के समर्थन में कार्यक्रम करवाया। उनको राष्ट्रवाद से दिक्कत है उन्हें जय श्रीराम से समस्या है। आने वाले अगले चुनाव को लेकर उन्होंने सावधान करते हुए कहा कि 2024 चुनाव से पहले देश के विश्वविद्यालयों में अस्थिरता उत्पन्न करने की कोशिश की जाएगी इसलिए आपलोगों को बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है।
इस सत्र के बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए डॉ. अशोक बेहुरिया ने कट्टरवादिता पर कहा कि कट्टरपंथ के बढ़ते प्रभाव से आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां हमारे समक्ष खड़ी हो गई है। अंतरिक्ष सुरक्षा में केवल पुलिस या लॉ एंड ऑर्डर और फोर्समेंट विकृत श्रृंखला ही शामिल नहीं है। कहां जाता है कि हमारे देश में जो सुरक्षा की परिभाषा है वो बहुत विस्तृत और खर्चीला है। पूरे विश्व में जो आंतरिक सुरक्षा है, वो सबसे ज्यादा गंभीर समस्या हैं। पुरे विश्व में पिछले साल चार लाख 48 हजार, नर हत्याएं हुई और उनमे से 65 हजार आंतरिक सुरक्षा से सम्बंधित लोगो की हत्याएं हुई हैं। काफी सारे संदर्भ लिखे जाते हैं बाहर के देशों में, इसलिए हमें अपने आंतरिक सुरक्षा से संगठित हत्या पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। हमारे देश में साठ लाख लोग आंतरिक सुरक्षा के लिए नियुक्त हैं और हमारे यहां जो खर्चा होता है उसका जीडीपी का अंश बढ़ा नहीं है। देखा जाए तो आंतरिक सुरक्षा की समस्या जैसे का तैसे बना हुआ है।
गौरव प्रधान ने कहा कि यह संस्कृति संसद मेरे जीवन के बहुमूल्य समय में से एक है। मैं चाहता हूं कि पूरे भारतवर्ष में ऐसे कार्यक्रम का आयोजन निरंतर किया जाना चाहिए। अभी हम बात करें वर्तमान परिदृश्य की तो हमें अनेक चुनौतियां का सामना करना होगा। खासकर हमें अपने युवा पीढ़ी पर ध्यान देने की जरूरत है। उनको उनके संस्कृति और सभ्यता के बारे में बताने की आवश्यकता है। क्योंकि सनातन शाश्वत है, सनातन सरल है। सनातन का अर्थ श्रद्धा है। लेकिन चिंता का विषय यह है कि आजकल कुछ लोग सनातन को व्यापार समझ रहे हैं। हमें ऐसे लोगों को चिन्हित कर उनके उपर लगाम लगाने की जरुरत है। हमें युवा पीढ़ी को रामायण, महाभारत के बारे में बताने की जरुरत है। क्योंकि ये सभी हमें धैर्य, पराक्रम और कर्तव्य के बारे में बताते हैं।
सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में पद्मश्री चंद्रशेखर ने कहा कि हम सभी आज इस संस्कृति संसद के माध्यम से जुड़े हुए हैं यह हमारे लिए गौरव का विषय है। हमारी हार्दिक इच्छा है कि ऐसे आयोजन हर बार किया जाना चाहिए। संत समाज के आह्वान पर ही सनातन धर्म युवा पीढ़ी को एक नई दिशा दे सकता है। साथ ही मैं धन्यवाद देता हूं इस देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को जो इस क्षेत्र में विशेष ध्यान दें रहे हैं। साथ ही साथ उन्होंने पर्यावरण एवं जीव- जन्तु संरक्षण करने के लिए लोगों से निवेदन किया। इस कार्यक्रम का संचालन सीपी सिंह ने किया।
सनातन हिन्दुओं को नहीं मिल रहा उनका अधिकार: स्वामी विद्यानंद महाराज
इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए स्वामी विद्यानंद महाराज ने कहा कि संस्कृति संसद एक ऐतिहासिक और सुनहरा पल, सनातन हिंदू समाज के लिए दर्ज कर रहा है। इस संसद ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक सभी को एक तार में जोड़ दिया है। हमारा संविधान धर्मनिरपेक्षता की बात करता है। हर धर्म, हर पंथ के लोगो का सम्मान हो, ये सोच सनातन धर्म का दिया हुआ एक उपहार है। आज हम सभी सनातन हिंदुओ को हमारा अधिकार नही मिल रहा है। आज हम इससे पीड़ित हैं। हमने ये भगवा रंग केवल वस्त्र के रूप में ऊपर से ही नहीं बल्कि इस भगवा रंग को हमने आंतरिक रूप से भी धारण किया है और मुसलमान समुदाय, 2047 तक, हिंदुस्तान को एक मुस्लिम राष्ट्र बनाने की बात करता है। इसके लिए वो हमारे युवा पीढ़ी के मन, के साथ खेल रहा है। उन्हें हमारे धर्म के विरुद्ध करने की कोशिश करता है। हमारी संस्कृति और सभ्यता के प्रति गलत धारणा बनाने की कोशिश कर रहा है। वे गैर हिन्दू समाज, हमारी बहू-बेटियों को निशाने पर रख कर, उनके साथ झूठे प्यार का छलावा कर धर्मांतरण कर रहे हैं। इसलिए लिए हमारे हिंदू कार्यकर्ताओं को तैयार रहना होगा। हमे अपने युवा पीढ़ी को जागरूक करना होगा उन्हें सही दिशा दिखानी होगी।
प्रो. सीपी सिंह ने कहा कि अक्सर स्थाई और अस्थाई सत्ता संस्थान में नाभिनाल संबंध होता है जो भारत में भी लगभग 150 सालों से चला आ रहा था लेकिन 2014 के चुनाव के बाद आई मोदी सरकार और स्थाई सत्ता संस्थान में टकराव शुरू हो गया जो अबतक जारी है। इसी का परिणाम है धारा 370 की धार कुन्द किया जाना, धारा 35 की विदाई, बालाकोट स्ट्राइक, फटाफट तीन तलाक के खिलाफ कानून, राममंदिर की एकमुश्त सुनवाई, नोटबंदी, जीएसटी। ये जो भारत का वर्तमान स्थाई सत्ता संस्थान है यह अंग्रेजों और उनकी अनुगामी पार्टियों (कांग्रेस, कम्युनिस्ट आदि) द्वारा पोषित रहा है जिसने बहुमत पर अल्पमत का शासन कायम रखा जिस कारण कालान्तर में बहुसंख्यक उस मानसिकता के शिकार हो गए जिससे इस्लामी देशों के अल्पसंख्यक पीड़ित हैं। इसे अल्पसंख्यक सिंड्रोम कहते हैं।
मतलब भारत का बहुसंख्यक लोकतंत्र में रहते हुए भी अल्पसंख्यकों की पीड़ित मानसिकता का शिकार हो गया क्योंकि न सिर्फ उसे अल्पसंख्यकों से कम अधिकार दिए गए बल्कि उसकी सबसे बड़ी ताकत समावेशिता को उसकी कमजोरी के रूप में पेश कर उसे हीन भावना से भर दिया गया। ऐसा करने में अखबार, रेडियो, टीवी, स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय सभी को लगा दिया गया जिस कारण देश का बहुसंख्यक अपनी सच्ची बात कहने में भी संकोच करने लगा। मसलन पर्दा प्रथा और घूँघट पर्याय हो गए लेकिन बुर्का पर ठीक से चर्चा नहीं हुई, दहेज प्रथा सरेआम हो गया लेकिन फटाफट तीन तलाक और हलाला को विमर्श से गायब कर दिया गया। बड़े मंदिरों पर सरकारी कब्जा कायम रहा लेकिन चर्च और मस्जिदें क्रमशः ईसाई और मुसलमानों के पास रहीं। पूजापाठ कम्युनल हो गया और नमाज सेकुलर। औरंगजेब जिंदा पीर हो गया और शिवाजी तथा गुरु गोविंद सिंह लुटेरे हो गए। संचालन श्री धर्मचन्द्र पोद्दार ने किया।
मार्क्सवादी की रचनाओं में नहीं है वेद और गीता का उल्लेख
इस सत्र में आचार्य विनय झा ने कहा कि मार्क्सवादियों की रचनाओं में वेद और गीता का उल्लेख नहीं मिलेगा। वह गलत ढंग से शास्त्रार्थ करते हैं। विश्व में इस समय दो ही तरह के लोग हैं, एक हैं सनातनी और दूसरे सनातन के विरोधी। मार्क्सवादियों ने मनमानी और गलत इतिहास लिखा है। इसी तरह उन्होंने सनातन की खिल्ली उड़ाई है। ओम जी उपाध्याय ने कहा कि कम्यूनिस्ट विचारधारा लगातार काम हो रही है खत्म हो रही है। कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रीय एकता व अखंडता को छिन्ह भिन्न किया है लेकिन सनातन फिर दुनिया को लीड करेगा। सत्र का संचालन नवीन तिवारी ने किया।
संस्कृति के अनुरूप हो शिक्षा: हरिहर कृपालु त्रिपाठी
भारत के प्रत्येक समुदाय को शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों को चलाने का हो समान अधिकार विषयक सत्र के अध्यक्ष पद्मश्री आचार्य हरिहर कृपाल त्रिपाठी ने कहा कि भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे, संस्कृतम् संस्कृति प्रतिष्ठा। संस्कृत और संस्कृति, भारत में इससे ज्यादा प्रतिष्ठित कोई नही। भारत संस्कृति में जीता है। संस्कृति और संस्कार केवल भारत में ही है। रूस, जापान, जैसे जगहों पर कोई संस्कृति नही बल्कि वहां सभ्यता है। जहां आचार्य देवो भाव, मातृ-पितृ पूजन, संकृति ही ना हो, वहां संस्कृति है, ऐसा कह ही नही सकते। हम सनातनी, राष्ट्र के लिए जीते हैं। अपने राष्ट्र के लिए जागते और सोते हैं। हम अपने माता पिता, संतो के चरणों में सिर झुकाते हैं। इसे ही संस्कृति कहते है। आज संस्कृति संसद से हमे संकल्प लेना होगा।
भारत की सांस्कृतिक राजधानी से एक संदेश जाना चाहिए की हर गांव में, घर-घर में देव मंदिर होना चाहिए। उन्होंने आगे, हो रहे धर्मपरिवर्तन को लेकर कहा कि आज धर्म परिवर्तन का जो ये खेल चल रहा है, उसे कोई भी धर्मावलंबी स्वीकार नहीं करेगा। हमारी संस्कृति को नष्ट करने वालो को कभी स्वीकार नहीं करेगा। क्योंकि वर्तमान परिपेक्ष्य में बात करे तो हमारे समाज में कुछ ऐसे तथाकथित लोग हैं, जो आज हमारे भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को खत्म करना चाहते हैं। उनका अपना कोई धर्म ही नहीं, वे किसी मजहब या पंथ को मानते है। जो विधर्मी संस्कृति विहीन हैं, उनका नाश अवश्य होगा। उन्होंने आगे, भारत सरकार से आह्वान करते हुए सनातन धर्म के पुनरुत्थान के लिए कुछ मांग लोगों के बीच रखा। उन्होंने कहा कि मेरा ये कहना है कि गंगा नदी को देवनदी घोषित किया जाए, भागवत गीता को देवग्रंथ, और गौ माता को देव प्राणी घोषित किया जाए।
इस कड़ी में अगले वक्ता के रूप में विनय कुमार पाण्डेय कहा कि आज हम ऐसे संस्कृति संसद में उपस्थित हैं जो समाज को एक नई दिशा और दशा देने का काम कर रही है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि वर्तमान समय में सनातन पर कुछ विकृतियां, तथाकथित लोगों के द्वारा फैलाई जा रही है। हमें खंडित करने की कोशिश किया जा रहा है। जिसपर हमें चिंतन करने की बहुत आवश्यकता है। हमें अपने खोई हुई विरासत अपना मान-सम्मान अपने धरोहर को बचाए रखना है। क्योंकि सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है, जो सिर्फ अपना कल्याण नहीं बल्कि विश्व कल्याण की बात करता है। वो सनातन धर्म ही हैं जो वसुधैव कुटुम्बकम् की बात करता है। इसलिए भी हमें अपने संस्कृति एवं सभ्यता को बचाए रखना है। आगे हमे युवा पीढ़ी के अंदर एक नई एवं सकारात्मक उर्जा का संचार करना होगा ताकि आगे आने वाले समय में हम अपने धर्म और संस्कृति को और भी मजबूत बना सकें।
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अगले वक्ता के रूप में प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा कि जिस तरह से सम्प्रदाय विशेष को स्वतंत्रता दिया गया है उसी तरह सभी संप्रदायों को मिलना चाहिए।क्योंकि भारतीय संस्कृति एक समुद्र है जिसमे सबकुछ समाहित हो जाता है।भारतीय संस्कृति सभी संप्रदायों के मूल तत्व को लेकर खुद में संजोती गयी। उन्होंने आगे एक अदालत की टिप्पणी के बारे में बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने एक बार कहा था कि अनादि काल से ज्ञान की विरासत भारतीय दर्शन में निहित है। भारतीय संस्कृति में पूरे विश्व के जीवों को उद्धार करने की परंपरा है। पहले धर्म को पुरुषार्थ माना गया परन्तु जीवन को उन्नत बनाने के लिए चिंतन के बाद मोक्ष को पुरुषार्थ बताया। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति सभी को समान रूप से देखती है। इसलिए हम सभी को विभिन्न पहलुओं पर विमर्श करके हर समस्या का हल निकालना चाहिए। इस कार्यक्रम का संचालन प्रो. राम नारायण द्विवेदी ने किया। संचालन प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने किया।
‘मोदीजी के सपनों का भारत’ पुस्तक का लोकार्पण
उक्त पुस्तक का लोकार्पण मंचासीन अतिथियों ने किया। इस पुस्तक में लेखक ने प्रधानमंत्री मोदीजी की वर्तमान एवं भावी आर्थिक राजनीतिक व्यवस्था के सम्बंध में एक रेखांकन प्रस्तुत किया है, जो समाज के लिए उपयोगी है। पुस्तक का लोकार्पण महंत रविन्द्रपुरी महाराज ने किया। पुस्तक की लेखिका प्रज्ञा मिश्रा हैं।
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