Narendra Bhadoria
नरेन्द्र भदौरिया

स्वामी सुधाकर जी दयालु प्रकृति के स्थित प्रज्ञ साधु हैं। वह अब 82 वर्ष के हो चुके हैं। निष्प्रह भाव से विचरण करते रहते हैं। उनकी साधुता और निर्मल चितवृत्ति सहज आकर्षित करती है। कई वर्ष भारत के तीर्थों में विचरण करते रहे। कहते हैं कि भारत के प्रत्येक भाग की रज माथे पर धारण करने से जो सुख मिलता है वह स्वर्ग में भी दुर्लभ होगा। ऐसे साधु से मेरा सम्बन्ध कई वर्षों का है। पहले वह शिक्षक और एक गृहस्थ थे। तब भी एक तपस्वी सा जीवन जिया। सहायता प्राप्त विद्यालय के प्राचार्य बने। इस पद पर उनका कार्यकाल मात्र पाँच वर्ष का रहा। पहले ही वर्ष प्रबन्ध तन्त्र से खटपट हो गयी। वेतन आहरित किये जाने में बाधा खड़ी की गयी। तद्यपि वह शान्तचित रह कर सक्रिय बने रहे। तीन वर्ष बड़े कष्ट में बिताये। अवकाश ग्रहण करने के ढाई वर्ष बाद उनका रुका हुआ धन मिला। यह भी तब सम्भव हुआ जब प्रबन्ध तन्त्र में बदलाव हुआ।

सेवा निवृत्ति के बाद सुधाकर जी ने वैरागी जीवन स्वीकार कर लिया। साधु वेष में रहने लगे। अपनी आवश्यकताओं को दीर्घ अवधि से सीमित कर रखा था। इसीलिए जीवन की नयी पारी उनके लिए सुगम रही। गंगा के पावन तट पर प्रतिदिन विचरण करते उनका अधिकांश समय बीतता है। कुछ समय के लिए उन्होंने कन्नौज और बिठूर के बीच दूसरे साधुओं की एक कुटिया में रात्रि का समय बिताते रहे। फिर निश्चय किया कि किसी वृक्ष अथवा गंगा तट पर बने निर्जन मन्दिर में रात्रि विश्राम किया करेंगे। उनके परिवार के सदस्य रायबरेली जिले के रहने वाले हैं। गांव गंगा के किनारे है। मतदान को छोड़कर अन्य किसी राजनीतिक गतिविधि में कभी भाग नहीं लिया। 2024 के चुनाव में उन्होंने राहुल गांधी के पक्ष में मतदान किया। सुधाकर जी से दो दिन पहले भेंट हुई।

स्वामी सुधाकर श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों की व्याख्या बड़े मार्मिक ढंग से करते हैं। वह स्वयं दावा नहीं करते फिर भी मुझे प्रतीति होती है कि मानस के सम्पूर्ण काण्ड उन्हें क्रमबद्ध रूप से कण्ठस्थ हैं। भेंट के समय अन्य चर्चाओं के बाद स्वामी सुधाकर ने कहा कि मेरा मन इन दिनों बहुत व्यथित रहता है। कारण स्पष्ट करते हुए कहा कि लोकसभा में राहुल गांधी के मुख से हिन्दु समाज और संस्कृति के प्रति जैसे ही बिगड़े बोल सुने मैं विलख कर रो पड़ा। मुझे लगता है कि यह व्यक्ति किसी बड़े षडयन्त्र का हिस्सा बन चुका है। भारतीय संस्कृति की आलोचना बहुत लोग कर चुके हैं। राहुल ने पूरे समाज को हिंसक कह कर बड़ा घाव दिया है। निश्चित रूप से समय चक्र उन्हें इसका दण्ड देगा।

स्वामी जी ने उस दिन अपनी अश्रुधारा को रोकने का प्रयत्न नहीं किया। एक चौपाई का उल्लेख करते हुए जो कुछ कहा वह सामान्य प्रतिक्रिया नहीं है। इस चौपाई में गोस्वामी ने अभिमत व्यक्त किया है कि जिसकी बुद्धि में विकार उत्पन्न हो जाता है वह मूढ़ लोगों की संगति में पड़ जाता है। उसे कुमन्त्र देने वाले मिल जाते हैं। इसके कारण उसकी मति कुमति में बदल जाती है। ऐसे व्यक्ति हृदयहीन हो जाते हैं। उनके बाह्य चक्षु विकार खोजते रह जाते हैं। सार तत्व नहीं दिखता। हृदय का शील सूख जाता है। ऐसी धारणाएं मन में उपजने लगती हैं जो सर्वनाश की ओर ले जाती हैं। मेरा मानना है कि जो हुआ है और जो होने वाला है वह सब अत्यन्त पीड़ा प्रदान करने वाला सिद्ध होगा। स्वामी जी ने उपरोक्त भाव व्यक्त करने के लिए जो चौपाई सुनायी वह प्रस्तुत है-

जब तैं कुमति कुमत जियं ठयऊ, खण्ड खण्ड होई हृदय न गयऊ।।

एक अन्य चौपाई श्रीराम जी के जीवन की सर्वोच्चता को प्रकट करती है। जिसमें गोस्वामी जी ने कहा है कि श्रीराम के समान आदर्शों वाला सृष्टि में कोई नहीं जन्मा। गोस्वामी जी तो यहाँ तक कहते हैं कि श्रीराम के समान जीवन वाला व्यक्ति न तो पहले हुआ है न भविष्य में कभी जन्मने वाला है-

इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं। है नहिं कतहूँ होनेउ नाहीं॥

स्वामी सुधाकर ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास मानव चित के बहुत सफल चितेरे थे। उन्होंने एक और चौपाई में स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रभुता पाने पर सभी बौरा जाते हैं। ऐसे लोग नहीं मिलते जो प्रभुता से उपजे मद के संयत रह सकें। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके आँसू क्यों नहीं थम रहे। इतने बौने व्यक्ति को अपना मत देकर मैंने बड़ा पाप किया है। यह कहना निरर्थक है कि बिना विचारे ऐसी बात राहुल के मुख से निकल गयी होगी। एक ओर वह भारत जैसे सांस्कृतिक राष्ट्र का सर्वोच्च पद प्राप्त करने की अभिलाषा लेकर जी रहे हैं तो दूसरी ओर इस देश की सर्वोत्तम पहचान आध्यात्मिकता को अपने व्यंग्य बाणों से आहत कर रहे हैं। यदि चूक की बात मान ली जाय तो फिर अयोध्या के सन्दर्भ में उनकी प्रतिक्रिया अक्षम्य है। उनके द्वारा सुनायी गयी चौपाई इस प्रकार है-

अस को जीव जन्तु जग माहीं। जेहि रधुनाथ प्रान प्रिय नाहीं।।

स्वामी सुधाकर कहते हैं कि अयोध्या से जिस व्यक्ति ने चुनाव जीता है, वह भी हिन्दु है। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के लिए साढ़े सात लाख से अधिक हिन्दुओं ने प्राणोत्सर्ग किया था। जिस समाज से अवधेश प्रसाद सम्बन्ध रखते हैं उस पावन भूमि के लिए उनके महान पूर्वजों ने बड़ा बलिदान किया था। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि भाजपा के विरुद्ध विजयी प्रत्याशी श्रीराम और हिन्दुत्व के प्रति द्रोह से भरा हुआ है।

उन्होंने कहा कि मानस की इस चौपाई में कही गयी बात को कोई चुनौती नहीं दे सकता। सनातन हिन्दु संस्कृति से इतर सभ्यताओं और मान्यताओं के विद्वानों ने भी माना है कि श्रीराम का जीवन पूरी मानवता के लिए एक आचार संहिता है। चुनावी हार-जीत के दायरे में श्रीराम के जीवन को तौलना मूढ़ता नहीं तो और क्या है। उन्होंने उल्लेख किया कि राहुल गांधी ने वक्तव्य दिया कि फैजाबाद (अयोध्या) की लोकसभा सीट पर भाजपा के प्रत्याशी को हराकर उन्होंने वस्तुत: श्रीराम से जुड़ी आस्था को हराया है।

शिवजी जानते थे कि अनर्थ होने वाला है

स्वामी सुधाकर मानते हैं कि प्रभुता का मद विनाशकारी होता है। दक्ष को जब ब्रह्मा जी ने प्रभुता प्रदान की तो वह अहंकार के वशीभूत हो गया। उसने साक्षात शिव से वैर ले लिया। उनका अनादर करने की योजना बना डाली। यज्ञ के विराट आयोजन में जानबूझ कर बेटी सती और जामाता शिव को आमन्त्रण नहीं भेजा। सती जी को आभास नहीं था कि पिता दक्ष उन्हें और उनके स्वामी को अपमानित करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। वह कैलाश से अकेले ही चल पड़ीं। शिवजी जानते थे कि अनर्थ होने वाला है। पर सती को सहज समझाने के अतिरिक्त तनिक भी हठ नहीं किया। मानसकार गोस्वामी तुलसीदास की लिखी पंक्तियां उन्होंने बड़े भाव से सुनायीं।

बड़ अधिकार दक्ष जब पावा, अति अभिमानु ह्दय तब आवा।
नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं।।

स्वार्थों को लेकर टकराहट नयी बात नहीं

भारत के राजनीतिक परिदृश्य में स्वार्थों को लेकर टकराहट कोई नयी बात नहीं है। किन्तु ऐसे स्वार्थों के लिए भारतीय संस्कृति को कटुता के भाव से अपमानित करने की ऐसी घटनाएं इसके पहले नहीं हुईं। भारत में मान्यताओं को लेकर विविधता कोई नयी बात नहीं है। लोकतान्त्रिक पद्धति अपनाये जाने के पहले भी मति, कुमति, विमति के प्रसंग उत्पन्न होते रहे हैं। यह वास्तविकता है कि इसके पहले तक वैचारिक मान्यताओं को लेकर विवाद होते रहे हैं। सांस्कृतिक अवधारणाओं और आस्था को अनास्था के भाव से कभी स्पर्श नहीं किया गया। वर्तमान परिदृश्य उन दिनों की याद दिलाता है जब भारत पर तुर्क, मुगल, अरब और अंग्रेज आततायियों ने आक्रमण करना शुरू किया था।

Rahul Gandhi

गांधी परिवार का अल्पज्ञानी उत्तराधिकारी

भारत की प्राचीन संस्कृति को नष्ट करने का दम्भ भरने वाले थक कर चूर होते रहे। भारत आहत हुआ। भारतीयता खण्डित हुई। भारतवर्ष के कई खण्ड हो गये। धरती सिकुड़ती रही किन्तु संस्कृति को नष्ट करने वालों को हार माननी पड़ी। यह दुखद है कि गांधी-नेहरू की परम्परा के अल्पज्ञानी उत्तराधिकारी भारतीय आदर्शों और संस्कृति के श्रीराम तथा श्रीकृष्ण सरीखे उन्नायकों को अपमानित करने पर उतर आये हैं। यह समय भारत की संस्कृति के लिए क्या कठिन सिद्ध होगा। इस जिज्ञासा का उत्तर देते हुए स्वामी सुधाकर ने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति की चमक ऐसे क्षुद्र प्रयासों से मलिन नहीं पड़ेगी। जो ऐसा कर रहे हैं वह एक दिन स्वत: पराभव की मानसिकता से ग्रस्त होकर समय के किसी कठिन विवर में औंधे मुँह पड़े दिखायी देंगे।

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अपना व्यक्तित्व नष्ट कर रहे राहुल

राहुल गांधी जिस परिवार से सम्बन्ध रखते हैं उसका दुर्भाग्य है कि कोई ऐसा अनुभवी उन्हें हाथ पकड़ कर सही राह दिखाने वाला नहीं है। उनकी माता विदेशी भोगवादी संस्कृति से सराबोर हैं। बहन और उसका परिवार भारतीयता का विरोधी है। देश और विदेश में बैठे कूट चरित्र के लोग भला राहुल गांधी को उचित परामर्श क्यों देंगे। दूसरे के हाथों की कठपुतली बनकर अपना व्यक्तित्व नष्ट करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प बचा ही नही है।

भारत के भाग्य को विधाता नियन्त्रित करता है। यह देव भूमि है। यहाँ परमेश्वर के अवतार होते हैं। अधर्म बढ़ने और धर्म की हानि होने पर श्रीकृष्ण ने अवतरित होने का वचन द्वापर में दिया था। कलियुग में भी अवतार की संकल्पना शास्त्रों में व्यक्त की गयी है। इसलिए क्षणिक अवरोध कुछ बिगाड़ नहीं सकेंगे। जिन्होंने दुर्वाद कहे हैं वह स्वत: कलंकित अनुभव करते रहेंगे। ऐसे कृत्यों से भारतीय संस्कृति को कुचला नहीं जा सकता। अभी अवतार की नहीं आस्थावान लोगों के संयुक्त प्रयासों की अवश्यकता है। अल्पज्ञानी निश्चित परास्त होंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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