Satya Prakash Tripathi
सत्य प्रकाश त्रिपाठी “गंभीर”

माह पूस कै बीति जात है,
ठिठुरत है अब शहर औ गांव!
माघौ में ना आगी मिलिहै,
इहै हकीकत जानि तूं जाव!
सरकारी कागज में बाऊ,
हर चौराहेप जरा अलाव।

खाली होइगै बाग बगइचा,
पेड़ कटि गवा हरा भरा!
गाय बर्ध अब भए अवारा,
लकड़ी कण्डा कहां से लाव?
सरकारी कागज में बाऊ,
हर चौराहेप जरा अलाव।

गैस दइ दिहिन फिरी फंड में,
कर्जा लइकै भले भराव!
गोड़ सुन्न होइगै मेहरिन कै,
धूंवा ना आंखिम लगवाव!
सरकारी कागज में बाऊ,
हर चौराहेप जरा अलाव।

चिनकू ठिठुरैं बड़कू ठिठुरैं,
बूढ़ा-बूढ़ी गर गर कांपै!
बन्द कार में साहेब घूमैं,
हाथ डारि जेबी में तापैं!
केतनो होय “गम्भीर” समस्या,
यनकै ना खोपड़ी सरकाव!
सरकारी कागज में बाऊ,
हर चौराहेप जरा अलाव।

थाना जिला बलाक देखि लेव,
तहसीली में आय देखि लेव!
कुलि सरकारी आफिस देखव,
मोट मोट बोटा कै जराव!
सरकारी कागज में बाऊ,
हर चौराहेप जरा अलाव।

जानत ही सब कुछ ई जनता,
लेकिन कुछ ना कइ पाई!
कानें पर ना जूं अब रेंगी,
भले लगाय मैक चिल्लाव!
इहै हकीकत जानि मानि लेव,
ठंडी में ना जरी अलाव।

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