किसी भी राष्ट्र की सुख-समृद्धि का पता इस बात से चलता है कि वहां की प्रजा कितनी सुखी है और आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक रूप से कितनी विकसित हुई है। प्रजा का यह विकास उसके नेतृतत्व की कुशलता, सामर्थ्य और दूरदर्शिता से पता चलता है। आज जब हम भारत की स्वतंत्रता के अमृतकाल का उत्सव मना चुके हैं, तो हम अपने सौभाग्य पर गर्व अनुभव कर सकते हैं कि जिस सक्षम, शक्तिवान और दूरदृष्टा नेतृत्व की आवश्यकता हम दशकों से अनुभव कर रहे थे, आज वैसा ही नेतृत्व हमारे पास है। एक समर्पित, सेवाभावी और सहृदय नेतृत्व, जिसकी सभी प्राथमिकताओं में जनता का कल्याण, उसके हित और उसकी सुरक्षा सर्वोपरि है। जी-20 के सफलतम आयोजन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विश्व नेता के रूप में स्थापित कर दिया है।
भारत और भारतीय जनता के लिए इस स्वर्ण युग का आरंभ वर्ष 2014 में हुआ था, जब देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने देश की कमान संभाली थी। तीन दशकों में यह पहली बार था, जब केंद्र में कोई गैर कांग्रेसी सरकार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। लेकिन, यह भी पहली बार था, जब सत्ता संभालने के बाद किसी दल ने जीत का जश्न मनाने के बजाय, पहले ही दिन से उन चुनौतियों पर ध्यान देना शुरू कर दिया, जो देश और देशवासियों की प्रगति के राह में बाधक बनी हुई थीं। प्रधानमंत्री ने अपने पहले सार्वजनिक संबोधन में ही स्पष्ट कर दिया था कि वह प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि प्रधान (यानि जनता) के सेवक हैं, जिसका पहला उद्देश्य अपने देश और देशवासियों की सेवा करना है।
और अब, जब प्रधानमंत्री का यह सेवाभावी व कुशल नेतृत्व दशक वर्ष में प्रवेश कर चुका है, देश और जनता को बीते नौ सालों में क्या-क्या नए अनुभव हुए हैं, क्या-क्या नई उपलब्धियां हासिल हुई हैं; इनका एक सिंहावलोकन करना काफी महत्वपूर्ण होगा।
सेवा और संवाद
नरेन्द्र मोदी का देश के प्रधानमंत्री के रूप में यह दूसरा कार्यकाल है। पहले कार्यकाल की तुलना में इस कार्यकाल में बहुत सारी नई-नई चीजें शामिल हुई हैं और हो रही हैं। लेकिन जो नहीं बदला, वह है नेतृत्व में देश और देश के नागरिकों की सेवा की भावना और सरकार के हर फैसले में जनता की सहभागिता। ये चीजें पहले कार्यकाल में भी प्रमुखता से मौजूद थी, इस बार भी हैं। ‘सबका साथ, सबका विकास’, महज चार शब्दों का नारा नहीं, बल्कि एक वास्तविकता है, जिसे देश की जनता ने बीते नौ सालों में पूरी शिद्दत के साथ अनुभव किया है।
अगर हम पिछले एक दशक में देश की जनता के लिए वर्तमान सरकार द्वारा किए गए सेवा कार्यों की सूची बनाना शुरू करें, तो यह बहुत लंबी हो जाती है। इन कार्यों में जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं, उनमें पहला है डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना। इसने सरकारी राहतों और लाभान्वितों के बीच की दूरी को पाटते हुए उन तमाम बिचौलियों को बाहर का रास्ता दिखाया, जो राहत राशि का एक बड़ा हिस्सा बीच में ही खा जाते थे, और उसका एक बहुत छोटा हिस्सा ही वास्तविक लाभार्थी को मिल पाता था। नौ सालों में यह योजना कितना विस्तृत रूप ले चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते वित्त वर्ष (2022-23) में, भारत सरकार के 53 मंत्रालयों की 312 योजनाओं के अंतर्गत कुल 670 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए, जिनमें कुल 6,74,484 करोड़ रुपये, डीबीटी के माध्यम से सीधे लाभान्वितों के खातों में जमा हुए। इससे न सिर्फ अधिक लोगों का लाभ हुआ, बल्कि बीच के भ्रष्टाचार और सुस्त गति से भी निजात मिली।
सेवा भाव का अगला सबसे बड़ा उदाहरण नरेंद्र मोदी की पहल पर आरंभ प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना है। एक स्वस्थ भारत के निर्माण का लक्ष्य हासिल करने की ओर बढ़ते हुए इस योजना में अब तक 12 करोड़ परिवारों के लगभग 55 करोड़ लाभार्थियों को जोड़ा जा चुका है, जिन्होंने इसे विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना बना दिया है। जन सेवा से संबंधित योजनाओं की इसी श्रृंखला में करीब दस करोड़ लोगों को गैस सिलेंडर पर सब्सिडी प्रदान करने वाली उज्ज्वला योजना है, जो वर्ष 2016 से चल रही है। इसके तहत, बीते वित्त वर्ष में 6100 करोड़ रुपये प्रदान किये गए हैं तथा चालू वर्ष के लिए 7680 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है। 2017 में लांच सौभाग्य योजना है, जिसके तहत हर घर में बिजली पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। सौभाग्य के माध्यम से, मार्च 2021 तक देश के 2.82 करोड़ घरों में बिजली पहुँचाई जा चुकी थी।
स्वास्थ्य, ईंधन और बिजली के अलावा आम जन को जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, वह है पीने के लिए स्वच्छ जल। ‘हर घर नल’ के नाम से लोकप्रिय, केंद्र सरकार का जल जीवन मिशन इस दिशा में एक बहुत सशक्त और महत्वाकांक्षी पहल है। 3.60 लाख करोड़ के बजट वाले इस राष्ट्रीय मिशन के तहत वर्ष 2024 तक देश के प्रत्येक घर में नल का कनेक्शन पहुँचाया जाएगा, ताकि पीने के पानी के लिए किसी को भी दूर न जाना पड़े।
सिर्फ 20 रुपये के सालाना प्रीमियम पर दो लाख रुपये की दुर्घटना बीमा योजना, सालाना 436 रुपये में दो लाख रुपये की प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा योजना, अंत्योदय अन्न योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन योजना, पीएम किसान सम्मान निधि, हाउसिंग फॉर ऑल, ऐसी दर्जनों योजनाएं और कार्यक्रम हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा आम आदमी के हित को ध्यान में रखकर चलाए जा रहे हैं। इनसे करोड़ों लोग लाभान्वित हुए हैं और हो रहे हैं।
ये योजनाएं साक्षी हैं इस बात की कि प्रधानमंत्री ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय के विचार को अमली जामा पहनाते हुए गति और गुणवत्ता, दोनों का ध्यान रखते हुए यह सुनिश्चित किया है कि सरकार की योजनाओं और पहल का लाभ समाज के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक पहुँच सके।
जहां तक संवाद और संपर्क की बात है, तो प्रधानमंत्री ने सत्ता को नेतृत्व में बदलकर उस खाई को पूरी तरह पाट दिया है, जो वर्ष 2014 से पूर्व देश की जनता और शासकों के बीच में स्थायी रूप से मौजूद नजर आती थी। एक तरफ ‘मन की बात’ जैसा कार्यक्रम है, जिसने देश की जनता को प्रधानमंत्री से सीधे जोड़ने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महीने के अंतिम रविवार को आकाशवाणी व दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम ने अप्रैल 2023 में सौवां पड़ाव पार कर लिया है। ‘मन की बात’ ने जनता और सरकार के बीच एक ऐसे पुल का कार्य किया है, जिससे सरकार को देश की नब्ज भांपने और आम आदमी से जुड़े मुद्दों का निराकरण करने में मदद मिली है, वहीं अवाम को भी देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का अहसास कराया है। इसी तरह भारत सरकार का पोर्टल MyGov.in है, जो जनता को सरकारी निर्णयों की प्रक्रिया और नीति निर्माण में सीधी भागीदारी के अवसर प्रदान करता है। 26 जुलाई, 2014 को आरंभ इस पोर्टल को लेकर देश की जनता में कितना उत्साह है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में इस पोर्टल के साथ 97.32 लाख रजिस्टर्ड यूजर जुड़े हुए हैं।
जन जागरण का दशक
एक सशक्त और कुशल नेतृत्व किस तरह एक विचार को राष्ट्रीय आंदोलन में बदल सकता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाये गए ‘स्वच्छ भारत अभियान’, ‘बेटी बचाओ-बेटी बढ़ाओ’, ‘जन धन योजना’ जैसे अनगिनत अभियानों व योजनाओं की सफलता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
‘जन धन योजना’ उस आबादी के लिए किसी वरदान से कम नहीं थी, जिसकी आजादी के 67 साल बाद भी बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच नहीं थी। 28 अगस्त को ‘जन धन योजना’ की शुरुआत की गई और प्रधानमंत्री का आह्वान इतना प्रभावशाली साबित हुआ कि इस योजना के तहत सिर्फ एक साल के भीतर ही 19.72 करोड़ बैंक खाते खुल गए, जिनमें करीब 29 हजार करोड़ रुपए जमा हुए। इसी उत्साह का नतीजा था कि जन धन के अंतर्गत एक सप्ताह में सबसे अधिक 1,80,96,130 बैंक खाते खोले जाने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना।
‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ की शुरुआत प्रधानमंत्री ने 22 जनवरी, 2015 को पानीपत, हरियाणा में की थी। इस योजना से शिशु लिंग अनुपात में कमी को रोकने में मदद मिली है और महिलाओं के सशक्तीकरण से जुड़े मुद्दों को भी प्रोत्साहन मिला है। यह योजना महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय जैसे तीन बेहद महत्वपूर्ण मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। इस मिशन के तहत कन्या शिशु के प्रति समाज के नजरिए में परिवर्तनकारी बदलाव लाने के लिए राष्ट्रव्यापी जागरूकता और प्रचार अभियान चलाए गए हैं। बुनियादी स्तर पर लोगों को प्रशिक्षण देकर, संवेदनशील और जागरूक बनाकर उनकी सोच को बदलने पर जोर दिया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में हरियाणा के बीबीपुर के एक सरपंच की तारीफ की, जिसने ‘सेल्फी विद डॉटर’ की शुरुआत की। प्रधानमंत्री ने लोगों से बेटियों के साथ अपनी सेल्फी भेजने का भी अनुरोध किया और देखते ही देखते यह आइडिया सुपरहिट हो गया। भारत और दुनिया के कई दूसरे देशों में रहने वाले लोगों ने अपनी-अपनी बेटियों के साथ सेल्फी भेजी।
‘स्वच्छ भारत’ तो अपने आप में एक ऐसा अद्वितीय अभियान है, जिसने हर देशवासी को गर्व से भर दिया है। स्वच्छ भारत मिशन की आशातीत सफलता ने हमें आश्वस्त किया है कि हम भारतवासी अपने कर्तव्यों के लिए कितने सजग व संवेदनशील हैं। जन आंदोलन की ये भावना स्वच्छ भारत मिशन की सफलता का आधार है। 2014 में भारत को खुले में शौच से मुक्त करने का संकल्प 10 करोड़ से ज्यादा शौचालयों के निर्माण के साथ पूरा हो गया है। स्वच्छता की वजह से गरीब के इलाज पर होने वाला खर्च अब कम हुआ है। इस अभियान ने ग्रामीण इलाकों, आदिवासी अंचलों में लोगों को रोजगार के नए अवसर भी दिए हैं। कचरा सड़कों, गलियों की बजाए अब वेस्ट कलेक्शन और वेस्ट सेग्रीगेशन का हिस्सा बन रहा है। आज स्वच्छता एक आदत और एक संस्कृति बन चुकी है। अब अगर कहीं गंदगी दिखती है, तो लोग स्वच्छता ऐप के माध्यम से उसे रिपोर्ट करते हैं और दूसरे लोगों को जागरूक भी करते हैं। स्वच्छ भारत अभियान से हमारी सामाजिक चेतना, समाज के रूप में हमारे आचार-व्यवहार में भी स्थाई परिवर्तन आया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने स्वच्छ भारत मिशन की सराहना की है और कहा है कि इससे लाखों लोगों की जान बची है, जो गंदगी के कारण होने वाली भीषण बीमारियों के चलते अपना जीवन गंवा सकते थे।
इसी तरह ‘खेलो इंडिया’, ‘फिट इंडिया’ जैसे अनगिनत जनजागृति वाले अभियानों की सफलता हमारे सामने है। जो यह साबित करती है कि अगर नेतृत्व में इच्छाशक्ति व कल्पनाशक्ति है, तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं है। मुद्दा कोई भी रहा हो, प्रधानमंत्री मोदी की मौलिकता और उद्देश्यों की शुचिता ने उसे जन जागरण में बदल दिया है।
सुशासित भारत
जिस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की कमान सँभाली थी, उस समय शासन और प्रशासन की जो स्थिति थी, वह किसी से छिपी नहीं है। भुक्तभोगी जानते हैं कि कैसे उस समय हर जगह सुस्ती और लालफीताशाही का बोलबाला था। किसी भी काम के लिए सरकारी कार्यालयों में जाना किसी दु:स्वप्न से कम नहीं होता था। दो-दो मिनट के कामों के लिए दो-दो घंटे लाइन में लगना पड़ता था। नई सरकार ने आम जनता की पीड़ा को समझा और डिजिटल तकनीक को अपनाते हुए सरकार के अधिक से अधिक कार्यों को ऑनलाइन करने की शुरुआत की। और 1 जुलाई, 2015 को ‘डिजिटल इंडिया’ के रूप में एक ऐसे विराट अभियान का आरंभ हुआ, जिसने देखते ही देखते पूरे प्रशासन का कायापलट ही कर दिया। इस अभियान का आगाज ऑनलाइन इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने और इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ाकर नागरिकों को अधिकतम सरकारी सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उपलब्ध कराने तथा देश को डिजिटल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सशक्त बनाने के उद्देश्य के साथ किया गया था। यह मिशन बेहद कामयाब रहा। डिजीलॉकर, कोविड वैक्सीनेशन, डिजीयात्रा, यूपीआई भुगतान की सुविधा, फास्टटैग… हमारी जिंदगी को बेहद आसान बनाने वाली ऐसी कितनी ही सुविधाएं आज हम डिजिटल इंडिया के तहत हासिल कर रहे हैं।
सरकारी कार्यालयों में अधिकारियों और कर्मचारियों की मौजूदगी के घंटे और निरंतरता में भी काफी वृद्धि हुई है। अब वैसे तो लोगों को बहुत कम ही सरकारी कार्यालयों में जाने की जरूरत पड़ती है। लेकिन, अगर जाना भी पड़े तो दस साल पहले की तरह अब उन्हें अधिकारियों के आकर सीट पर बैठने का इंतजार नहीं करना पड़ता। पहले देर से आना, दोपहर के भोजनावकाश के आधा घंटे पहले और आधा घंटे बाद तक सीट पर न आना, जल्दी चले जाना… ये सब चीजें अब बहुत दुर्लभ हो गई हैं।
दीर्घकालिक कामों के लिए अब सिर्फ योजनाएं ही नहीं बनतीं, बल्कि कार्ययोजनाएं बनती हैं। किसी भी कार्यक्रम का खाका तैयार होने के साथ ही पता होता है कि वह कब तक संपूर्ण होकर जनता की सेवा में प्रस्तुत होगा। यह प्रधानमंत्री के सख्त सुशासन की ही देन है।
सशक्त नेतृत्व
एक सशक्त नेतृत्व ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। और कोई राष्ट्र कितना सशक्त है, इसका पता इससे चलता है कि वह भीतर और बाहर से कितना सुरक्षित है। और सुरक्षा के सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना करने में कितना सक्षम है।
एक दशक पहले, जब से 21वीं सदी के विश्व के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार सत्ता में आई, तो कुछ ही समय बाद उसने दिखा दिया कि वह देश की सुरक्षा को लेकर किसी प्रकार की ढिलाई देने के मूड में नहीं है। इस क्रम में वर्ष 2018 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में शीर्ष स्तरीय रक्षा योजना समिति (डीपीसी) का गठन एक अच्छी शुरुआत रही है। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बनाने के लिए गठित किया गया था। भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के अलावा डीपीसी के प्रमुख उद्देश्यों में क्षमता संवर्द्धन योजना का विकास, रक्षा रणनीति से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर काम करना और भारत में रक्षा उत्पादन ईकोसिस्टम को उन्नत बनाना आदि शामिल हैं।
इन्हीं प्रयासों और दृढ़ता का परिणाम है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में देश में चीजें तेजी से बदल रही हैं। प्रधानमंत्री की दूरर्शिता और अथक प्रयासों के नतीजे हम लगभग हर क्षेत्र में गुणात्मक परिवर्तनों के रूप में देख रहे हैं। अगर हम एक दशक पहले की परिस्थितियों से तुलना करें तो आज भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को चुनौती देने वाले तमाम तत्व नि:शक्त और सहमे-सहमे से नजर आते हैं। आतंकवाद और सीमापार से होने वाली राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को मुंहतोड़ जवाब मिला है, तो देश के भीतर चलने वाली नक्सलवादी/वामसमर्थित अलगाववादी गतिविधियों पर भी लगाम लगी है। कुछ पूर्वोत्तर राज्यों के भीतर दशकों से पनप रहे असंतोष के स्वरों को भी शांतिपूर्ण और स्वीकार्य उपायों से समाधान उपलब्ध कराने में भी हमें उल्लेखनीय सफलता मिली है। इसका पूरा श्रेय जाता है हमारे कुशल, सक्षम और दूरदर्शी नेतृत्व को, जिसमें सही समय पर सही फैसले लेने की सामर्थय ही नहीं, बल्कि उन्हें पूरी दृढ़ता के साथ लागू करने की इच्छाशक्ति भी मौजूद है। चाहे वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के सुरक्षा हितों पर प्रतिकूल असर डालने वाली एकतरफा कार्रवाइयों के विरुद्ध मजबूती से खड़े होने का मामला हो या शक्ति संतुलनों के नए समीकरणों में भारत के प्रति मानसिकता और पुरातन सोच में बदलाव लाने का। आज न सिर्फ हम पोलराइज्ड विश्व में अपने हितों की रक्षा में सफल रहे हैं, बल्कि पूरा विश्व, इस तेजी से बदलती व्यवस्था में भारत की नई सशक्त और निर्णायक भूमिका को स्वीकार कर रहा है। भारत की भीतरी मजबूती और सुरक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए अपनी सख्ती और जीरो टॉलरेंस अप्रोच के साथ हम भारत की ‘सॉफ्ट स्टेट’ वाली छवि को तोड़ने में सफल रहे हैं।
हमारी इस बढ़ती ताकत और प्रभाव के पीछे हमारे अंतरराष्ट्रीय प्रयासों और रक्षा क्षेत्र में किए गए सुधारों की भी एक अहम भूमिका रही है। हमने ब्रिटेन, अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्रों के साथ सामरिक भागीदारी कर अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा दिया है। चीन की विस्तारवादी गतिविधियों से निपटने में भूटान की सहायता की है, बांग्लादेश से संबंध सुधारने की दिशा में आगे बढ़ते हुए लंबे समय से लटके सीमा विवाद को निपटाया है।
रक्षा क्षेत्र को और मजबूत व चुस्त बनाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय का पुनर्गठन कर भूमिकाओं और कार्यों का व्यवहारिक आवंटन कर इन्हें संस्थागत रूप प्रदान किया गया है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवाचार, समुद्री सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन जैसे अपारपंरिक सुरक्षा क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तनों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इससे बाहरी, आंतरिक, खुफिया, साइबर और सैन्य कार्रवाइयों से संबंधित तंत्र व संरचानाओं को मजबूती मिलेगी।
चुनौतियां अनेक, समाधान एक
21वीं सदी, बीती सदी से बहुत सारी बातों में अलग है। इसकी चुनौतियां पहले की तरह सीधी-सपाट नहीं हैं, बल्कि बेहद जटिलताओं से भरी हैं। धरती, समुद्र, अंतरिक्ष, ऊर्जा, पर्यावरण, जलवायु… हर मोर्चे पर ऐसी-ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनसे मुकाबले के लिए पिछली सारी तैयारियां नाकाफी भी हैं और अप्रासंगिक भी। वर्तमान में मौजूद और भविष्य में सामने आने वाली ऐसी तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार दीर्घकालिक समाधानों का निर्माण कर रही है। उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन की समस्याओं के लिए हम नेट जीरो, सस्टेनेबल डेवलपमेंट जैसे लक्ष्यों को अपना रहे हैं और उन्हें हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
ऐसे ही, भविष्य में सामने आने वाले ऊर्जा संकट के लिए हमने राष्ट्रीय हरित ऊर्जा मिशन लांच किया है। इस मिशन के माध्यम से वर्ष 2030 तक देश में लगभग 125 गीगावाट की संबद्ध अक्षय ऊर्जा क्षमता वृद्धि हासिल की जा सकेगी और साथ ही प्रति वर्ष ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता में कम से कम पांच मिलियन मीट्रिक टन की बढ़ोत्तरी होगी। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन के यूं तो बहुत सारे लाभ हैं, लेकिन इनमें कुछ तो बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। एक, इससे हमारे जीवाश्म ईंधन के आयात पर होने वाले खर्च में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की बचत होगी। दूसरा, कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में हर साल पचास मिलियन मीट्रिक टन की कमी आएगी। तीसरा, इसकी वजह से छह लाख से अधिक नए रोजगारों का सृजन भी होगा। अनुमान है कि अगले सात सालों में भारत में ग्रीन हाइड्रोजन बाजार का आकार 2030 तक आठ अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
भ्रष्टाचार भारत के लिए हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है। पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में समाज में हर पायदान पर मौजूद भ्रष्टाचार ने न सिर्फ देश के विकास की गति को बाधित किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि भी बहुत धूमिल की है। लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी की भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करने को लेकर कटिबद्धता ने देश की वैश्चिक स्तर पर साख बढ़ाई है।
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बदलती हुई जलवायु को लेकर पूरी दुनिया में बेहद बेचैनी और चिंता का माहौल है। वहीं प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाला भारत इस मामले में काफी आश्वस्त और आशाओं से भरपूर नजर आता है। क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को लेकर बहुत सजग व सक्रिय हैं। उनका हमेशा से यही मानना रहा है कि हमें एक स्वच्छ व हरित ग्रह बनाने के लिए काम करते रहना चाहिए। 1985 में गठित पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तीन दशकों तक इसी नाम से कार्य कर रहा था। प्रधानमंत्री ने मई 2014 में इसमें जलवायु परिवर्तन को भी शामिल किया, ताकि बदलते वक्त के साथ सामने आने वाली नई चुनौतियों से जूझा जा सके। अब यह पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के रूप में कार्य करता है। सीओपी सम्मेलनों में प्रधानमंत्री पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को लेकर हमेशा काफी मुखर रहे हैं। वह विश्व के अकेले ऐसे नेता हैं, जो क्लाइमेट चेंज की समस्या के साथ-साथ क्लाइमेट जस्टिस की भी बात करते हैं, ताकि जलवायु परिवर्तन का सारा ठीकरा विकासशील देशों के सिर पर न फोड़ा जा सके। और उन्हें जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने में विकसित देशों की मदद मिल सके।
चुनौती कैसी भी हो, कितनी भी बड़ी हो, हमारा नेतृत्व अपनी कुशलता और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ उससे निपटने के लिए हमेशा तैयार नजर आता है। यही हमारे प्रधानमंत्री की ताकत है, लगन है, कर्मठता है, जिसने दुनिया की नजर में ‘सॉफ्ट स्टेट’ समझे जाने वाले भारत को विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली देशों की कतार में ला खड़ा किया है।
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यह वह नेतृत्व है, जो जनता को शासित करने वाली सत्ता में नहीं, बल्कि लोगों को साथ लेकर चलने में विश्वास करता है। 140 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश को शताब्दियों के बाद ऐसा नेतृत्व मिला है, जो खुद को शासक नहीं, बल्कि सेवक कहता है और लोगों पर अपने निर्णय नहीं थोपता, बल्कि उन्हें फैसले लेने की प्रक्रिया में भागीदारी का अवसर देता है।
(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक हैं।)