उत्तर प्रदेश इन दिनों विचित्र राजनीतिक चर्चाओं में डूब उतरा रहा है। इस बीच योगी आदित्यनाथ फिर से एक बार पूरे फार्म में आ गये हैं। अपने आवास पर जनता दर्शन में आये लोगों के समक्ष घोषणा की कि जन समस्याओं के प्रति उदासीन रहने वाले अधिकारियों को ऐसा व्यवहार भारी पड़ेगा। दूसरी ओर उन्होंने उच्च अधिकारियों के साथ बैठक करके राज्य में विभागवार खाली पड़े पदों को भरने की प्रक्रिया तत्काल प्रारम्भ करने का निर्देश दिया। कानून व्यवस्था पर चुस्ती बनाये रखने और भ्रम फैलाने वालों पर कड़ी दृष्टि रखने के निर्देश भी दिये। राजधानी लखनऊ सहित विभिन्न नगरों, कस्बों और गाँवों के नुक्कड़ों पर दुपहरी के इस सूरज को अँधेरे का भय दिखाने की होड़ लगी है। चर्चा विशुद्ध राजनीतिक है। इस चर्चा के केन्द्र में अयोध्या नगरी के श्रीराम और राजधानी लखनऊ के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बने हुए हैं।
धड़ाधड़ नौकरी कब मिलेगी
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की मिली भगत से इंडी गठबंधन को उत्तर प्रदेश में भाजपा से ज्यादा सीटें मिलना विपक्षियों के दोनों हाथों में लड्डू टपकने के समान माना जा रहा है। सबसे विचित्र बात यह है कि उत्तर प्रदेश में उलाहनों की एक आंधी चल पड़ी है। इस उलाहनेबाजी के दो खेमे हैं। एक खेमा विपक्षियों का है जो यह मानकर चल रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ के शासन का सूरज भरी दुपहरी में डूब सकता है। निश्चित रूप से यह चर्चा सपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं, सपा के हित चिन्तक अधिकारियों की ओर से चलायी जा रही है।
यह खेमा मानता है कि योगी आदित्यनाथ के शासन से विपक्ष को अब तक जो पीड़ा सहनी पड़ रही थी उससे छुटकारा मिलने के दिन आ गये हैं। सामाजिक स्तर पर सपा और कांग्रेस की ओर से जो वायदे किये गये हैं वह भी चर्चा के केन्द्र में हैं। कांग्रेस और सपा दोनों दलों के कार्यालयों में चुनाव परिणाम के दूसरे ही दिन से महिलाओं के झुण्ड पहुँचने लगे हैं। इस पर दोनों के नेताओं ने कहना शुरू किया है कि ऐसे समूहों को दूसरे लोग उकसा कर भेज रहे हैं। समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में यह बात जमकर उछल रही है कि सभी महिलाओं को खटाखट बड़ी धनराशि और युवाओं को धड़ाधड़ नौकरी कब मिलेगी। दोनों मित्र दलों के नेता इन प्रश्नों के उत्तर देने की बजाय केवल इतना कहते हैं कि केन्द्र और राज्य में बड़े बदलाव की प्रतीक्षा है।
इंडी गठबंधन में जीत का जोश
सपा और कांग्रेस की अनपेक्षित विजय के उत्सव राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश के सभी नगरों में एक खास वर्ग की बस्तियों में बेधड़क चल पड़े हैं। हरे झण्डों की बिक्री बढ़ गयी है। कुछ जगहों पर नुक्कड़ों में उत्सव मनाते, नारे लगाते लोगों के समूह जुटे। प्रशासन इन बातों को लेकर सावधान है। सम्भवत: यही कारण है कि जोश में कहीं कोई बड़ी घटना सुनने को नहीं मिली। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से सपा को 37, भाजपा को 33, कांग्रेस को 06, आरएलडी को 02, अपना दल को 01 सीटें मिली हैं। सपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता इस बात से चहक रहे हैं कि उन्हें भाजपा से अधिक सीटें मिल गयीं।
अचरज में बीजेपी
दूसरा खेमा भाजपा का है। सबसे बड़े अचरज की बात यह है कि पार्टी और सरकार दोनों के नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। सम्भव है कि यह चुप्पी केन्द्रीय नेतृत्व के रोष के भय के कारण हो। पर मुख्य बात तो यह है कि पार्टी के राज्य नेतृत्व की पूरी टीम को कार्यकर्ताओं का ढाँढस बँधाने के लिए आगे आना होगा। इसीलिए मुख्यमंत्री ने आज पहल की। सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ एक धीर गम्भीर आभा के व्यक्ति हैं। चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं होने का कष्ट उन्हें अवश्य होगा। वह भले ही चुनाव परिणामों पर मौन हैं। किन्तु जागरूक विश्लेषक इस बात को जानते हैं कि प्रत्याशी चयन में हुई चूक के साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साह पूर्वक जुटा न पाना बड़ी दुर्बलता सिद्ध हुई है।
वैशाखी के बूते बनेगी मोदी सरकार
पार्टी की हार के कारणों की समीक्षा का समय अभी नहीं आया। तद्यपि इन अफवाहों, जनचर्चाओं से राज्य में भाजपा और विचार परिवार में भय का एक सुर्रा छोड़ा जा रहा है कि पार्टी का कोई शक्तिशाली वर्ग योगी आदित्यनाथ को आहत करने की जुगत में है। योगी आदित्यनाथ की प्रशासनिक क्षमता अद्वितीय है। तो भी उन पर यह दोष मढ़ने के यत्न हो रहे हैं कि नौकरशाही को उन्होंने इतना स्वच्छन्द कर दिया है कि संगठन के नेता और कार्यकर्ता असहाय अनुभव करने लगे हैं। पार्टी के विधायकों और नेताओं-पदाधिकारियों के एक बड़े वर्ग द्वारा यह बात चर्चा में बढ़ चढ़कर उछाली जा रही है कि लोकसभा चुनाव में कार्यकर्ताओं की भागीदारी पर किसी ने गम्भीरता से ध्यान नहीं दिया। समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में यहाँ तक बात उछल रही है कि वाराणसी में प्रधानमंत्री के पक्ष में मतदान कराने के लिए नेताओं की बड़ी भीड़ भेजी गयी। उनके रहते संगठन और सरकार दोनों के हाथों से तोते उड़ते रहे।
उत्तर प्रदेश के कारण नरेन्द्र मोदी जैसे नेता को केन्द्र में वैशाखी के बूते सरकार बनानी पड़ रही है। यह बात मोदी तथा योगी के प्रति गहरी सहानुभूति और श्रद्धा रखने वाले समाज को बहुत खल रही है। यह कहना उचित नहीं होगा कि भाजपा संगठन और सरकार में उच्च पदस्थ लोगों को इस बात ने सदमा नहीं पहुँचाया। तो क्या संकट के समय उन्हें मौन साध लेना उचित है। इससे तो वह निचले पायदान पर खड़े कार्यकर्ताओं को और ठेस पहुँचा रहे हैं।
अयोध्या के साधु आहत
अयोध्या के अनेक साधुओं से पत्रकारों ने बातचीत की। साधुओं के कई समूह पत्रकारों के प्रश्नों की झड़ी सुनकर भावुक हो उठे। हनुमानगढ़ी के पास पाँच साधुओं को दो पत्रकारों ने घेरा। उन्होंने पूछा- मोदी जी को हुए कष्ट के लिए कौन उत्तरदायी है। यहाँ के प्रत्याशी का हारना भारत ही नहीं सारे संसार में चर्चा का विषय बन गया। इस पर एक साधु फूट फूटकर रोने लगा। उसने कहा कि दोषी कोई हो अयोध्या पर यह कलंक लगा है। जिसके लिए हम मोदी जी से क्षमा माँगते हैं। उनसे जो माँगा मिला। उनका चाहा परिणाम हम न दे सके।
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कार्यकर्ताओं की अनदेखी से बीजेपी को नुकसान
भाजपा के भीतर उच्च स्तर पर जो भी मन्त्रणा चल रही हो। पर कार्यकर्ताओं के स्तर पर उपेक्षा का दंश सबसे अधिक चीख पुकार मचा रहा है। कार्यकर्ताओं की अनदेखी की बात जनता भी कहने लगी है। क्योंकि यही बातें संगठन के भीतर से बाहर की ओर उछाली जा रही हैं। भाजपा का सूरज डूबने वाला नहीं है। यह बात भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ गृहस्थ कार्यकर्ता ने कही। उनका मानना है कि जो बातें जन चर्चा में उठ रही हैं। उन्हें गम्भीरता से लेकर संगठन के नायक उचित पग उठाएंगे।
भाजपा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा कि जितनी साफ सुथरी सरकार योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को दी है, निकट अतीत में उसकी सानी नहीं मिलती। पराजय छोटी हो या बड़ी भड़ास यह सिद्ध करती है कि पार्टी के प्रति जन सामान्य बड़ी आशा भरी दृष्टि से देख रहा है। हमारी छोटी त्रुटि जब समाज को बड़ी लगने लगे तो समझना चाहिए के अपेक्षा के अनुरूप काम करने में होने वाली चूक समाज को बहुत अखरती है। हम सुधार करेंगे और बढ़ते जाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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