प्रकाश सिंह
नई दिल्ली: सच कड़वा होता है, शायद यही वजह है कि सच बोलने का सहस हर कोई नहीं दिखा पाता। क्योंकि सच बोलने से विरोधी जहां आक्रामक हो जाते हैं, वहीं अपने भी दूरी बना लेते हैं। फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत ने आजादी भीख में मिलने का बयान देकर विवादों में आ गई हैं। कंगना रनौत का विरोध इस तरह शुरू हो गया है जैसे कि उन्होंने सच बोलकर कोई बड़ा पाप कर दिया है। इसका एक कारण यह भी है कि अपनी बेबाक राय को लेकर कंगना रनौत हमेशा सुखियों में रहती है। लेकिन आजादी की बात की जाए तो प्रमाण यह बताने के लिए काफी हैं कि आजादी पर कंगना का बयान काफी हद तक सही है।
अभिनेत्री कंगना ने भीख में मिली आजादी वाले अपने बयान पर कुछ प्रमाण को साझा किया है। कंगना ने अपने इंस्टग्राम स्टोरीज पर एक किताब का कुछ अंश शेयर किया है। ‘जस्ट टू सेट द रिकॉर्डस स्ट्रेट’ नाम की किताब का कंगना ने साझा किया है। उन्होंने लिखा है कि आजादी की लड़ाई 1857 में लड़ी गई थी। इसमें सुभाष चंद्र बोस, रानी लक्ष्मीबाई और वीर सवारकर ने हिस्सा लिया था। 1947 में आजादी के लिए कौन सा युद्ध लड़ा गया था, इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने चैलेंज करते हुए कहा कि इस बारे में कोई मुझे जानकारी दे दे तो मैं माफी मांगने के साथ ही पद्मश्री भी लौटा दूंगी।
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बता दें कि भारत के लोग जानते कम और मानते ज्यादा हैं। यही कारण है कि आजादी के असली दीवानों के बारे में जानने के लिए काफी खोजबीन करनी पड़ती है, जबकि कुछ नाम ऐसे हो गए हैं, जो सबकी जुबान पर रट गए है। इसके प्रमाण के तौर पर महात्मा गांधी का नाम भी है। गांधी को राष्ट्रपिता कहा जाता है। सरकार से लेकर जनता तक उन्हें राष्ट्रपिता कहता है, उन्हें राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। चाटुकार हर समय में रहे हैं। इतिहास को पढ़ने और समझने के बाद यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि सत्ता के चाटुकार आज से ज्यादा पहले थे। सत्ता से फायदा लेने के लिए इतिहास को इतना तोड़ मरोड़ दिया गया है कि यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि सच क्या है।
कंगना के बयान का विरोध इसलिए भी ज्यादा हो रहा है, क्योंकि उन्होंने कहा था कि असली आजादी वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद मिली है। कंगना के इस बयान में भी तर्क है, इसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। आजाद भारत में कितने गद्दार छिपे बैठे हैं, इसकी पहचान वास्तव में वर्ष 2014 के बाद से पता चला है। देश की जनता जिसे उप राष्ट्रपति के तौर पर स्वीकार कर चुकी थी, उसने यह कहने में कोई संकोच नहीं किया कि हिंदुस्तान का मुसलमान डरा हुआ है। जबकि हामिद अंसारी मुख्तार अंसारी के घराने से आते हैं और मुख्तार अंसारी से जनता कितनी डरी हुई थी इस पर उन्होंने कभी कुछ नहीं बोला। जेएनयू में पल रहे नक्सलवाद का खुलासा 2014 के बाद हुआ। कश्मीर भारत का हिस्सा 2014 के बाद हुआ। ये बातें यह साबित करने के लिए काफी हैं कि जी हम आजाद भारत में रहे थे, लेकिन हम किन लोग के बीच में थे इसका एहसास हमें अब हुआ।
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