Newschuski Digital Desk: भारत के न्यायिक इतिहास में एक और महत्वपूर्ण नियुक्ति होने जा रही है। वर्तमान प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने केंद्र सरकार से जस्टिस सूर्यकांत (Justice Suryakant) को देश के अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है।

सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश, जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर को देश के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करेंगे। वर्तमान सीजेआई गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

मध्यमवर्गीय परिवार से देश के शीर्ष पद तक का सफर

जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। कानून की कोई पृष्ठभूमि न होने के बावजूद, उन्होंने अपने गाँव पेटवार से प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और 1984 में एलएलबी की डिग्री ली।

उन्होंने हिसार जिला अदालत से अपना करियर शुरू किया और फिर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुँचे। सिर्फ 38 साल की उम्र में, वह हरियाणा के सबसे युवा महाधिवक्ता बने। 24 मई, 2019 को वह सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बने।

कार्यकाल: जस्टिस सूर्यकांत का CJI के रूप में कार्यकाल लगभग 15 महीने का होगा। वह 9 फरवरी, 2027 को 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होंगे।

Justice Suryakant next CJI

सुर्खियों में रहे जस्टिस सूर्यकांत के ऐतिहासिक फैसले

जस्टिस सूर्यकांत अपने दो दशकों के अनुभव और निडर टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं। उनकी बेंच ने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं, जिनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, भ्रष्टाचार और लैंगिक समानता जैसे विषय शामिल हैं।

चर्चित टिप्पणियाँ जो सुर्खियों में रहीं

नूपुर शर्मा केस: उन्होंने देश भर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि देश में जो कुछ हो रहा है, उसकी ‘वह अकेली जिम्मेदार हैं।

स्वाति मालीवाल केस: मुख्यमंत्री आवास पर हुए हमले के मामले में उन्होंने तीखे सवाल करते हुए कहा था, क्या यह मुख्यमंत्री का आवास है या किसी गुंडे का अड्डा?

रणवीर अल्लाहबादिया केस: फेमस यूट्यूबर की याचिका पर उन्होंने कहा था कि इस व्यक्ति के दिमाग में कुछ गंदा है जो समाज में फैल गया है, लोकप्रियता किसी को समाजिक मर्यादाएं तोड़ने का अधिकार नहीं देती।

मोहम्मद जुबैर केस: उन्होंने स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा करते हुए कहा था, किसी नागरिक को अपनी राय रखने से रोकना असंवैधानिक है। सोशल मीडिया पर राय व्यक्त करने से रोकना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।

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अन्य प्रमुख फैसले

वह उस बेंच का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून पर रोक लगाई थी।

उन्होंने उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का निर्देश दिया।

उन्होंने वन रैंक-वन पेंशन (OROP) योजना को संवैधानिक रूप से वैध बताते हुए उसे बरकरार रखा।

वह सात-न्यायाधीशों की उस बेंच में शामिल थे जिसने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खोला था।

वह पेगासस स्पाइवेयर मामले और प्रधानमंत्री मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान हुए सुरक्षा उल्लंघन की जाँच करने वाली बेंच का भी हिस्सा थे।

जस्टिस सूर्यकांत का अनुभव और प्रगतिशील रुख, उनके आगामी कार्यकाल को देश के न्यायिक इतिहास में महत्वपूर्ण बना सकता है।

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