Narendra Bhadoria
नरेन्द्र भदौरिया

सरपट, सपाट, बताशा, भगदड़ जैसे हिन्दी के 367 शब्दों को अंग्रेजी ने दो वर्षों में अपनाया है। इसके लिए इंग्लिश के विद्वानों की समिति समय-समय पर निर्णय करती है। उनकी भाषा का शब्द कोष बहुत छोटा है। भारतीय भाषाओं के शब्द भाव प्रधान हैं। साहित्य व्यक्ति परक न होकर ज्ञान और संस्कारों से युक्त है। दूसरी भाषाओं के प्रति भारत के किसी भाषा में तिरस्कार का भाव नहीं है। भारत की भाषाओं ने न इंग्लिश सहित अनेक विदेशी भाषाओं के अच्छे शब्दों को समाहित किया है। हिन्दी भाषी समाज ने ऐसे शब्दों को सदाशय से लिया। इसका अर्थ यह नहीं कि हिन्दी ने अपना वास्तविक कलेवर खो दिया। सच तो यह है कि हिन्दी के मौलिक स्वरूप के प्रति आदर और आग्रह बढ़ा है।

हिन्दी के एक आचार्य आनन्द प्रकाश ने हिन्दी के शब्दों का संग्रह किया है। उनका नया शब्द कोष बहुत विशाल है। इनका मानना है कि हिन्दी के समस्त शब्दों का संग्रह पूरा होना अभी शेष है। इसके लिए आनन्द प्रकाश ने 40 वर्षों से अधिक का समय लगाया है। निरन्तर इस काम को कर रहे हैं। इनका कहना है कि हिन्दी जितने चाहे उतने शब्द संस्कृत से ले सकती है।

इसके साथ ही अरबी, फारसी, पुर्तगाली, इंग्लिश, फ्रेंच और जर्मन भाषाओं से भी हिन्दी ने अपने शब्द कोष में स्थान दिया है। संस्कृत तो हिन्दी के लिए एक अनन्त शब्दकोष की तरह है। संस्कृत भाषा में लगभग 2000 धातुएं हैं। एक धातु में दस प्रत्यय, तीन पुरुष, तीन वचन, तीन लिंग, सात विभक्तियां और बीस उपसर्ग होते हैं। यदि एक धातु से ही शब्द बनाना शुरू करें तो 11 लाख शब्द बन सकते हैं।

भारत के अनेक भाषाविद मानते हैं कि भारत की जिन स्थानीय भाषाओं की जननी संस्कृत के पास 2000 धातुएं हों उसके आधार पर तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम सहित सभी भारतीय भाषाओं के शब्द कोष कभी रिक्त नहीं रह सकते। यह संकट तो इंग्लिश और यूरोप की अन्य भाषाओं के समक्ष है। जिनका अपना कोई व्याकरण नहीं है। उनके पास संस्कृत जैसी देव भाषा नहीं है। उनका इतिहास और साहित्य बहुत न्यून काल का है।

प्राय: मनगढ़न्त कथ्य पिरोये गये हैं। हिन्दी सहित भारत की भाषाएं मौलिक चरित्र की हैं। उन्हें संस्कृत के व्याकरण का व्यापक आधार प्राप्त है। करोड़ों शब्दों के सृजन का आधार हिन्दी के पास है। हिन्दी भाषा अब इतनी समृद्ध हो गयी है कि दुनिया की नाना भाषाओं को अपने शब्दों का दान कर रही है।

इंग्लिश, फ्रेंच और जर्मन भाषाओं ने पिछले 18 वर्षों में हिन्दी तथा संस्कृत के 2700 से अधिक शब्द ग्रहण कर अपने कोष को समृद्ध बनाया है। इनमें अरे यार, हटो यार, चलो यार जैसे शब्द भी शामिल हैं। जो शुद्ध रूप से हिन्दी की बोलियों से उपजे हैं। हिन्दी की सहयोगी भाषाओं भोजपुरी, मैथिली, अवधी और ब्रज भाषाओं के अनेक शब्दों को यूरोपीय भाषाओं ने अपने शब्दकोषों में स्थान दिया है।

हिन्दी के शब्द केवल इंग्लिश ग्रहण कर रही है ऐसा नहीं है। दक्षिण अफ्रीका में जहां लगभग 09 लाख 22 हजार लोग हिन्दी बोलते हैं वहां कि बोलियों में हिन्दी के शब्दों की बढ़ती लोकप्रियता से यह प्रकट होता है कि आने वाले दो दशकों में दक्षिण अफ्रीका की भाषाओं में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को बड़ी महत्ता मिलने वाली है।

संसार में हिन्दी बोलने वाले लोगों की संख्या एक अरब 37 करोड़ से अधिक हो चुकी है। अकेले उत्तर भारत में 72 करोड़ लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते, लिखते तथा समझते हैं। अमेरिका में 649000 लोग हिन्दी बोलते हैं। मॉरीशस में 685000 लोगों ने अपनी भाषा के रूप में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का उल्लेख किया है। यमन में 232000, युगाण्डा में 148000, नेपाल में आठ लाख लोगों की भाषा हिन्दी है। हिन्दी के जो शब्दकोष सर्वमान्य हैं उनमें 237000 से अधिक शब्द संग्रह हो चुका है।

आनन्द प्रकाश की मानें तो वह पाँच वर्ष पूर्व तक साढ़े चार लाख से अधिक शब्द संग्रहीत कर चुके थे। अंग्रेजी भाषाविद यह बात मानते हैं कि हिन्दी का प्रभाव क्षेत्र बहुत बड़ा है। विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या हिन्दी भाषा से जुड़ी है। इंग्लिश के आक्सफोर्ड डिक्शनरी को सबसे प्रामाणिक माना जाता हो। इसमें अब तक 171478 शब्दों का संग्रह है। इंग्लिश ने अपने शब्दकोषों से 47156 शब्दों को बाहर कर दिया है। इंग्लिश के विद्वानों ने हिन्दी के अतिरिक्त अरबी, जर्मन और हिस्पानी भाषाओं से शब्द लिये हैं। इंग्लिश के भाषाविदों का कहना है कि उसके रूढ़ शब्दों जिन्हें हटाया गया है उनके स्थान पर हिन्दी के शब्द अधिक लोकप्रिय और सहज हैं।

संसार में हिन्दी के विभिन्न रूप

हिन्दी के सम्बन्ध में एक वर्गीकरण हाल ही में विश्व के विभिन्न भाषाविदों ने प्रस्तुत किया है। इनका मानना है कि हिन्दी धीरे-धीरे विश्व के भाषायी मंचों पर लोकप्रिय हो रही है। हिन्दी अपने आठ रूपों में विश्व में इन दिनों प्रचलित है। यह हैं इण्डो-यूरोपियन हिन्दी, इण्डो-ईरानी हिन्दी, इण्डो-आर्यन हिन्दी, सेन्ट्रल जोन की हिन्दी (यह मूल रूप से उत्तर भारत में बोली जाने वाली मिश्रित बोलियों वाली हिन्दी है), वेस्टर्न-हिन्दी, हिन्दुस्तानी-हिन्दी, खड़ी बोली और साहित्यिक सस्कृत प्रधान हिन्दी।

इस वर्गीकरण का तात्पर्य इतना ही है कि हिन्दी अपने विविध रूपों में विश्व में आच्छादित हो रही है। संसार के विभिन्न देशों में हिन्दी के यह रूप उनकी स्थानीय भाषा के साथ मेल से बन रहे हैं। जैसा कि भारत में भी दिखायी देता है कि अनेक क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करते हुए वहाँ जो हिन्दी बनती हैं उसका अनूठा रूप लोकप्रिय होता है।

हिन्दी भाषा की विशेष बात यह है कि पिछले लगभग 1000 वर्षों से अनेक झंझावात झेल कर निरन्तर बढ़ रही है। इसमें बहुत बड़ा योगदान भारत की सन्त परम्परा का है। घुमक्कड़ सन्त विभिन्न स्थानों पर जाकर वहाँ की स्थानीय भाषाओं के शब्दों को हिन्दी के प्रवाह में घोलते आ रहे हैं। कालान्तर में यह सभी शब्द हिन्दी में पूरी तरह समाहित होते गये। यह बात सही है कि हिन्दी का शब्दकोष गढ़ने वालों को बहुत कठिनाई हो रही है।

कोई नहीं बता सकता कि हिन्दी में इस समय कुल कितने शब्द प्रचलन में आ चुके हैं। यह आकलन है कि सवा अरब लोग हिन्दी बोलते हैं। कई बार नाविन्य शब्दों के सन्दर्भ में यह अन्वेषण करना कठिन हो जाता है कि वह किस भाषा से मूलत: प्रसूत हुआ था। अनेक शब्द विविध भाषाओं से होकर हिन्दी के प्रवाह में आ जाते हैं।

दुनिया के 156 विश्वविद्यालय ऐसे हैं जहां हिन्दी पढ़ायी जाती है। चीन की मण्डारिन भाषा को संसार में सर्वाधिक लोग बोलते हैं। फिर भी चीन में सात विश्वविद्यालयों में हिन्दी का पठन-पाठन चल रहा है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार को लगता है कि यदि उसके व्यापारी और तकनीशियन अच्छी प्रकार से हिन्दी समझने लगे तो भारत के साथ व्यापार को बढ़ाने में सहायता मिलेगी। भारत में जिस तरह निवेश के लिए चीन उतावला है उसे देखते हुए वहां की सरकार को बड़ी संख्या में हिन्दी भाषी चीनीयों की आवश्यकता है। चीन में नब्बे अल्पसंख्यक जातियां हैं। यह मण्डारित भाषा अर्थात चीनी भाषा नहीं बोलती। इनमें से 22 जनजातियां हिन्दी के शब्दों को प्रचुर मात्रा में प्रयोग करती है। उनकी बोलियों में बहुतांश हिन्दी और संस्कृत के शब्द हैं।

चीनी भाषा का व्याप संसार में बिल्कुल नहीं है। जिस तरह हिन्दी, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका और एशिया के अनेक देशों में बोली जाती है। उस तरह मण्डारिन कहीं नहीं बोली जाती। हिन्दी की देवनागरी लिपि सबसे सरल मानी जाती है। यह बात भाषा विज्ञानी अच्छी प्रकार संसार को समझाते आ रहे हैं। हिन्दी का व्याकरण भी सबसे समृद्ध है। संस्कृत, पाली, प्राकृत, मराठी, नेपाली आदि भाषाओं में हिन्दी की देवनागरी लिपि को अपनाया गया है।

हिन्दी के लिए भारत की राजनीति बाधक है

संसार हिन्दी के बढ़ते साम्राज्य को बड़ी उत्सुकता से निहार रहा है। इसके विपरीत भारत के राजनीतिक परिदृश्य का बहुत बड़ा वर्ग हिन्दी को नकारता आ रहा है। उत्तर और दक्षिण भारत की भाषाओं के मध्य संस्कृत भाषा एक सेतु की तरह है। हिन्दी भाषी लोगों के मन में दक्षिण भारत की किसी भाषा के प्रति द्वेष का भाव नहीं है। दक्षिण की भाषाओं की प्रगति में हिन्दी कभी बाधक नहीं बन सकती।

जिस इंग्लिश भाषा को तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल जैसे राज्यों के राजनीतिक नेताओं ने सेतु की तरह अपनाया है उससे अधिक संस्कृत भाषा उपयोगी हो सकती थी। हिन्दी भाषा को दक्षिण के नेताओं ने नाहक घृणा का पात्र बना दिया। बदली हुई परिस्थितियों में दक्षिण भारतीय राज्यों के जनमानस को यह बात समझ में आ रही है कि अपने आप को हिन्दी विहीन करके उन्होंने अपना ही अहित किया है।

एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी है कि दक्षिण राज्यों के लोगों को यदि हिन्दी ठीक प्रकार से आने लगे तो वह उत्तर भारत की सरकारी और गैर सरकारी सेवाओं में अधिक अवसर प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे राज्यों के लोगों को छलावे में लेकर यह समझाया गया कि उनकी अपनी भाषा का व्याप बहुत न्यून है। इसलिए उन्हें अंग्रेजी का सहारा लेना चाहिए। विश्व का परिदृश्य स्पष्ट कर रहा है कि ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और कनाडा के अतिरिक्त इंग्लिश का कही प्रावल्य नहीं है।

ब्रिटेन और अमेरिका भी अब बहुभाषी युवकों को रोजगार प्रदान करने में प्राथमिकता देते हैं। इंग्लिश के साथ उनके नियन्ताओं को एशिया की सबसे लोकप्रिय भाषा हिन्दी की उपादेयता अधिक लगती है। यही कारण है कि दक्षिण के राज्यों में हिन्दी के पठन-पाठन के प्रति अभिरुचि जगी है। सांसर के विभिन्न देशों में हिन्दी के द्विभाषिये अधिक रोजगार पा रहे हैं।

अंग्रेजी की उत्पत्ति ब्रिटेन से हुई। ब्रिटेन की आबादी 59300000 है। इसमें आयरिस, वेल्स, स्काटिश लोग अपनी बोलियों और भाषा पर इतना गर्व करते हैं कि वह अंग्रेजी समझने की स्थिति में भी जवाब देने को तैयार नहीं होते। उन्हें अंग्रेजी से चिढ़ है। इसी प्रकार अमेरिका की आबादी 28 करोड़ 23 लाख है। अमेरिका में भी लातीनी लोग हिस्पानी भाषा बोलते हैं। वह अंग्रेजी के स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते तक नहीं।

कनाडा की तीन करोड़ आबादी में से आधी आबादी ही अंग्रेजी बोलती है। इनके अलावा न्यूजीलैण्ड और आस्ट्रेलिया अंग्रेजी भाषी हैं। इन दोनों की आबादी सवा तीन करोड़ से अधिक नहीं है। जिसने अंग्रेजी को अपना रखा है। पूरे विश्व में अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या 42 करोड़ 22 लाख से ज्यादा नहीं है। जबकि अकेले भारत में एक अरब लोग हिन्दी बोलते हैं। उत्तर भारत में ही 62 करोड़ से ज्यादा लोग हिन्दी अच्छी प्रकार से जानते हैं। सबसे मजेदार बात यह है कि अंग्रेजी के जन्मस्थान ब्रिटेन के आस-पास का कोई देश अंग्रेजी का प्रयोग नहीं करता।

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फ्रांस जर्मनी, पुर्तगाल, इटली, स्पेन, स्विट्‌जरलैण्ड में से कहीं भी विज्ञान, साहित्य की पढ़ाई अंग्रेजी में नहीं होती। इन देशों ने अपनी भाषा के बल पर ही विकास किया है। इनके यहां भी विज्ञानी हैं जिन्होंने विश्व में चमत्कार किये हैं। चीन, रूस, जापान में से कोई देश अंग्रेजी के बल पर आगे नहीं बढ़ा। सबकी अपनी भाषाएं हैं। उन्हीं भाषाओं में इनके बच्चे मिलता विज्ञान और साहित्य की पढ़ाई करते हैं। यह भ्रम जानबूझ कर फैलाया गया है कि दुनिया में व्यापार और लोक व्यवहार के लिए अंग्रेजी आवश्यक है। यदि ऐसा होता तो जिन देशों में अंग्रेजी का प्रयोग नहीं होता उन देशों के लोग न तो विज्ञानी बनते और न ही व्यापार कर पाते। वास्तविकता इतनी ही है कि भारत में हिन्दी के प्रति हेय भावना विकसित की गयी है। इसके लिए किसी दूसरे को दोष देने के बजाय हिन्दी भाषीय लोगों को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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