Haryana Elections: अवसरवाद की राजनीति में कोई अपना कब पराया हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। सरकार में मलाई काटने वाले चुनाव के दौरान उसी पार्टी को डुबोते नजर आते हैं। हरियाणा चुनाव में इस बार बीजेपी के खिलाफ जहाँ सत्ता विरोधी लहर चल रही है, वहीं पार्टी के अपने बेगाने होते नजर आ रहे हैं। इनमें अधिकतर वहीं नेता हैं जो दूसरे दलों से आकर बीजेपी में शामिल हुए थे। अशोक तंवर (Ashok Tanwar) ने बीजेपी को झटका देकर कांग्रेस में पुनः शामिल हो गए हैं। इसके पीछे कई राजनीतिक रणनीतियाँ बताई जा रही हैं। हरियाणा विधानसभा चुनावों के करीब आते ही तंवर की यह वापसी विशेष महत्व रखती है।
पहले वह बीजेपी में शामिल हुए थे, जहां उन्हें दलित समुदाय का एक महत्वपूर्ण चेहरा माना गया। बीजेपी ने तंवर (Ashok Tanwar) के माध्यम से कांग्रेस पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाने की कोशिश की, लेकिन अब उनका कांग्रेस में लौटना इस रणनीति को कमजोर कर सकता है। सूत्रों के मुताबिक, तंवर ने विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, लेकिन बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, जिससे वह असंतुष्ट हो गए। तंवर ने पार्टी के कई बड़े नेताओं से मुलाकात की और अपनी स्थिति स्पष्ट की, लेकिन उनकी मांगों का कोई असर नहीं हुआ।
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तंवर की वापसी कांग्रेस के लिए एक सकारात्मक संकेत है, क्योंकि इससे उन्हें हरियाणा में एक मजबूत दलित वोट बैंक हासिल हो सकता है। उनकी पहचान और अनुभव कांग्रेस को आगामी चुनावों में महत्वपूर्ण लाभ दिला सकते हैं। इस प्रकार, तंवर का कांग्रेस में लौटना न केवल व्यक्तिगत बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण कदम है, जो हरियाणा की राजनीतिक धारा को बदल सकता है।
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