नई दिल्ली। देशभर में आज गुरु गोबिंद सिंह की जयंती पूरे धूम-धाम से मनाई जा रही है। देश में प्रकाश पर्व के रूप में गुरु गोविंद सिंह की जयंती मनाई जाती है। गुरु गोविंद को बचपन में गोबिंद राय के नाम से पुकारा जाता था। पटना साहिब में सिखों के 10वें गुरु, गोबिंद सिंह का जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष के सप्तमी तिथि को वर्ष 1966 में हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी था। गुरु गोबिंद सिंह के पिता सिखों के 9वें गुरु थे। गुरु गोबिंद सिंह ने हमेशा प्रेम, एकता और भाईचारे का संदेश दिया। गुरु गोबिंद सिंह बचपन में पटना में तीर-कमान चलाना, बनावटी युद्ध करना जैसे खेल खेलने में रुचि रखते थे। इसके चलते बच्चे उन्हें सरकार मानने लगे थे। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में हिंदी, फारसी, संस्कृत, बृज आदि भाषाएं सीख ली थी।
गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रंथ साहिब को पूरा करके खुद को गुरु के रूप में सुशोभित किया। गुरु गोबिंद सिंह की कृतियों के संकलन का नाम दसम ग्रंथ है। आध्यात्मिक गुरु होने के साथ ही गुरु गोबिंद सिंह कवि और दार्शनिक भी थे। उन्होंनें बैसाखी के दिन वर्ष 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की। साथ ही उन्होंने सिखों के लिए कृपाण और श्रीसाहिब धारण करना अनिवार्य कर दिया। गुरु गोबिंद सिंह ने ही सिखों के लिए पांच ककार जरूरी किया। इसमें सिखों के लिए केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा धारण करने की प्रथा है।
गुरु गोबिंद सिंह काफी निडर और बहादुर योद्धा थे। इसका अंदाजा उनके बारे में लिखे गए इस दोहे से लगाया जा सकता है- सवा लाख से एक लड़ाऊ, चिड़ियों सों मैं बाज तड़ाऊं, तबे गोबिंद सिंह नाम कहाऊं। उन्होंने समाज में फैले भेदभाव को समाप्त कर समानता लाने का प्रयास किया था। साथ ही लोगों में आत्म सम्मान और निडर रहकर जीने की भावना पैदा की थी। धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोबिंद सिंह ने मुगलों से लड़ते हुए पूरे परिवार को न्यौछावर कर दिया। उनके दो बेटे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह को चमकौर के युद्ध में शहादत मिली थी। जबकि दो अन्य बेटे बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहंद के नवाब ने दीवारों में जिंदा चुनवा दिया था।