बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन ने फतवा और मौलवियों पर एक गंभीर प्रश्न उठायी है। इस गंभीर प्रश्न पर दुनिया भर में संपूर्ण व्याख्या होनी चाहिए। फतवे और मौलवियों को लेकर उन्होंने कौन सा प्रश्न उठाया है? उनका प्रश्न है कि मनुष्यता का सिर कलम करने का फतवा देने वाला हिंसक मुल्ला-मौलवी हीरो कैसे हो सकता है? सिर कलम का फतवा देने वाले को कोई धर्म अपना हीरो कैसे बना सकता है? मुस्लिम फतवे के कारण हिंसा हो रही है, मुस्लिम फतवे के कारण सिर कलम किये जा रहे हैं। मुस्लिम फतवे धार्मिक एकता की कब्र खोद रहे हैं।
मुस्लिम फतवे के कारण मनुष्यता के समीकरण डगमगा रहा है, मुस्लिम फतवे से घृणा बढ़ रही है, मुस्लिम फतवे के कारण आत्मघाती दस्ते बनते हैं, मुस्लिम फतवे के कारण एक विशेष समुदाय पागलपन की ओर गतिमान हो गया है। तसलीमा नसरीन ने फतवे पर प्रश्न, सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमले के बाद उठाया है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में सलमान रुश्दी पर मजहबी तौर पर एक पागल मुस्लिम युवक ने चाकुओं से हमला कर दिया था। इस हमले में सलमान रुश्दी गंभीर रूप से घायल हुए थे। मुस्लिम फतवे देने वालों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने की जरूरत है। मुस्लिम फतवे देने वालों को भी फांसी की सजा दी जानी चाहिए।
तसलीमा नसरीन के पहले भी कुछ ऐसा ही प्रश्न केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने उठाया था। उन्होंने भी कहा था कि इस्लाम की गलत व्याख्या कर मुल्ला-मौलवी मदरसों में बच्चों को सिर कलम करने और हिंसा करने की शिक्षा देते है। उनका यह बयान राजस्थान में कन्हैयालाल के सिर कलम करने के बाद आया था। राजस्थान में कन्हैयालाल का सिर कलम करने पर सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में फतवे की इस्लामिक राजनीति पर गंभीर प्रश्न खड़े किये गये थे और यह सोचने के लिए दुनिया विवश हुई थी कि इस आधुनिक युग में भी बर्बर और कबीलाई युग की मानसिकता लागू करना बड़ा ही घृणा का काम है। अजमेर के दरगाह के खादिम सलमान चिश्ती ने नूपुर शर्मा के प्रकरण पर सिर कलम का फतवा दिया था और सिर कलम करने वालों को इनाम देने का फतवा दिया था।
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खादिम सलमान चिश्ती ने अपने फतवे में कहा था कि नूपुर शर्मा का सिर कलम करने वाले को अपनी पूरी संपत्ति दे देगा, अपना घर भी दे देगा। ऐसे इस प्रश्न पर कोई एक दो फतवे सामने नहीं आये थे बल्कि दर्जनों फतवे सामने आये थे। सभी फतवों में नूपुर शर्मा का सिर कलम करने की बात थी। नूपुर शर्मा को सुरक्षा मिल गयी। पर सोशल मीडिया पर नूपुर शर्मा का समर्थन करने वाले राजस्थान के कन्हैयालाल और महाराष्ट के उमेश कोल्हे का सिर कलम कर दिया गया था। सोशल मीडिया पर कन्हैयालाल का सिर कलम करने वाले रियाज अहमद और गौस अहमद आदि का हीरो बताया गया और इस्लाम का सिपाही बताया गया था।
अभी-अभी ईरान के मजहबी गुरू अयातुल्ला खुमैनी का फतवा फिर से चर्चा में आया है। कोई आज नहीं बल्कि 32 साल पूर्व अयातुल्ला खुमैनी ने एक फतवा जारी किया था। यह फतवा अंग्रेजी के मशहूर साहित्यकार सलमान रुश्दी के खिलाफ दिया था। सलमान रुश्दी ने इस्लाम की बुराइयों पर एक पुस्तक लिखी थी। पुस्तक का नाम था द सेटेनिक वर्सेज। सेटेनिक वर्सेज का हिन्दी में अर्थ शैतान की आयतें होता है। इस पुस्तक के बाजार में आते ही मुस्लिम दुनिया में तहलका मच गया था। मुस्लिम दुनिया उबाल पर थी। मुस्लिम आबादी के कोने-कोने से सलमान रुश्दी के सिर कलम करने की मांग उठ रही थी और फतवा दिया जा रहा था। अयातुल्ल्ला खुमैनी उस समय ईरान का नया-नया मौलवी और तथाकथित रूप से मजहबी गुरू बना था। अयातुल्ला खुमौनी को इस्लामिक क्रांति का जनक भी कहा जाता था। उस काल में ईरान पर राजशाही कायम थी और राजशाही बहुत ही उदार थी जहां पर महिलाओं की यूरोप जैसी आजादी थी।
राजशाही को दफन कर अयातुल्ला खुमैनी ने घोर दमनकारी और मनुष्यता की कब्र बनाने वाली नीति अपनायी थी। महिलाओं को पुरूष की भोग वस्तु और पुरूष का गुलाम बना कर चाहार दिवारी में कैद कर दिया गया था। अयातुल्ला खुमैनी के इस कुकृत्य को मुस्लिम आबादी ने इस्लामिक क्रांति का नाम दे दिया था। इस कारण दुनिया की मुस्लिम आबादी के लिए अयातुल्ला खुमैनी एक हीरो के समान था। अयातुल्ला खुमैनी ने सलमान रुश्दी के खिलाफ फतवा दिया था और मुस्लिम आबादी से कहा था कि सलमान रुश्दी को जीने का अधिकार नहीं है, उसकी हत्या जरूरी है, सलमान रुश्दी की हत्या करने वाला जन्नत पायेगा।
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अयातुल्ला खुमैनी की फतवे के बाद क्या हुआ? यह जानकार हैरानी ही होगी और इस्लाम की हिंसक राजनीति ही सामने होगी। सलमान रुश्दी का जीवन नर्क बन गया। उसकी जिंदगी सुरक्षा में कैद हो गयी। मुस्लिम आबादी उसकी जिंदगी समाप्त करने के लिए हाथ धोकर पीछे पड़ गयी। उसकी पुस्तकें प्रतिबंधित कर दी गईं। सलमान रुश्दी की कोई भी पुस्तक रखने वालों को मौत की घाट उतारने की धमकियां दी गईं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। फिर भी भारत में भी द सेटेनिक वर्सेज पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सलमान रुश्दी की पुस्तक की तथ्यात्मक बातों पर गौर करने की बात तो दूर रही थी पर जिन लोगों ने उनकी पुस्तकें देखी और पढ़ी नहीं थी वे लोग भी अयातुल्ला खुमैनी के रास्ते पर चल रहे थे और सलमान रुश्दी के खून के प्यासे बन गये थे।
इस्लाम के सर्वोच्च प्रतीक का तौहीन कर कोई जिंदा नहीं रह सकता। यह बात उस समय सच हो गयी, जब सलमान रुश्दी का सिर कलम करने के लिए एक मुस्लिम युवक न केवल उसके पास पहुंच गया, बल्कि उस पर चाकू से हमला कर दिया। सलमान रुश्दी के ऊपर चाकू से कई वार किये गये। यह हमला जानलेवा था। भाग्य भरोसे सलमान रुश्दी जरूर जीवित हैं पर उनकी शरीर के कई अंग जरूर क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।
सलमान रुश्दी पर इस हमले से जहां दुनिया का शांतिप्रिय लोग चिंतित थे, वहीं मुस्लिम कट्टरवादी खुश थे। सोशल मीडिया पर मुस्लिम कट्टरपंथियों का कहना था साला अब तक जिंदा है, उसको मर जाना चाहिए, वह आज नहीं कल मारा ही जायेगा। सोशल मीडिया पर ऐसी टिप्पनियां सरेआम हुई।
ऐसे फतवे का शिकार भारत में कमलेश तिवारी, कन्हैंया लाल, उमेश कोल्हें सहित कई लोग हो चुके हैं। फ्रांस की पत्रिका शार्ली एब्डो पर हमला कर एक दर्जन पत्रकारों की हत्या हुई, फ्रांस के शिक्षक की हत्या हुई, पाकिस्तान के एक राज्य के गर्वनर की हत्या फतवे के कारण हुई। पाकिस्तान में ऐसी हत्याएं तो आम बात है। तसलीमा नसरीन को फतवे के कारण ही अपनी जन्मभूमि से बेदखल होना पड़ा था और अपने देश से भी बेदखल होना पड़ा था। तसलीमा नसरीन निर्वासित जीवन जीने के लिए अभिशप्त है।
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असली गुनहगार वे नहीं हैं, जो जन्नत पाने के लालच में मनुष्यता का खून करते हैं। असली गुनहगार वे हैं जो तथाकथित इस्लाम के तौहीन करने वालों का सिर कलम करने के फतवे देते हैं। इसलिए फतवे के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय नियामकों में अब कड़ी व निर्णायक चर्चा जरूरी है। फतवा देने वालों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फांसी पर लटकाने का कानून बनाना ही होगा। अन्यथा वार ऑफ सिविलाइजेशन की हेमिंगटन थ्योरी सच साबित होगी। ऐसी स्थिति बनी रहेगी तो फिर सभी धर्मों को मिल कर ही आक्रामक और हिंसक इस्लाम से लड़ना होगा। इसलिए फतवे देने वालों को फांसी की सजा मिलनी ही चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)