आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
सुना है कि धीरेन्द्र शास्त्री दरबार सरकार का परिवार 61 लाख का हो गया। 61 लाख लोगों ने धीरेन्द्र शास़्त्री दरबार सरकार के प्रति आस्था जतायी है, उनके सभी कार्यक्रमों से जुड़े हुए हैं। धीरेन्द्र शास़्त्री धर्म की रक्षा के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, वे हिन्दुत्व को जगाने और विधर्मियों को चेतावनी देने जैसे सराहनीय कार्य कर रहे हैं। पर हमें क्या खुश होना चाहिए? क्या यह मान लेना चाहिए कि ये 61 लाख लोग हिन्दुत्व की लड़ाई लड़ने वाले हैं और समय पड़ने पर कमलेश तिवारी, चंदन गुप्ता, रामबाबू गुप्ता आदि बलिदानियों की तरह हिन्दुत्व के लिए काम करेंगे?
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 61 लाख में 61 लोग भी नहीं होंगे, जो हिन्दुत्व के लिए लड़ने के लिए आगे आयेंगे। अगर 61 लाख लोग सड़कों पर उतर कर हिन्दुत्व की बात करने लगे या फिर आंदोलन कर दें, तो फिर सेक्युलर लोग, कांग्रेस, कम्युनिस्ट और विधर्मियों के पैर जमीन से उखड़ जाएंगे, ये लोग पाकिस्तान भागने के लिए तैयार हो जायेंगे। फिर ये यह भी कहने लगेंगे कि हिन्दुत्व ही सर्वश्रेष्ठ है, आईकॉन है और हमारी आस्था हिन्दुत्व में है।
61 लाख में से 61 भी हिन्दुत्व की लड़ाई के लिए सामने नहीं आएंगे। ये लोग लालची हैं, सिर्फ नाचने-गाने और मनोरंजन करने वाले हैं। इन्हें कमलेश तिवारी, चंदन गुप्ता जैसे दर्जनों बलिदानियों का नाम तक याद नहीं होगा। नूंह दंगे की खतरनाक राजनीति भी इन्हें नहीं मालूम होगा। मेवात में 50 से अधिक गांव हिन्दू विहीन कर दिये गये, इन्हें ये भी मालूम नहीं होगा, बिहार के कई जिलों में हिन्दुओं को अपने पर्व-त्योहार करने पर हिंसा का शिकार बनाया जाता है, इन्हें यह भी मालूम नहीं होगा, केरल, पश्चिम बंगाल आदि की बात तो छोड़ दीजिये। ये 61 लाख लोग एक साथ हिन्दुत्व के लिए खड़े हों जाएं तो फिर विधर्मियों की हिंसा समाप्त हो जायेगी, ये पाकिस्तान भागने लगेंगे।
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ये धर्म वीर नहीं होते हैं, ये उसी भगवान की रक्षा करने वाले लोग नहीं होते हैं, जिनके प्रति ये आस्था रखते हैं। दिल्ली मे सैकड़ों मंदिर तोड़ डाले गये, पर विरोध के लिए सौ हिन्दू भी नहीं सामने आते। इनकी आस्था में लालच और लोभ होता है। धीरेन्द्र शास्त्री के साथ जुड़ने वाले लोग लालची और सेक्युलर संस्कृति के ही हैं। ये सिर्फ राधे-राधे कह कर नाचने गाने वाले हैं। इन्हें भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र और भगवान राम के धनुष तथा भगवान शंकर के त्रिनेत्र के साथ सहचर होना पसंद नहीं होता है। धीरेन्द्र शास्त्री जैसे सभी धर्मरक्षकों और संतों को यह चाहिए वे अपने भक्तों को हिन्दुत्व के लिए लड़ना भी सिखाये और हिन्दुत्व के लिए लड़ने वालों को सहायता करना भी सिखाएं। लेकिन अधिकतर हिन्दू संत भी अपनी ही चरणवंदना कराते हैं, धर्म के लिए लड़ना नहीं सिखाते हैं। इसीलिए कहीं भी दंगा होता है, हिन्दू ही शिकार होता है, हिन्दू ही अपमानित होता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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