संदीप पाल

काठमांडू: नेपाल की सियासत एक बार फिर से डगमगाती नज़र आ रही है। सरकार के खिलाफ बढ़ती आवाज़ें, भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप और विदेश नीति में चीन की तरफ बढ़ता झुकाव… इन सबने मिलकर देश को एक नए राजनीतिक संकट में धकेल दिया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार और उनकी पार्टी CPN-UML के भीतर भी असंतोष की आग धधक रही है, जो पूरे राजनीतिक परिदृश्य को एक नया मोड़ दे सकती है।

क्यों डोल रही है सरकार

नेपाल की राजनीति हमेशा से ही अलग-अलग धड़ों के टकराव का मैदान रही है। माओवादी समूह, आदिवासी संगठन और कुछ बाहरी ताकतों का दखल अक्सर सरकारों को हिलाता रहा है। ये ताकतें सत्तारूढ़ दल की नीतियों का विरोध करके आम जनता में नाराज़गी को हवा दे रही हैं।

भ्रष्टाचार के आरोपों ने बढ़ाई मुश्किल

सरकार पर कोरोना काल में मेडिकल सामान खरीद में बड़े पैमाने पर घोटाले के आरोप लगे हैं। प्रशासनिक फैसलों में पारदर्शिता की कमी और नेताओं के स्वार्थ ने जनता का भरोसा और भी कमजोर कर दिया है।

Nepal Protest 2025

चीन की दोस्ती और भारत से दूरी

प्रधानमंत्री ओली के कार्यकाल में नेपाल ने चीन के साथ रिश्तों को काफी मजबूत किया है। चीन की महत्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड’ परियोजना में शामिल होना और भारत के साथ सीमा विवादों ने देश की विदेश नीति के संतुलन को बिगाड़ दिया है। इससे उन लोगों में खासा नाराजगी है जो भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं।

पार्टी के युवा नेता भी खफा

सत्तारूढ़ पार्टी CPN-UML के भीतर ही युवा नेता सरकार के तरीकों से नाखुश हैं। उनका मानना है कि पार्टी का पुराना नेतृत्व नए बदलाव और खुले विचार-विमर्श के रास्ते में रोड़ा है। अब ये युवा नेता अपनी एक नई अलग पहचान बनाने की सोच रहे हैं, जहाँ वो अपने तरीके से काम कर सकें।

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क्या होगा आगे

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो नेपाल में जल्द ही नए राजनीतिक दल और आंदोलन जन्म ले सकते हैं। देश का युवा और शहरी वर्ग मौजूदा सरकार से मुंह मोड़ सकता है। इसका सीधा असर भारत और नेपाल के रिश्तों पर भी पड़ेगा, खासकर अगर नई ताकतें भारत के करीब रहने का फैसला करती हैं। उनका कहना है कि ये वक्त नेपाल के लिए एक अहम मोड़ है। एक तरफ सरकार अपनी सत्ता बचाने में जुटी है, तो दूसरी तरफ एक नया राजनीतिक भविष्य तैयार हो रहा है।

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