Chhath Festival 2025: भाइयों और बहनों, छठ का त्योहार आस्था और उमंग से भरा एक महापर्व है। यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता है। साल 2025 में यह शुभारंभ 25 अक्टूबर, शनिवार से होगा।
इस चार दिनों के पर्व की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, फिर ‘खरना’ किया जाता है। तीसरे दिन डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है और आखिरी दिन उगते सूरज को अर्घ्य देकर व्रत का पारण (खोलना) किया जाता है। चलिए, आज हम आपको इसके पहले दिन, यानी ‘नहाय-खाय’ की पूरी विधि और जरूरी नियमों के बारे में आसान भाषा में बताते हैं।
कैसे करें नहाय-खाय (विधि)
सुबह का रिवाज: इस दिन सूरज निकलने से पहले ही उठ जाएं।
स्नान है जरूरी: पवित्र नदियों जैसे गंगा-यमुना में स्नान करना शुभ माना जाता है। अगर नदी दूर है, तो घर पर नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान कर लें।
सफाई का ख्याल: स्नान के बाद घर के पूजा स्थल और रसोईघर की अच्छी तरह सफाई करें।
संकल्प लेना: पूजा स्थल पर दीप जलाकर छठी मैया का स्मरण करें और व्रत का संकल्प लें। संकल्प लेते समय आप यह मंत्र बोल सकते हैं:
मंत्र: ॐ अद्य अमुकगोत्रोअमुकनामाहं मम सर्व, पापनक्षयपूर्वकशरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
भोजन का समय: पूजा के बाद शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करें। इस भोजन के साथ ही छठ व्रत की असली शुरुआत हो जाती है। याद रहे, इस दिन सुबह पूजा के बाद ही कुछ खाना होता है, उससे पहले अन्न-जल ग्रहण नहीं किया जाता।
नहाय-खाय के दिन क्या खाएं
इस दिन व्रती लोग सात्विक और शाकाहारी भोजन ही करते हैं। आमतौर पर इसमें ये चीजें शामिल होती हैं।
कद्दू या लौकी की सब्जी
चने की दाल
चावल
खास बात: इस दिन भोजन में लहसुन और प्याज का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया जाता। साथ ही, खाना बनाते समय सेंधा नमक का ही प्रयोग करें।
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छठ व्रत के ये नियम हैं बेहद जरूरी
अगर आप छठ का व्रत रख रहे हैं, तो इन बातों का विशेष ध्यान रखें।
सफाई है पहली शर्त: पूरे व्रत में स्वच्छता का बहुत ध्यान रखना चाहिए।
व्रत में संयम: व्रत के दौरान बिना व्रत तोड़े, अन्न-जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
नमक का चुनाव: व्रत के पहले दिन के भोजन में सिर्फ सेंधा नमक ही इस्तेमाल करें।
मन की शांति: इन चार दिनों में किसी से झगड़ा-विवाद करने से बचें और मन को शांत रखें।
ये सारे नियम और विधियां भक्ति और आत्म-अनुशासन का संगम हैं, जो छठ महापर्व की महत्ता को और बढ़ा देती हैं।
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