अवंतिका सम्राट विक्रमादित्य से लेकर गोरखधाम पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ तक बीस सदियां और आठ दशक बीते। अब मोक्षपुरी अयोध्या का मूल रूप लौटता दिखा। कभी लोध राजपूत कल्याण सिंह का सूत्र यही गूंजा था: “रामलला हम आएंगे, मंदिर यहीं बनाएंगे।” मुख्यमंत्री पद से बर्खास्तगी और एक दिन तिहाड़ जेल में वे भुगते। उनका उत्सर्ग था।
याद आया उजबेकी लुटेरा जहीरूद्दीन बाबर, जो काबुल में अपनी कब्र में अब अकुला रहा होगा। गम गलत करने के लिए शराब खोज रहा होगा। इसी से वह पियक्कड़ मरा था। हालांकि उसके विध्वंस पर अब भव्य निर्माण हो रहा है। उसी ने यज्ञवेदी को ध्वस्त किया था, जहां कोशल नरेश दशरथ ने पूजा की थी। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म हेतु। अपनी पार्टी के तीन वादों में एक मंदिर वाला तो योगी आदित्यनाथ ने पूरा कर दिया। कश्मीर का विलय 370 हटने से वास्तविक हो गया। बस एक राष्ट्र, एक कानून का वादा शेष है।
सीएम योगी काबीना की 9 नवम्बर 2023 अयोध्या बैठक के परिवेश में इस जन-संग्राम में लालचंद किशनचंद आडवाणी (लालकृष्ण आडवाणी) का योगदान हमेशा याद रहेगा। सोमनाथ से अयोध्या के इस रथयात्री की स्मृति संजोयी रहेगी। यावत राम मंदिर रहेगा। याद कर लें दिसंबर का पहला सप्ताह, साल 1992 का। हजारों कार सेवक हर तरफ से राम जन्म भूमि पहुंच रहे थे। तब अटल बिहारी वाजपेई भी आये थे। अमौसी हवाई अड्डे पर उतरे। वहां लखनऊ के जिलाधिकारी अशोक प्रियदर्शी (आईएएस) ने उनसे कहा कि कार सेवा में नहीं जा सकते। गिरफ्तार करना पड़ेगा। अटल वापस जहाज में सवार हो गए। उल्टे दिल्ली लौट गए। फिर संसद में बाबरी ढांचे के विध्वंस पर चर्चा हुई।
अटल विहारी वाजपेयी ने कहा, “6 दिसंबर भारतीय इतिहास का सबसे काला दिवस है।” तब सारा भारत शौर्य दिवस मना रहा था। उसी दौर की बात है। भाजपा का शीर्ष-स्तरीय निर्णय था कि जैसे ही लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोका जाएगा तथा वे गिरफ्तार होंगे, भाजपा केंद्र से विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेगी। आडवाणी के रथ को बिहार में रोका जाना सिग्नल था। तब अटल विहारी कोलकाता के दमदम हवाई अड्डे से गुवाहाटी जा रहे थे। भाजपाई नेताओं ने उन्हें हवाई अड्डे पर सूचना दी कि लालू यादव की पुलिस ने आडवाणी को हिरासत में ले लिया है। मगर अटल असम यात्रा पर ही अड़े थे। फिर आग्रह हुआ तो वे दिल्ली आए और राष्ट्रपति भवन जाकर समर्थन वापस लिया। ऐसी घटनायें राम मंदिर आंदोलन के संदर्भ में रही हैं। फिर जो घटनाएं हुई वे सार्वजनिक जानकारी में हैं।
यहां एक आवश्यक उल्लेख और भी। जब कार सेवकों ने बाबरी ढांचा चकनाचूर कर डाला, तो बड़ा विवाद उठा कि क्या ऐसा करना उचित था, ठीक था ? जैसा कि आम तौर पर ढोंगीपन से लोग ग्रस्त होते हैं। कई बोले कि कार सेवकों ने असभ्य वारदात कर दी। वे सब भूल गए कि अयोध्या में बाबर और बाद में उसके पोते के पोते आलमगीर औरंगज़ेब ज्ञानवापी और मथुरा ही तोड़ने क्यों गए थे? हिन्दू बहुसंख्यकों के आस्था स्थल पर बर्बर सैन्य बल से उनका हमला क्या न्याय-संगत था? इस पर कांची कामकोटि पीठम के शंकराचार्य स्व. स्वामी जयेन्द्र सरस्वती ने बड़ा उपयुक्त कहा, “बाबरी बर्बर सैनिकों का हिसाब कार सेवकों ने बराबर कर दिया।”
इस वर्ष का दीपोत्सव (12 नवम्बर) यादगार रहेगा। राम राज्याभिषेक सीएम योगी (11 नवम्बर) को करेंगे। दीपोत्सव को लेकर की गई सजावट से श्रीराम जन्मभूमि, राम की पैड़ी, सरयू घाट से लेकर रामकथा पार्क तक आभा निखरी है। इस बार दीपोत्सव एक कीर्तिमान होगा। राम की पौड़ी पर 21 लाख दीप जलाए जाएंगे। राज्याभिषेक समारोह के लिए रामकथा पार्क तैयार है। सीएम योगी यहीं श्रीराम का राजतिलक करेंगे। अयोध्या को 30 लाख दीपों से रोशन होगी। रामनगरी में ऐसी सजावट की गई है कि रामायण युग जीवंत होगा। रामनगरी राममय हो उठेगी।
बाबरी विध्वंस की तीन वर्ष बाद पांच सौंवी बरसी होगी। तब तक मंदिर अधिक दिव्य और भव्य बन जाएगा। सीएम योगी से अपेक्षा है तब तक वे ज्ञानवापी और ईदगाह (मथुरा) को भी मुक्त करा लेंगे। राम जन्मभूमि संघर्ष में इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) की भूमिका का भी उल्लेख हो जाए। हमारे नागपुर इकाई के वरिष्ठ सदस्य जयंतराव हरकरे बताते हैं कि विचारक मोरोपंत पिंगले अक्सर बाबरी कब्जे पर राष्ट्रीय जनचेतना को जगाने से मीडिया के योगदान की मांग करते रहे। हमारे नागपुर यूनिट के पत्रकार मित्रों के आग्रह पर हमारे यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन ने जून 1984 को फैजाबाद में IFWJ का राष्ट्रीय अधिवेशन तय किया था। तभी मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित हुआ था। कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी को हरा कर।
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24 जून, 1984 के कुछ दिन पूर्व ही विश्व हिंदू परिषद ने दिल्ली के प्रेस क्लब में राम मंदिर पर एक प्रेस वार्ता की थी। पूरा हाल भरा था। मगर दूसरे दिन एक अक्षर भी कहीं भी नहीं छपा। हमारे नागपुर के साथियों के अनुरोध पर इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के अधिवेशन में 21 राज्यों के प्रतिनिधियों को हमारे यूपी यूनियन के लोग उस तंबू के पास ले गए जहां रामलला तब वास करते थे। दक्षिण भारतीय महिला पत्रकार तो रो दीं। राम जन्मभूमि की यह दुर्गत? फिर हमारे प्रतिनिधियों ने अयोध्या से लौटकर समस्त भाषाओं के दैनिकों में रामलला का टाटतले वास पर खूब लिखा। तब मीडिया कवरेज भी शुरू हो गया। IFWJ के तमाम साथियों ने विस्तार से लिखा। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि अयोध्या में श्रमजीवी पत्रकारों का राष्ट्रीय अधिवेशन केवल IFWJ का ही हुआ था। अर्थात आस्था को संजोने के उस राष्ट्रीय प्रयास में हमारा योगदान बड़ा रहा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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