
पहलगाम हिन्दू नरसंहार और पाकिस्तान का समर्थन करने वाले मुस्लिम वर्ग की खौफनाक, विभत्स और घृणित मानसिकता का कुछ उदाहरण और उनकी भाषा के कुछ उदाहरण यहां उपस्थित किया जा रहा है। कोई एक-दो प्रदेश से नहीं बल्कि पूरे भारत भर में मुस्लिमों ने सोशल मीडिया पर अस्वीकार, घृणित और नागरिकता विरोधी पोस्ट किये हैं। पहलगाम में हिन्दुओं के नरसंहार का समर्थन किया है और हिन्दुओं के नरसंहर के लिए पाकिस्तान को धन्यवाद दिया था। इनकी हिन्दू नरसंहार का समर्थन करने वाली भाषा कितनी जहरीली है यह भी देख लीजिये। ऐसे मुस्लिमों के वर्ग का कहना था कि ये आतंकी नहीं हैं बल्कि इस्लाम के संरक्षक हैं, वीर हैं। इस्लाम के फरमान को लागू करने का काम किया है।
इस्लाम कहता है कि काफिरों को जिंदा रहने का अधिकार नहीं है। कुरान में ऐसा स्पष्ट लिखा हुआ है। नाम पूछ-पूछ कर और कपड़े खोलवा-खोलवा कर पहचान कर मारना भी जायज है। अगर ऐसा नहीं करते तो फिर किसी मुस्लिम पर्यटक की भी हत्या हो सकती थी। पर्यटक गाइड की भी हत्या हो सकती थी, घोड़े वाले मुस्लिमों की भी हत्या हो सकती थी। इसलिए हिन्दुओं की पहचान लेना, उनके लिए जरूरी था। भारत को इस्लामिक देश बनाना है, भारत में शरियत कानून लागू करना है। ऐसा तब होगा जब हिन्दुओं का नरसंहार इसी तरह से होता रहेगा। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि पाकिस्तान परस्ती भी दिखायी। पाकिस्तान परस्ती में यह कहा गया कि हमें पाकिस्तान पर गर्व है। पाकिस्तान इस्लाम को झंडाबरदार है। पाकिस्तान ने इस्लाम और कुरान के संदेशों को लागू करने के लिए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण उपस्थित किया है। कश्मीर की आजादी के लिए उसने बहुत कुछ किया है। पहलगाम में हिन्दुओं का नरसंहार कराना यह न तो अंतिम प्रयास है और न ही अकेला प्रयास है। पाकिस्तान आगे भी ऐसा प्रयास करता रहेगा और हिन्दुओ के नरसंहार को अंजाम देता रहेगा। भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान का समर्थन करना चाहिए, तभी हम भारत में इस्लामिक शासन लागू करने में सफल होंगे।
ऐसे कुछ मामलों में सरकारों की सक्रियताएं देखने को तो मिली हैं पर अधिकतर मामलों को दबा दिया गया। क्यों दबाया गया? इस पर मंथन करेंगे तो फिर वही निष्कर्ष सामने आयेगा। यानी की वोट की राजनीति और मुस्लिम तुष्टिकरण। अगर ऐसे मामलों पर राज्य सरकारें अति सक्रियताएं दिखाती तो फिर उनका समर्थक वर्ग मुस्लिम नाराज हो जाता। यह भी अवधारणा टूट गयी कि अनजाने में और मूर्खता में ऐसी टिप्पणियां हुई थीं। ऐसी टिप्पणियां करने वाले लोग अनपढ़ और मानसिक तौर पर विक्षिप्त थे। इसीलिए ऐसी घृणित टिप्पणियों को अंजाम देने का काम किया गया है। यह तर्क सिर्फ और सिर्फ झूठा होता है। देशद्रोह की करतूत को छिपाने का एक हथकंडा मात्र होता है। क्योंकि सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग किसी भी स्थिति में अनपढ़ नहीं होते हैं। किसी भी स्थिति में मूर्ख नहीं होते हैं।
सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग पढे़-लिखे होते हैं, अपने को अति विद्धान और बुद्धिजीवी भी मानते हैं। विषय के विशेषज्ञ भी मानते हैं। इसलिए यह कहना कि अनजाने में ऐसी भूल हुई है वह अस्वीकार ही होना चाहिए। यह भी रेखांकित करता है कि ऐसी श्रेणी के लोग किसी भी स्थिति में सभ्य नागरिक नहीं हो सकते हैं। शांति के सहचर नहीं हो सकते हैं, भाईचारे के पक्षधर नहीं हो सकते हैं। अपनी ऐसी करतूतों से अपने ही देश का संहार करने और अपने ही देश को गृहयुद्ध में ढकलने का काम कर रहे हैं।
ऐसी करतूतों में कैसे-कैसे मुस्लिम लोग शामिल हैं, यह भी देख लीजिये। ऐसी करतूतों में मुस्लिम विधायक भी शामिल हैं। असम के मुस्लिम विधायक अमीनूल इस्लाम ने सीधे तौर पर पाकिस्तान को धन्यवाद दिया और कह दिया कि पाकिस्तान पर हमें गर्व है। हिन्दुओं का नरसंहार अनिवार्य है, इस्लाम इसका समर्थन करता है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उसने इस्लामिक शरिया के प्रति भी समर्थन जाहिर कर दिया। अमीनूल इस्लाम वह व्यक्ति है जो पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों को असम में बसाने और सरकारी भूमि पर कब्जा करने के लिए अवसर उपलब्ध कराता है। उन्हें हथियार देता है और भारत की नागरिकता के सभी कागजातों को उपलब्ध कराने का प्रयास करता है। असम आज पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों की अवैध घुसपैठ का शिकार है।
सरकारी जमीनों और पहाडों पर अवैध पाकिस्तानी-बांग्लादेशी मुसलमानों का कब्जा है। धन्यवाद हमें असम के मुख्यमंत्री हेमंता विश्वा शर्मा को देना चाहिए जिसने वीरता दिखायी और यह नहीं सोचा कि ऐसे तत्वों पर हाथ डालने से मुस्लिम वर्ग नाराज हो जायेगा। शर्मा ने तुरंत अमीनुल इस्लाम को गिरफ्तार कराया। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि असम पुलिस को उसने ऐसे देशद्रोहियो को खोजने और उन्हें देशद्रोही की करतूत का गुनहगार बनाने का आदेश दे दिया। असम पुलिस ने अभियान चलाया और सोशल मीडिया की निगरानी करने का काम किया। असम पुलिस ने फिर छह लोगों को गिरफ्तार किया, जिसने सोशल मीडिया पर पहलगाम का समर्थन किया था और हिन्दु नरसंहार पर खुशियां जतायी थी। अधिकतर लोग असम पुलिस की सक्रियता के बाद अपनी ऐसी घृणित और देशद्रोही करतूतों को सोशल मीडिया से हटा दिया था। इस कारण अन्य लोग असम पुलिस के हत्थे चढ़ने से बच गये। झारखंड में भी एक मुस्लिम युवक की गिरफ्तारी हुई है। मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ में गिरफ्तारियां हुई हैं। पर कई राज्यों ने सक्रियता नहीं दिखायी। इस कारण देशद्रोह का अंजाम देने वाले मुस्लिमों की गिरफ्तारियां नहीं हो सकी।
पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे सरेआम लगते हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे थे। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वालों को कोई सबककारी संदेश नहीं मिलता है। इस पर उदासीनता पसारी जाती है। इसे ढका-तोपा जाता है। जांच में हीलाहवाली होती है। पुलिस पर भारी दबाव होता है। दबाव के बावजूद पुलिस अगर ऐसे लोगों को गिरफ्तार करती है तो फिर कोर्ट इन्हें हल्के में छोड़ देती है। इनकी जमानत जल्द मिल जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान जिंदाबाद और आतंकी गतिविधियों में शामिल मुस्लिमों को महंगे वकील कहा से मिलते हैं। उन्हें और उनके परिजनों को आर्थिक मदद करने वाले कौन लोग हैं।
सही तो यह है कि ऐसे लोगों की मददगार और कोई नहीं बल्कि मुस्लिम वर्ग के धनाढ्य लोग ही होते हैं। हमारी सरकार की व्यवस्थाएं ऐसी श्रेणी के लोगों पर निगरानी का काम ही नहीं करती है। अगर किसी आतंकी और देशद्रोही को कपिल सिब्बल जैसा महंगा वकील मिल गया, तो उसके पीछे का सच उजागर होना चाहिए। मुकदमे लड़ने के लिए कपिल सिब्बल को तैयार करने के लिए पैसा कहां से आया? पाकिस्तान परस्त और आतंकी महंगे वकील रखकर कानून को भी अपना रखैल बना लेते हैं।
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पाकिस्तान परस्ती दिखाने वाले मुस्लिम कभी भी देश के नागरिक नहीं हो सकते हैं। हिन्दू नरसंहार का पक्ष लेने वाले और नरभक्षी आतंकियों को इस्लाम का झंडाबरदार मानने वाले लोग हिंसक और देशद्रोही हैं। संविधान में अधिकार है तो फिर कर्तव्य भी है। भारत में रहने और भारत की नागकिता के अधिकार का उपभोग आप करते हैं तो फिर भारत की सुप्रभुत्ता के प्रति आपका कर्तव्य है। ऐसी श्रेणी के मुसलमान भारतीय संविधान के कर्तव्य उल्लंघन के दोषी हैं। अब भारत सरकार को कुछ न कुछ कठोर कदम उठाना ही होगा। पाकिस्तान परस्ती दिखाने वालों को कठोर सजा देनी ही होगी। कठोर सजा नागरिकता के अधिकार से वंचित करना और भारत सरकार की सभी कल्याणकारी योजनाओं से भी वंचित करना अनिवार्य किया जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर पाकिस्तान परस्त मुसलमानों की ऐसी करतूतों के खिलाफ हिन्दुओं में आक्रोश पनपेगा और फिर हिन्दू-मुस्लिम फसाद भी बढ़ेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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