Ayodhya Mandate: लोकसभा के लिए अयोध्या का चुनाव-परिणाम जितना अप्रत्याशित था, उतना चर्चित भी हुआ। यह पहला उदाहरण था, जिसमें चुनाव में हार के लिए किसी जनपद को धिक्कारने की, यहां तक कि उसका बहिष्कार किए जाने तक की प्रतिक्रियाएं सामने आईं। निश्चित रूप से उन प्रतिक्रियाओं में यथार्थ कम, भावातिरेक अधिक था तथा उस भावातिरेक में कई वास्तविकताएं ओझल हो गईं। बहिष्कार वाली प्रतिक्रियाओं में अयोध्या के दुकानदारों से पूजन-सामग्री आदि न खरीदने की बात तक कही गई। अयोध्या के चुनाव-परिणाम पर ऐसी प्रतिक्रिया का होना स्वाभाविक था। क्योंकि रामजन्मभूमि मंदिर की लड़ाई पांच सौ वर्षों तक लड़ी गई तथा इस लड़ाई में अनगिनत संख्या में हिंदुओं ने अपने प्राण गंवाए।
देश की आजादी के बाद सौहार्दपूर्ण ढंग से इस मसले को बड़ी आसानी से सुलझाया जा सकता था। लेकिन कट्टरपंथी मुसलिम मंदिर के विरोध में अड़े रहे और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मंदिर का निर्माण संभव हो पाया। हिंदू नामधारी सेकुलरिया वर्ग ने भी कट्टरपंथी मुसलिमों का साथ दिया और मंदिर-निर्माण के विरोध में अड़ा रहा। राजनीतिक दलों में केवल भारतीय जनता पार्टी रामजन्मभूमि मंदिर को भारतीय अस्मिता का प्रश्न मानकर उसके पक्ष में पूरे जोरशोर से सक्रिय रही। शुरू में बाल ठाकरे की शिवसेना ने भी मंदिर-निर्माण का पक्ष लिया था, किन्तु उनके निधन के बाद जब उद्धव ठाकरे ने हिंदूविरोधी कांग्रेस से गठबंधन कर लिया तो शिवसेना का हिंदुत्वमोह भूमिगत हो गया।
यह ध्रुवसत्य है कि यदि मोदी सरकार न होती तो जिस भव्य एवं दिव्य रूप में रामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण हुआ, वैसा कदापि न हो पाता। कांग्रेस पार्टी तो अपनी मुसलिमपरस्त नीति के कारण मंदिर-निर्माण के विरुद्ध थी ही, वह राम के अस्तित्व को भी काल्पनिक बताती थी। कांग्रेस ने राममंदिर के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय में लगभग दो दर्जन नामी वकीलों को मुकदमा लड़ने के लिए खड़ा किया था तथा सर्वोच्च न्यायालय में यह हलफनामा भी दिया था कि राम काल्पनिक हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह का अहंकारी स्वभाव एवं जनता से दूरी उनकी पराजय का कारण बनी। किन्तु अहंकार एवं जनता से दूरी तो आज के लगभग सभी राजनीतिक नेताओं की विशेषता हो गई है, उनकी विनम्रता केवल चुनाव के समय दिखाई देती है। चुन लिए जाने के बाद वे आकंठ अहंकार में डूब जाते हैं तथा जनता से निकटता तो दूर, उसे हेयदृष्टि से देखने लगते हैं। अहंकार में चूर होकर वे राजा-महाराजा की तरह आचरण करते हैं।
चुनावों में मुसलिम वोट वैसे भी मजहब के नाम पर संगठित रूप में पड़ता है। किन्तु इस बार पक्की रणनीति बनाकर भाजपा के विरुद्ध एकमुश्त मुसलिम वोट पड़ा। दलितों के लिए भारतीय जनता पार्टी ने बहुत-कुछ किया, लेकिन वे भी बसपा से हटे तो सपा-कांग्रेस के फरेबी जाल में फंस गए। माना जा रहा था कि मुसलमान अब भाजपा के पक्ष में हैं, क्योंकि मोदी ने देशवासियों के कल्याण के लिए जो तमाम योजनाएं लागू की हैं, उनमें तनिक भी भेदभाव नहीं किया है। बल्कि मुसलिमों ने उन योजनाओं का हिंदुओं की अपेक्षा अधिक लाभ उठाया है।
अधिकतर राष्ट्रवादी लोग प्रचण्ड गरमी में वोट देने निकले ही नहीं। मगर मुसलिमों ने पक्की रणनीति बना रखी थी और वे भाजपा को हराने के लिए गरमी एवं लू के थपेड़ों की परवाह न करते हुए सपा व कांग्रेस के गठबंधन के पक्ष में वोट देने निकले। हिंदुओं के साथ एक और सच्चाई यह है कि वे हिंदुओं के रूप में संगठित होने के बजाय अलग-अलग जातियों में बंटे रहते हैं। जातिवाद ही उनका सम्पूर्ण जीवन होकर रह जाता है। यही कारण है कि अयोध्या के पासी बहुल ग्रामीण क्षेत्रों में पासियों के वोट अवधेश प्रसाद के पक्ष में थोक में पड़े और लल्लू सिंह की हार हो गई।
कट्टरपंथी मुसलिमों एवं हिंदूनामधारी फर्जी सेकुलरियों की एक विशेषता है कि वे राहुल गांधी की भांति अपने को मुहब्बत का मसीहा कहकर राष्ट्रवादी हिंदुओं के विरुद्ध जमकर नफरत फैलाते हैं, साथ ही अपने आलेखों एवं टिप्पणियों में उलटा राष्ट्रवादियों पर नफरत फैलाने का आरोप लगाते हैं। सच्चाई यह है कि किसी भी राष्ट्रवादी या भाजपा के बड़े नेता ने मुसलिमों के विरुद्ध नफरत फैलाने वाली बात कभी नहीं कही। जबकि कट्टरपंथी मुसलिम एवं हिंदूनामधारी फर्जी सेकुलरिए राष्ट्रवादी हिंदुओं के विरुद्ध निरंतर विषवमन करते रहते हैं।
कट्टरपंथी मुसलिमों में एक जमात बड़ी चतुराई से मुलम्मेवाली भाषा का इस्तेमाल कर हिंदुओं को अपने पक्ष में पटाने की कोशिश किया करती है। इस जमात में एक हफीज किदवई है, जिसने पिछले दिनों फेसबुक में बहुत जहरीली पोस्ट डाली, जिसे बाद में एक हिंदी दैनिक में भी प्रकाशित कराया। एक अन्य हिंदूनामधारी फर्जी सेकुलरिया महाशय हैं, जिन्होंने राष्ट्रवादियों के विरुद्ध फेसबुक में अत्यंत घृणित कविता डाली।
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राष्ट्रवाद के विरोधी कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि अयोध्या में सड़कें चौड़ी करने आदि में लोगों के घर तोड़े गए, जिससे उनकी नाराजगी के कारण भाजपा हार गई। यह कथन भी बिलकुल गलत है, क्योंकि अयोध्या शहर में भाजपा का प्रत्याशी विजयी हुआ है। वैसे भी भाजपा के प्रत्याशी को कुल लगभग पांच लाख वोट मिले हैं, जो भाजपा की लोकप्रियता के प्रतीक हैं। इसके अलावा सड़क चौड़ी किए जाने एवं अन्य विकास-कार्यों में जिनकी जमीन ली गई है, उन्हें मुआवजा दिया गया है। हो सकता है कि मुआवजा बांटने में सरकारी कर्मचारियों ने भ्रष्टाचार किया हो, किन्तु भ्रष्टाचार तो पूरे देश की सबसे बड़ी समस्या है, जिसके विरुद्ध कठोरता से तलवार उठाने का प्रधानमंत्री ने वादा किया है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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