सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर मुझसे कोई एक नहीं कई लोगों ने प्रश्न किया कि मोदी की भाजपा में सीमा पात्रा (Seema Patra) जैसी मानसिकता की महिलाएं कैसे रातोरात आईकॉन बन जाती हैं, रातोरात कैसे राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य हो जाती हैं। रातोरात पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का उपभोग कैसे करने लग जाती हैं? क्या भाजपा में सीमा पात्रा (Seema Patra) जैसी मानसिकता के लोगों को शामिल कराने के पहले उनका हिंसक, खूंखार अमानवीय और लोमहर्षक तथा भ्रष्टचार का इतिहास-भुगोल नहीं देखा जाता है?
इन्हें नैतिकता की तराजू पर नही तौला जाता क्या? भाजपा कांग्रेस की फोटो स्टेट कॉपी बन गयी है क्या? क्या दलबदलुओं, हिंसकों, अमानवीय व भ्रष्ट लोगों को शामिल कराने वाले अपने नेताओं पर भाजपा कार्रवाई नहीं करती है? फिर भाजपा को सबसे अलग और नैतिकशील पार्टी कहने का क्या अधिकार है? क्या नरेन्द्र मोदी को अपनी पार्टी के अंदर नैतिकता और स्वच्छ आचरण स्थापित नहीं करना चाहिए? सीमा पात्रा की खूंखार, हिंसक और अमानवीय मानसिकता ने नरेन्द्र मोदी और भाजपा की छवि को दीमक की तरह चाट गईं।
सीमा पात्रा (Seema Patra) न तो हेडवगार विचारों के प्रर्वतक थीं, न दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के एकात्मक विचारों के प्रर्वतक थीं, न किसी आंदोलन की अगुवा हस्ती थीं, न किसी अभियान की वह प्रवर्तक थीं फिर वह नरेन्द्र मोदी से जुड़े बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की झारखंड प्रदेश प्रमुख कैसे बन गयी, महिला मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य कैसे बन गईं? कोई आम महिला को प्रदेश प्रमुख के पद पर पहुंचने में वर्षों लग जाते हैं पर सीमा पात्रा जैसी हिंसक, मनोरंजन हितैषी, दलबदलू रातोरात भाजपा की आईकॉन बन जाती है। ऐसी स्थिति पर प्रश्न तो पूछे ही जायेंगे?
उन सभी प्रश्नों पर मेरा उत्तर क्या था? मैंने उन सभी प्रश्नों के उत्तर देने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की उक्ति और अवधारणा को सामने रखा। एक बार अटल बिहारी वाजपेयी से हमारी पत्रकार टोली ने प्रश्न किया था कि भाजपा जैसी नैतिकवान पार्टी में भ्रष्ट, अनैतिक और हिंसक मानसिकता को जगह क्यों मिल रही है? इस पर वाजपेयी का उत्तर था कि बाढ़ जब आती है, तब अपने साथ सिर्फ गाद ही नहीं लाती है। बल्कि सांप, बिच्छू और कूड़ा-करकट भी लेकर आती है, अभी भाजपा का उत्थान काल है, इसीलिए भाजपा में नकारात्मक मानसिकता के लोग भी आ रहे हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी का कद बहुत बड़ा था, उनका आभा मंडल ऐसा था कि उन पर कोई आरोप लगाने की स्थिति में नहीं होता था कि वाजपेयी भी अनैतिक, भ्रष्ट, दलबदलू और हिंसक मानसिकता के समर्थक हैं। इस मानसिकता को सिर की टोपी बना लेने का दुष्फल है कि भाजपा अनैतिक, भ्रष्ट, दलबदलू और हिंसक मानसिकता की चपेट में कैद है। समय-समय पर यशवंत सिंहा, सीमा पात्रा जैसी मानसिकता से भाजपा की छवि छिन्न-भिन्न होती रही है।
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सीमा पात्रा सीमा पात्रा का असली नाम पिंकी सहाय है। एक समय में पिंकी सहाय न केवल यशवंत सिंहा-सुबोधकांत सहाय की मित्र मंडली में शामिल थी, बल्कि चन्द्रशेखर की भी चहैती थीं। सीमा पात्रा से मेरी मुलाकात 1991 में हुई थी। उस समय वह चन्द्रशेखर की जनता पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ रही थीं। मैंने उनसे पूछा था कि आप लोकसभा का चुनाव जीतेंगी तो क्षेत्र का विकास कैसे करेंगी, क्या आपके पास कोई मास्टर प्लान है? उसका जवाब सुनकर मैं दंग रह गया, वह बोली, जैसे मैं चन्द्रशेखर को उगंलियों पर नचा कर टिकट लिया है, वैसे ही क्षेत्र का विकास करूंगी।
अधिकारियों को ही नहीं, टाटा-बिड़ला को भी अपनी उंगलियों पर नचाउंगी। सीमा पात्रा के प्रचार में शामिल आलीशान, कीमती गाड़ियों का काफिला को देख कर लोग दंग थे। पैसा पानी की तरह बांट-बहा रही थीं, पैसा पानी की तरह बहाने का हथकंडा उल्टा पड़ गया था, चुनाव में न केवल सीमा पात्रा की हार हुई थी, बल्कि उनकी जमानत भी जब्त हो गयी थी।
सीमा पात्रा में अनेक अतिरिक्त गुण हैं, जो भाजपा ही नहीं बल्कि अनेक दलों के बड़े-बडे नेताओं को अपनी उगंलियों पर नाचने के लिए विवश कर दिया। ऐसे सीमा पात्रा को फिल्मी हिरोइन बनने का बहुत शौक था, प्रयास भी उसने खूब की थी। चर्चित फिल्मी हिरोइन बनने का सपना उसका पूरा भले ही नहीं हुआ पर उसने अपनी सुंदरता और चंचलता तथा वाकपटुता का जादू खूब चलाया था।
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खास कर सत्ता में रहने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं पर उसने अपनी सुंदरता का जादू चलाकर अपनी मनोरंजन इच्छाएं जरूर पूरी की थीं। जब चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री थे, यशवंत सिन्हा वित मंत्री थे और सुबोधकांत सहाय गृह राज्यमंत्री तथा सूचना राज्यमंत्री थे। तब सीमा पात्रा की सत्ता खूबसूरती के दरबार में बड़े-बड़े लोग उपस्थिति दर्ज कराते थे, दंडवत करते थे। आखिर क्यों? इसलिए कि सीमा पात्रा के माध्यम से बड़े-बडे डील पूरी हो सके। चन्द्रशेखर की सरकार गयी तो फिर लालू प्रसाद यादव की शरण में चली गयी, राजद में चली। कांग्रेस में भी गयी थीं।
पशुपालन घोटोले में सीमा पात्रा का भी नाम खूब उछला था। कहा जाता है कि पशुपालन माफिया के नजदीक थी। खासकर राजद के सांसद और पशुपालन माफिया आर के राणा की वह चहेती थीं। आरके राणा उसे लेकर मुबंई गये थे और मुबंई में आर के राणा ने सीमा पात्रा पर करोड़ों रुपये लूटाये थे। पशुपालन घोटाले से जुडे माफियाओं ने कभी सीमा पात्रा तो ममता कुलकर्णी पर जमकर पैसे लूटाये थे। चर्चा यहां तक होती थी कि पशुपालन माफिया डॉन श्याम बिहार सिन्हा के घर में ममता कुलकर्णी आयी थीं और न लिखने योग्य डांस की थीं। ममता कुलकर्णी की डांस देखने के लिए पशुपालन माफियाओं का पूरा गिरोह शामिल था।
उल्लेखनीय है कि श्याम बिहारी सिन्हा को लालू प्रसाद यादव का परिवार कभी अपना संरक्षक मानता था और लालू प्रसाद यादव के साथ श्याम बिहारी प्रसाद के संबंध कौन राजनीतिज्ञ नहीं जानता था? सीमा पात्रा खुद दलित नहीं है, वह कायस्थ है। पिंकी सहाय उसका घर का नाम है। एक दलित आईएएस अधिकारी महेश पात्रा का उन्होंने अपनी सुंदरता के फास में जकड़ लिया।
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महेश पात्रा की गिनती सीधे मनुष्य की होती है। सीमा खुद दलित नहीं है फिर भी उसने दलित सीट से चुनाव लड़ी। बाद में कोर्ट में यह मामला गया और कोर्ट का निर्णय आया कि दलित से शादी के बाद भी सामान्य वर्ग की महिला को दलित की सुविधाएं नहीं मिल सकती हैं। सीमा पात्रा का अवगुण भी देख लीजिये। वह मानसिक तौर बहुत ही विक्षिप्त है, हिंसक है, अमानवीय है और पैसे वाले होने के कारण घंमडी है। उसने अपनी नौकरानी के साथ जिस तरह की करतूत की है उसके उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं, उसकी करतूत को जानकर रोंगटे खडे हो जाते हैं।
एक स्वस्थ्य लड़की को उसने दिव्यांग बना दिया, तवे से जलाया, मूत्र पीने के लिए बाध्य किया। वह लड़की प्रताड़ना से न केवल विक्षिप्त हो गयी है, बल्कि कोई एक-दो साल नहीं पूरे आठ साल तक वह लड़की सूर्य की रोशनी देखने तक तरसती रही। सीमा पात्रा ने अपने पति और बेटे पर भी रंगदारी खूब दिखाती थी। उसके घर में रहने वाली अन्य नौकरानियों ने भी उसकी खौफनाक कहानियां बता रही है।
इतनी हिंसक, इतनी वहशी, इतनी अमानवीय को भाजपा का आईकॉन बना देना कहां की नैतिकता है। वह भी सीधे तौर बेटी पढ़ाओ और बेटी बचावो अभियान का। यह अभियान नरेन्द्र मोदी के नाम से जुड़ा हुआ है। झारखंड भाजपा के अध्यक्ष दीपक प्रकाश, बाबूलाल मरांडी आदि सीमा पात्रा की शख्सियत को क्या नहीं जानते थे। दीपक प्रकाश का तर्क हो सकता है कि उनके पूर्व के अध्यक्ष स्वर्गीय लक्ष्मण गिलुआ ने सीमा को ऐसी जिम्मेदारी दी थी। पर दीपक प्रकाश जब अध्यक्ष बने तक तो सीमा को ऐसी जिम्मेदारियो से मुक्त कर देना चाहिए था।
भाजपा के झारखंड प्रभारी ओम माथुर और दीपक प्रकाश से सीमा पात्रा की जातीय और अन्य नजदीकियों की चर्चा भी कुख्यात हो रहा है। झारखंड भाजपा में कभी मंजू राय का प्रकरण बहुत ही कुचर्चित था। लोकचर्चा के अनुसार मंजू राय ने अपनी बीमारी के दौरान अस्पताल में अपने पति का नाम भाजपा के बड़े नेता का नाम लिखवाया था जबकि मंजू राय की बेटी अपने मेडिकल कालेज में अपने पिता का नाम उसी भाजपा नेता का लिखवाया था।
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मंजू राय की बेटी का बाप कोई और था, जिससे मंजू राय का विधिवत तलाक भी नहीं हुआ था। वह भाजपा नेता आज झारखंड भाजपा का आईकॉन है। साड़ी, गाड़ी, मीट और होटल झारखंड भाजपा की पहचान बन गयी है। ऐसी प्रवृति के लिए जिम्मेदार तो नरेन्द्र मोदी ही माने जायेंगे? जब आपके नाम से बने संगठन की जिम्मेदारी ऐसी खूंखार महिला को मिल जाती है और आपकों पता भी नहीं चलता?
पीएम मोदी का कर्तव्य है कि ऐसी खूंखार और हिंसक तथा अमानवीय महिला को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देने वाले झारखंड भाजपा के नेताओं पर कारवाई करें। नरेन्द्र मोदी आपको देश में अच्छा शासन देने के साथ ही साथ भाजपा को स्वच्छ और नैतिकशाली भी बनाना चाहिए। मोदी जी आपकी और भाजपा की छवि को सीमा पात्रा जैसी मानसिकता दीमक की तरह गयी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)