(technique analysis) क्या आपको कभी लगा कि आज भले ही लोगों के पास साधन हैं, सूचना का बोझ है, पर उनके पास सच्चा संवाद नहीं है। (technique analysis) साधन हैं, पर आत्मीय वार्तालाप करना उन्हें बोझिल लगता है, वे उड़े-उड़े, खोये-खोये से रहते हैं। यह भी हो सकता है कि कोई साथ के व्यक्ति से संवाद न करे पर सोशल मीडिया (social blade) पर लगातार उत्तेजित अथवा नकरात्मक प्रतिक्रिया देने लगे।
मानसिक भटकावों के अनेकानेक साधन उपलब्ध होने के इस युग में तकनीक (technique analysis) भी बेचैनी का एक बड़ा कारण बन गई है। यह बस विकल्प देती है, विवेक नहीं देती। सस्ते डेटा के साथ (social blade) फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब आदि में कोई तब भी लगा रह सकता है, जब इनकी कोई आवश्यकता ही नहीं या (social blade) तब जब कुछ सकारात्मक, सर्जनात्मक करने का समय हो।
आज लोगों के पास पढ़ने के लिए बहुत से अच्छे आलेख हैं, ठीक से एक भी पढ़ने का समय नहीं है। अनावश्यक चीज़ों को हटाने का समय नहीं है। मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रतिभाशाली युवक ने बताया कि बहुत सी अच्छी फिल्में, e-books उसने 1 TB के अपने हार्ड ड्राइव में सेव कर रखा है, देखने का समय ही नहीं मिलता। उसी लड़के को मैं फेसबुक पर कई बार online देखता हूँ। उसके timeline पर कोई सर्जनात्मक पोस्ट नहीं दिखती।
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दरअसल इस युवा या इनके जैसे अन्य लोगों के पास अनावश्यक को हटाने का विवेक नहीं है, इसलिए आवश्यक पर वे समय नहीं दे पाते। तकनीक और संचार माध्यमों की चकाचौंध में आँखें चौंधिया गई हैं और कुछ दिख ही नहीं रहा।
समझना चाहिए कि यह भी एक बेचैनी का हिस्सा है। यह बेचैनी फेसबुक पोस्ट पर दिखे या न दिखे, शरीर में, व्यवहार में या बातों में दिख जाती है। विवेक के साथ तकनीक का उपयोग करना अगर आ जाए, तो ऐसी अनावश्यक असहजताओं, बेचैनियों से बचा जा सकता है।
इसके लिए सबसे पहले रुककर अपने आसपास से बेकार चीज़ों को हटाने का प्रयास करना चाहिए। घर से, मेज पर से जो फालतू चीज़ें हैं, उन्हें हटाने से आप घर और मेज ही व्यवस्थित नहीं करते, प्रकारान्तर से अपने मन को भी व्यवस्थित करते हैं। क्यों उस कपड़े को रखना जो आप बहुत समय से पहन ही नहीं रहे या जिनको पहनने की संभावना कम है?
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अगर रसोई में बहुत से ख़ाली डिब्बे हैं, अत्यधिक समान जमा है जैसे बाज़ार अगले 2 महीने तक बंद रहने वाला हो, तो निश्चित जानिए आपके फोन की गैलरी भी भरी रहेगी, मेलबॉक्स भरे रहेंगे। छँटनी करना सीखिए– पहले अपनी भौतिक दुनिया में और उसके बाद आभासी दुनिया में भी। प्रकृति को कोई जल्दी नहीं है, आपको भी व्यग्र अथवा उग्र होने की कोई आवश्यकता नहीं है। सुव्यवस्थित रहें, संयमित हो जाएँगे।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)