Republic Day: आगामी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस (Republic Day) की 73वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। आजादी के बाद हमारे देश में फर्जी सेकुलरवाद ने देशभक्ति के जिस ज्वार का दमन कर दिया था, गणतंत्र दिवस के अवसर पर वह ज्वार जैसे पुनः प्राणवान हो उठता है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गणतंत्र दिवस के अवसर पर राज्य सरकार की परम्परागत परेड में सैनिकों के कदमताल पर उपस्थित विशाल जनसमूह की तालियों की गड़गड़ाहट यह आभास कराती है कि जनता के मन में देश की रक्षा हेतु समर्पित सैनिकों के लिए कितना अधिक सम्मान है। इसी प्रकार राष्ट्र के प्रति गौरव-भाव जगाने वाले ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’, ‘कदम-कदम बढ़ाए जा’ एवं ऐसे अन्य अनेक देशभक्ति गीतों की धुनें जब बैंड पर गूंजती है या विभिन्न प्रस्तुतियों में उन गीतों का गान होता है तो जनसमुदाय में राष्ट्रभक्ति जबरदस्त हिलोरें लेने लगती है।
जवाहरलाल नेहरू द्वारा देश में शुरू किए गए फर्जी सेकुलरवाद ने सबसे बड़ा प्रहार देशभक्ति की भावना पर किया, जिसके परिणामस्वरूप देशभक्ति की बात को हिन्दू साम्प्रदायिकता घोषित कर दिया जाने लगा। यही कारण है कि हमारे देश में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के सूत्रधार आतंकवादियों को शरण देने एवं उनकी आतंकी गतिविधियों को सहयोग देने वाले देशद्रोही तत्व बहुत बड़ी संख्या में विद्यमान हैं। ऐसे तत्व देशभर में वातावरण को बिगाड़ने का तरह-तरह से षड्यंत्र कर रहे हैं। जब दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना में जनरल विपिन रावत एवं अन्य सैन्याधिकारियों की मौत पर पूरा देश गम में डूब गया था, शाहरुख खान के नशेड़ी बेटे की जेल से रिहाई के लिए जिन लोगों ने आसमान सिर पर उठा लिया था, उस समय उन्होंने उक्त दुर्घटना पर दुख के दो शब्द भी नहीं कहे। इतना ही नहीं, तमाम देशद्रोहियों ने तो उस हादसे पर खुशी मनाई।
ऐसे देशद्रोही तत्वों को ढूंढ-ढूंढकर समाप्त कर दिया जाना चाहिए। किन्तु जब भी हमारे यहां देशद्रोही तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई होती है, फर्जी सेकुलरिए भयंकर रूप से हायतोबा मचाने लगते हैं। इसी से देशद्रोहियों का न केवल हौसला बुलंद होता है, बल्कि उनकी संख्या बढ़ती जा रही है।
गणतंत्र दिवस पर राजधानी लखनऊ में आयोजित होने वाली परेड अनेक दोषों एवं कमियों से ग्रस्त है। सबसे बड़ी कमी यह है कि इस परेड को मात्र लखनऊ तक सीमित कर दिया गया है। लखनऊ में भी इसे मुख्यत: सिटी मांटेसरी स्कूल की परेड बना दिया गया है। कुछ वर्षों से परेड की अवधि को कम किया गया है, अन्यथा सिटी मांटेसरी स्कूल की तमाम शाखाओं की प्रस्तुतियों की भरमार रहती थी, जिससे पूरी परेड उस स्कूल की ही परेड प्रतीत होती थी।
परेड के प्रबंधकों को चाहिए कि जिस स्कूल या संस्था की झांकी परेड में शामिल की जाय, उसके बारे में पहले से भलीभांति छानबीन कर लिया करें कि उसका कोई खराब रिकॉर्ड तो नहीं है। जैसे, गरीब बच्चों को प्रवेश देने के अदालती फैसले को सिटी मांटेसरी स्कूल ने नहीं माना था तथा भारी धनराशि का अपव्यय कर उसने उस फैसले को जब सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी तो वहां भी उसे हार मिली। अतः उस स्कूल की झांकी सम्मिलित करते समय पता कर लिया जाना चाहिए कि उसने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गरीब बच्चों के हित में किए गए उक्त निर्णय को लागू कर दिया है अथवा नहीं?
प्रदेश सरकार को परेड में झांकियों को शामिल किए जाने की प्रणाली में आमूल परिवर्तन करना चाहिए। देश की राजधानी दिल्ली में राजपथ पर निकलने वाली परेड में देश के अनेक राज्यों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाता है तथा उन राज्यों की झांकियों में उनके यहां की सांस्कृतिक विशेषताओं एवं धरोहरों की प्रस्तुति होती है। बिलकुल वैसी ही व्यवस्था उत्तर प्रदेश की राजधानी में निकलने वाली गणतंत्र परेड में भी होनी चाहिए। लखनऊ की परेड में प्रदेश के जनपदों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। आवश्यक नहीं कि परेड में प्रदेश के सभी जनपदों की झांकियां शामिल की जाएं, लेकिन हर बार आठ-दस जनपदों की झांकियां तो शामिल की ही जा सकती हैं। उनमें सर्वश्रेष्ठ जनपद की झांकी को पुरस्कृत किया जाय। इससे प्रदेश की अखंडता की भावना को बल मिलेगा, साथ ही जनपदों को अपने गौरव की प्रस्तुति का अवसर प्राप्त होगा।
लखनऊ में गणतंत्र दिवस के अवसर पर पहले छावनी के रेसकोर्स मैदान में बहुत छोटे रूप में परेड का आयोजन हुआ करता था। जब लखनऊ में योगेंद्र नारायण जिलाधिकारी व श्रीराम अरुण वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक थे, तो उन दोनों ने राजधानी में वर्तमान रूप में गणतंत्र दिवस की परेड का आयोजन शुरू कराया था। श्रीराम अरुण दिवंगत हो चुके हैं। अतः जिला प्रशासन को चाहिए कि गणतंत्र दिवस की परेड में योगेंद्र नारायण को विशेष रूप से आमंत्रित किया करे। योगेंद्र नारायण अवकाश प्राप्ति के उपरांत गौतमबुद्धनगर में रह रहे हैं तथा अभी भी उनकी काफी सक्रियता है।
इसे भी पढ़ें: प्रथम विष्णुप्रसाद चतुर्वेदी साहित्य अलंकरण से सम्मानित होंगे प्रो. संजय द्विवेदी
परेड में हिन्दी की उपेक्षा कदापि नहीं होनी चाहिए। प्रदेश की एकमात्र राजभाषा हिन्दी है, इसलिए परेड में अंग्रेजी को हरगिज स्थान नहीं मिलना चाहिए। उत्तर प्रदेश में हिन्दी को प्रतिष्ठित करने का सर्वाधिक श्रेय मुलायम सिंह यादव को है। बड़े अफसर, विशेष रूप से आईएएस अधिकारी, अंग्रेजी की मानसिक गुलामी से भयंकर रूप से ग्रस्त होते हैं तथा जहां भी उन्हें अवसर मिलता है, वे अंग्रेजी थोपने से बाज नहीं आते हैं। परेड की अनेक प्रस्तुतियों में अंग्रेजी का वर्चस्व होता है। उदाहरणार्थ, पिछली बार परेड की अनेक प्रस्तुतियों में अंग्रेजी का वर्चस्व मिला। परेड में लखनऊ पब्लिक हॉस्पिटल, एपीएस एकेडमी, ब्वॉयज एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज आदि के बोर्ड अंग्रेजी में रहते हैं। परेड में शामिल होने वालों को पहले से निर्दिष्ट कर दिया जाना चाहिए कि उनके सभी सूचनापट हिन्दी में हों।
इसे भी पढ़ें: Janmotsav Vishesh: शेषावतार बलराम जी
परेड के उपरांत मुख्य सचिव की ओर से सचिवालय प्रशासन द्वारा जलपान की व्यवस्था होती है, जो अत्यंत दोषपूर्ण है। उसमें प्रवेश में फालतू की कड़ाई की जाती है, जिससे भारी अव्यवस्था होती है तथा प्रतिष्ठित लोगों के लिए अपमानपूर्ण स्थिति हो जाती है। उन्हें उस कड़ाई से बड़ी परेशानी झेलनी पड़ती है, जबकि अल्पाहार में अधिकतर कर्मचारी एवं पुलिसजन घुसे मिलते हैं। जलपान की इस व्यवस्था में भी आमूल-परिवर्तन किया जाना चाहिए तथा वहां जाने के लिए सम्मानपूर्ण प्रवेश की व्यवस्था की जानी चाहिए। ‘मुहरें लुटे, कोयले पर छाप’ मुहावरे का पालन करने के बजाय जलपान की व्यवस्था को विधानभवन के गलियारे में और आगे तक बढ़ा दिया जाना चाहिए, ताकि खाने की मेजों पर भीड़ न होने पाए। अभी तो दुर्व्यवस्था के कारण तमाम लोग जलपान किए बिना ही लौट जाते हैं। जलपान के लिए प्रवेश के समय द्वार पर जो भेड़ियाधसान स्थिति होती है, उसके कारण बहुत लोग वहीं से लौट जाने को मजबूर होते हैं। जलपान के लिए अलग से ‘पास’ की व्यवस्था समाप्त कर देनी चाहिए तथा जिन लोगों को विशिष्ट अतिथि वाले ‘पास’ दिए जाते हैं, उन सबको उसी ‘पास’ द्वारा जलपान में प्रवेश दिया जाना चाहिए। यह राष्ट्रपर्व है, इसलिए किसी भी प्रकार की कंजूसी अनुचित है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)