नई दिल्ली। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का सोमवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। उनकी उम्र 80 वर्ष थी। उनके निधन से झारखंड की राजनीति और आदिवासी समाज में शोक की लहर दौड़ गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अस्पताल पहुंचकर शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके परिवार से मिलकर संवेदना व्यक्त की। उन्होंने ट्वीट किया, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उनका पूरा जीवन आदिवासी समुदाय के कल्याण के लिए समर्पित रहा, जिसके लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा।
माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने आज सर गंगाराम अस्पताल पहुंचकर झारखंड आंदोलन के अग्रदूत व झामुमो संस्थापक आदरणीय श्री शिबू सोरेन 'गुरुजी' को श्रद्धांजलि अर्पित की और श्री @HemantSorenJMM जी, श्रीमती @JMMKalpanaSoren जी सहित परिजनों से मिलकर संवेदना व्यक्त की। pic.twitter.com/PkT4iLUJNn
— Annapurna Devi (@Annapurna4BJP) August 4, 2025
शिबू सोरेन, आदिवासी अस्मिता और झारखंड आंदोलन के नायक
शिबू सोरेन सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि झारखंड आंदोलन के प्रतीक थे। 1970 और 80 के दशक में उन्होंने आदिवासी समाज के जल, जंगल और जमीन के हक के लिए संघर्ष शुरू किया। सूरज मंडल जैसे नेताओं के साथ उन्होंने अलग राज्य की मांग को राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। लंबे संघर्ष के बाद 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ, जिसमें शिबू सोरेन की भूमिका ऐतिहासिक रही। उन्होंने राज्य का नाम ‘बानांचल’ रखने का सुझाव भी दिया था, ताकि उसकी वन संपदा और भौगोलिक पहचान को दर्शाया जा सके।
मुख्यमंत्री और राजनीतिक सफर
अलग राज्य बनने के बाद शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, हालांकि उनका कोई कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया-
2 मार्च 2005 – 11 मार्च 2005
27 अगस्त 2008 – 12 जनवरी 2009
30 दिसंबर 2009 – 31 मई 2010
उनका राजनीतिक सफर जनसंपर्क और आदिवासी समाज से गहरे जुड़ाव के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
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जनता के दिलों में गुरुजी
जनता उन्हें ‘गुरुजी’ कहकर पुकारती थी। उन्होंने संसद से लेकर सड़क तक हर मंच पर आदिवासी अधिकारों की आवाज उठाई। उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) आज भी राज्य की प्रमुख राजनीतिक शक्ति है। उनके पुत्र हेमंत सोरेन उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। शिबू सोरेन का जीवन सामाजिक न्याय, आदिवासी अस्मिता और क्षेत्रीय पहचान की लड़ाई की मिसाल बनकर हमेशा याद रखा जाएगा।
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