Nuh Violence: हरियाणा के नूंह जिले में बीती 31 जुलाई की दोपहर को जब ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा नल्हड़ महादेव मंदिर (Nalhar Mahadev Temple) से जलाभिषेक कर लौट रही थी, तभी रास्ते में उपद्रवियों ने यात्रा पर पथराव कर दिया। जिसके बाद हिंसा (Nuh Violence) ऐसी भड़की की पूरे शहर में आगजनी की घटनाओं को अंजाम दे दिया गया। हिंसा में जान-माल का काफी नुकसान हुआ। नूंह हिंसा (Nuh Violence) से जुड़े पूरे घटनाक्रम पर इस हफ्ते पंजाबी अखबारों ने अपनी राय प्रमुखता से रखी है।
चंडीगढ़ से प्रकाशित पंजाबी ट्रिब्यून लिखता है
विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा के दौरान भड़काऊ नारे लगाए गए, तलवारें लहराई गईं, पथराव किया गया और उसके बाद गोलाबारी समेत बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क गई। यात्रा से पहले बजरंग दल के मोनू मानेसर व अन्य ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ टिप्पणी कर माहौल खराब किया था। पुलिस इस स्थिति से अवगत थी और यदि जिला प्रशासन ने बड़ी संख्या में सुरक्षा बल और पुलिस तैनात करके हिंसा को रोकने के लिए पर्याप्त कदम उठाए होते, तो इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से बचा जा सकता था। अखबार आगे लिखता है, नफरत और हिंसा फैलाने में सोशल मीडिया ने अहम भूमिका निभाई। स्वघोषित गौरक्षक मोनू मानेसर के सोशल मीडिया पोस्ट से दोनों पक्षों के लोग भड़क गए। मोनू मानेसर पर राजस्थान में दो मुस्लिम व्यक्तियों की हत्या और उन्हें जलाने में शामिल होने का भी आरोप है, लेकिन उसे अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। हैरानी की बात है कि जिस आरोपी की पुलिस को तलाश है वह सोशल मीडिया पर भड़काऊ प्रचार कर रहा है, लेकिन पुलिस उसे गिरफ्तार करने में नाकाम है।
जालंधर से प्रकाशित जगबाणी लिखता है
नूंह में धार्मिक यात्रा में पेट्रोल बम आदि फेंककर हिंसा भड़काई गई। इस बीच दंगाइयों ने श्रद्धालुओं को बंधक बनाने और एक धार्मिक स्थल में तोड़फोड़ करने के अलावा दर्जनों गाड़ियां फूंक दीं, कई दुकानों में आग लगा दी, लूटपाट की और 2 होम गार्ड जवानों समेत 5 लोगों की मौत हो गई है। अखबार आगे लिखता है- फिलहाल इस मामले में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी-अपनी बात कह रहे हैं। साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक रहे हरियाणा में जो कुछ हुआ वह अत्यंत दुखद है, जिससे प्रदेश के समाज को बहुत बड़ी चोट पहुंची है। कारणों की तह तक जाकर दोषियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए और यह भी पता लगाना चाहिए कि इसके पीछे केंद्र में लोकसभा चुनाव और अगले साल राज्य विधानसभा चुनाव को देखते हुए कुछ स्वार्थी तत्वों का हाथ तो नहीं हैं।
सिरसा से प्रकाशित सच कहूं लिखता है
हरियाणा में हुई हिंसक घटनाएं साफ तौर पर बताती हैं कि आजादी के 75 साल बाद भी लोग धार्मिक कट्टरता और संकीर्णता से बाहर आने को तैयार नहीं हैं। वहीं दूसरे समुदाय के धर्म, धार्मिक विश्वास, संस्कृति और भाईचारे के प्रति सम्मान पैदा नहीं हो सका है। ऐसे में एक चिंगारी सब कुछ जलाकर राख कर देती है। अखबार लिखता है, ऐसी घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए सिर्फ पुलिस की सख्ती या जिम्मेदारी ही काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रतिनिधियों को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।
जालंधर से प्रकाशित पंजाबी जागरण लिखता है
नूंह में हिंसा भी एक शख्स द्वारा वायरल किए गए वीडियो की वजह से हुई। कुछ लोग उल्टे सीधे तर्क देकर समाज में उत्तेजना पैदा करने का काम करते रहते हैं। धर्म के नाम पर आम लोगों की भावनाएं भड़कना स्वाभाविक है। भीड़ कभी भी किसी अफवाह की पुष्टि नहीं करती। अगर सरकार और सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ सोशल मीडिया को अपने हिसाब से नियंत्रित करने में सक्षम हो जाएं तो आधुनिक समाज में ऐसे दंगों से बचा जा सकता है।
चंडीगढ़ से प्रकाशित देशसेवक लिखता है
हरियाणा के नूंह में जो हिंसा फैली है, वह मणिपुर में कुकी और मैतेई लोगों के बीच चल रही हिंसा से कम चिंताजनक नहीं है। असली बात तो यह है कि शासक चरमपंथी तत्वों के पीछे खड़े हैं जो सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर अत्याचार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हिंसा अपने आप नहीं भड़की बल्कि इसके लिए माहौल तैयार किया गया। अखबार आगे लिखता है, इस वर्ष मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव होने हैं। साथ ही 2024 का आम चुनाव भी आ रहा है। आम चुनाव के बाद हरियाणा में भी चुनाव होने हैं। भाजपा सांप्रदायिक राजनीति का खेल खेलकर सत्ता हासिल करना चाहती है।
The multi storey house used by Jihadis to throw bottles and stones on Hindu Devotees has been bulldozed and all Jihadis arrested by BJP Khattar Govt.
To date over 300+ Jihadi homes bulldozed and more demolitions ongoing.#NuhViolence #MewatiAntiHinduRiots pic.twitter.com/VtHNmHE2DP
— Arun Pudur (@arunpudur) August 5, 2023
चंडीगढ़ से प्रकाशित रोजना स्पोक्समैन लिखता है
मणिपुर में तो अभी शांति नहीं लौटी है, लेकिन हरियाणा के नूंह में हिंसा की आग भड़क गई। इससे एक बार फिर ये बात साफ हो गई कि आज एक आम भारतीय अपने ही देशवासी को अपना दुश्मन मानता है। आज जिस तरह से धर्म के नाम पर एक-दूसरे को दुश्मन बनाया जा रहा है, नूंह की घटना उसी का नतीजा है।
जालंधर से प्रकाशित पंजाब टाइम्स लिखता है
मणिपुर के बाद हरियाणा में सांप्रदायिक हिंसा देश के भविष्य के लिए बेहद चिंताजनक है। दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में ग्रामीण वोटरों के ध्रुवीकरण के लिए बीजेपी इस तरह की साजिश को अंजाम दे रही है। अगर ऐसा है तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। अखबार आगे लिखता है, अगर ऐसी घटनाएं पंजाब में होती तो बड़ी संख्या में सिख युवाओं को रातों-रात जेल में डाल दिया गया होता। पंजाब में एक थाने की मामूली घेराबंदी के बाद दर्जनों युवकों को एनएसए द्वारा गिरफ्तार कर डिब्रूगढ़ जेल भेज दिया गया। इन युवकों पर किसी हिंसा या हत्या का आरोप नहीं है। हरियाणा में हत्यारे खुलेआम घूम रहे हैं। इससे साफ है कि हरियाणा में हिंसा के पीछे राजनीतिक ताकतें काम कर रही हैं। उनके इरादे नेक नहीं हैं। इस साजिश को समझने की जरूरत है।
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जालंधर से प्रकाशित अजीत लिखता है
हरियाणा में जो हुआ है उसने देश की चिंता और भी बढ़ा दी है। एक धार्मिक जुलूस को लेकर दो गुटों के बीच हुई खूनी झड़प का असर पूरे देश में महसूस होने लगा है। बेशक देश में लंबे समय से सांप्रदायिक दंगे होते रहे हैं, लेकिन आज जिस तरह से धार्मिक जुलूसों और धार्मिक स्थलों के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़काया जा रहा है, वह बेहद चिंताजनक है। इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए। भारत ने पिछले दशकों में कई मायनों में काफी प्रगति की है, लेकिन जब तक देश में सांप्रदायिक नफरत व्याप्त है तब तक हम ऐसी उपलब्धियों पर गर्व नहीं कर सकते।
जालंधर से प्रकाशित अज दी आवाज लिखता है
हरियाणा में अगर पुलिस और प्रशासन पहले ही सतर्क होकर कार्रवाई करता, तो यह टकराव रोका जा सकता था। कहा जा रहा है कि यात्रा पर हमले के लिए एक ट्रक में पत्थर और अन्य हिंसक सामग्री पहले से तैयार की गई थी। यदि स्थानीय पुलिस और प्रशासन को इस बात की पहले से जानकारी थी तो उचित कार्यवाही करनी चाहिए थी। केंद्र और राज्य सरकार को ऐसे मामलों की तुरंत उच्च स्तरीय जांच कर दोषी नौकरशाहों, राजनीतिक नेताओं और धार्मिक नेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। अखबार आगे लिखता है कि, अब तक देश में धार्मिक या जातिगत आधार पर चाहे कितनी भी हिंसक झड़पें क्यों न हुई हों, एक भी मामले की निष्पक्ष जांच नहीं की गई और न ही किसी जिम्मेदार व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई। इसी वजह से धार्मिक और जातिगत झगड़े कराने का यह धंधा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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