भारत में 2024 के आम चुनाव के बाद परिस्थितियों ने बड़ी करवट ली है। कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय दलों के तेवरों से अधिक मुस्लिम राजनीति में बड़ा उबाल आया है। बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में परिस्थितियों को और बिगाड़ने के कुत्सित प्रयत्नों में तेजी आ गयी है। बंगाल में ममता बनर्जी की सह पाकर कट्टर मुस्लिम इतने आक्रामक हो उठे हैं कि दिनदहाड़े हिन्दू परिवारों को राज्य से पलायन के लिए विवश किया जा रहा है। उनसे बेटियां और महिलाएं छीनी जा रही हैं। माता-पिता को सबके समक्ष नंगा कर जलाया जाता है। लव जिहाद चरम पर है। आभास कराया जा रहा है कि देश में मुस्लिम राजनीति का युग आ गया है।
ऐसे शुरू होता है खेल
भारत के विभिन्न भागों में हिन्दू लड़कियों को फंसाकर बाहर ले जाने का सिलसिला बन्द नहीं हो रहा। उत्तर प्रदेश में मुख्यमन्त्री के पद पर 2017 में आसीन होने के बाद योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले इस ओर ध्यान दिया। लव जिहाद के विरुद्ध योगी की कड़ाई का बड़ा विरोध हुआ। उनकी सरकार ने इसके विरुद्ध कानूनी प्रावधान कथित रूप से कड़े किये। पर विधानों का नया स्वरूप लव जिहाद को रोक नहीं पा रहा। हिन्दुओं की लड़कियों को इस्लाम में मतान्तरित कराया जाता है। यह क्रिया गुपचुप होती है। मतान्तरित युवतियों का निकाह उनके मुस्लिम प्रेमी से कराने के बाद लड़की को उसके पिता के घर भेज दिया जाता है। वास्तविक खेल इसके बाद शुरू होता है।
न्यायालय से भी नहीं मिल पाती मदद
कुछ समय के बाद निकाह कराने वाला मुस्लिम युवक न्यायालय में बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका डालकर न्याय मांगता है। उच्च न्यायालय की ओर से पिता को जब लड़की को लेकर उपस्थित होने का आदेश मिलता है तब वह हतप्रभ रह जाता है। बेटी की ओर से ऐसा कृत्य करने से पूरा परिवार लज्जा में डूब जाता है। न्यायालय में पहुँचकर लड़की पिता के विरुद्ध बयान देती है। न्यायालय विवश होकर उसे माता-पिता की बाहों से मुक्त करने का आदेश सुना देता है। निराश हिन्दू परिवार लव जिहाद की इस नयी परिस्थिति और परिभाषा के समक्ष बौना बनकर रह जाता है।
हिंदू लड़कियों का कराते हैं धर्म परिवर्तन
लव जिहाद का अभियान उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ में बड़ा विस्तार ले चुका है। नेपाल की हिन्दू लड़कियां भी इनकी सीधी पकड़ में आ जाती हैं। पश्चिम बंगाल में लव जिहाद में लगे मुस्लिम युवकों और उनके संगठनों को खुली छूट है। यही हाल केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक का है। यहाँ का राजनीतिक परिदृश्य मुस्लिम राजनीति के चंगुल में है। बंगाल में जून और जुलाई 2024 के मध्य अनेक लड़कियों को घर से खींच कर ले जाया गया। बाद में उन लड़कियों से दबाव पूर्वक पुलिस में यह अर्जी दिलायी गयी कि उन्होंने स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार कर लिया है। फिर भी माता-पिता और परिवार के अन्य लोग उसे मूल हिन्दू धर्म में वापस लाने का हठ कर रहे हैं।
घर से छीन लेते हैं हिंदू लड़कियों को
जून 2024 में बंगाल के मालदा जिले में 20 दिनों के भीतर दूसरी ऐसी घटना हुई। जिसमें हिन्दू दम्पति की लड़की को पहले घर से छीन लिया गया। फिर माता-पिता को बिजली के खम्भे से बांधकर नग्न करके पीटा गया। इस बार भी हत्या करने से पहले दोनों को पूरे बाजार में नग्न घुमाया गया। पुलिस ने पहली घटना की तरह दूसरी घटना को भी सामान्य कहकर टाल दिया। उत्तर दिनाजपुर जिले में एक इंसाफ सभा बुलायी गयी। उग्र मुसलमानों ने यहाँ कई महिलाओं को जंजीरों से मांधकर यातना दी। ऐसी घटनाएं बंगाल के 09 मुस्लिम बहुल जिलों में आये दिन हो रही हैं। बंगाल में शासक दल इसे अपने भविष्य के लिए शुभ लक्षण मान रहा है। हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई पाटने के उपायों की अब कोई बात नहीं करता। दोनों के बीच सीधी रेखा गहरी हो रही है।
सभा बुलाकर हिंदू परिवारों को किया जा रहा दंडित
बंगाल में 2024 के चुनाव के बाद हिन्दू परिवारों को प्रताड़ित करके भगाने की घटनाएं खुलेआम हो रही हैं। यह घटनाएं सोशल मीडिया पर तो दिखायी देती हैं पर इनका कोई प्रभाव सरकार और पुलिस पर नहीं होता। बंगाल में चुनाव से पहले ही हिन्दुओं को डरा धमका कर मतदान से दूर रहने को कहा जाता रहा। जिन्होंने इसकी अनदेखी की उन्हें सदा के लिए बंगाल से बहिष्कृत करने के कठोर प्रयत्न होने लगे। बंगाल में 2019 से हिन्दुओं के पलायन की घटनाएं बढ़ी हैं। मारपीट, आगजनी, महिलाओं की छीना झपटी उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए विवश किया जाना सामान्य घटनाएं बतायी जाती हैं। बंगाल में अब कट्टर मुसलमानों द्वारा सालिसी सभा और इंसाफ सभा बुलाकर हिन्दू परिवारों को सार्वजनिक रूप से दण्डित करने का सिलसिला उसी तरह शुरू हुआ है जैसे जम्मू-कश्मीर में किया गया था। इसका उद्देश्य बंगाल के कुछ जिलों को हिन्दू विहीन करना है। केरल और तमिलनाडु के अनेक जिले ऐसी सभाओं के माध्यम से ही प्राय: हिन्दू विहीन हो गये हैं। तमिलनाडु के एक मन्त्री ने राहुल गांधी के स्वर को सही मानते हुए कहा कि हिन्दू समाज भारत में एक बीमारी की तरह है। हिन्दू समाज का अन्त करने के लिए मिलकर योजना बनाने की आवश्यकता है। तमिलनाडु डीएमके शासित है। यहाँ की राजनीतिक संरचना में हिन्दू समाज को सर्वथा निरीह बना दिया गया है।
धर्म परिवर्तन के लिए काम कर रहा गिरोह
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ को लव जिहादियों ने बड़ा अड्डा बनाया है। जहाँ उत्तर प्रदेश सहित बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और नेपाल से हिन्दू परिवारों की लड़कियों को लाकर जोर जबरदस्ती करके पहले चरित्र भ्रष्ट किया जाता है फिर उन्हें इस्लाम स्वीकार करने पर विवश किया जाता है। इन्हें अपने परिवारों से रोजगार के नाम पर निकाला जाता है। ऐसा करने वाले गिरोह में हिन्दुओं की तरह कलावा और चोटी रखने वाले मुस्लिम युवक अगुवाई करते हैं। इसी गिरोह की मुस्लिम लड़कियां छद्म हिन्दु लड़कियों की भांति अपने को दर्शाती हैं। स्नेह, मैत्री फिर रोजगार दिलाने की बातें हिन्दु लड़कियों को रुचिकर लगने लगती हैं।
प्राय: ऐसी लड़कियों के परिवार के सदस्य भी झांसे में आ जाते हैं। अनेक तरह के बहाने लड़कियों को घर छोड़कर निकलने के लिए विवश कर देते हैं। अलीगढ़ पुलिस ने एक माह में दो बार गिरोह के चंगुल से कई हिन्दु लड़कियों को पकड़ा। गिरोह का मुस्लिम सरगना हिन्दु नाम से सारी गतिविधियां संचालित कर रहा था। लव जिहाद के इस संजाल में फंसने वाली लड़कियों को अन्तत: ऐसे ठिकानों पर भेजा जाता है जहाँ से उन्हें तस्करी करके विदेश तक ले जाया जाता है। पुलिस को उत्तर प्रदेश में हिन्दु लड़कियों की तस्करी करने वाले पूरे गिरोह का पता लगाने के लिए कहा गया है। पर पुलिस तन्त्र अपने को इतना बोझिल मानता है कि वह ऐसे आदेशों पर प्रतिक्रिया नहीं करता।
हिन्दू लड़कियों की तस्करी जोरों पर
बिहार राज्य से हिन्दू लड़कियों की तस्करी बड़े जोर पर है। बिहार के कई स्थानों पर कम वय की लड़कियों से लेकर युवतियों और विवाहित महिलाओं की बिक्री के बाजार लगते हैं। हिन्दु नाम रखकर यह व्यवसाय करने वाले इतने अभ्यस्त हैं कि बहुत बार पुलिस उनकी अनदेखी करती है। इसके लिए पुलिस को प्रसन्न करने के उपाय उनके द्वारा किये जाते हैं। अप्रैल, मई, जून और जुलाई 2024 में बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में लड़कियों की तस्करी ने बहुत जोर पकड़ा। सभी जानते हैं यह समय देश में चुनावी अभियान का था। इस चुनाव के परिणामों ने ऐसे अपराधों में लगे लोगों को बहुत उकसाया है।
राहुल गांधी मिला रहे स्वर में स्वर
देश में आम चुनाव के बाद मुस्लिम राजनीति में बड़ा उबाल आया है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दल मुस्लिम नेताओं का समर्थन पाने से फूले नहीं समा रहे। कांग्रेस के अग्रणी नेता राहुल गांधी द्वारा हिन्दुओं को हिंसक बताने से इस वातावरण में और बढ़ोत्तरी हुई है। राहुल गांधी ने प्रतिपक्ष के नेता के रूप में लोकसभा के पटल से पदार्पण भाषण देते हुए देश के सभी हिन्दुओं को लक्ष्य करके अपमानित किया। उस समय उनके समर्थक मीडिया के लोगों और ऐसे ही कथित बुद्धिजीवियों ने कहना प्रारम्भ किया कि राहुल गांधी का उद्देश्य ऐसा नहीं था। वह तो केवल प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को चिढ़ाना चाहते थे।
राहुल गांधी ने हितचिन्तकों की अनदेखी करके फिर विस्फोट किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मेरे गठबन्धन ने अयोध्या में भाजपा प्रत्याशी को हराकर हिन्दुत्व को पीछे ढकेला है। राहुल ने यह भी कहा कि उनका लक्ष्य रामजन्मभूमि आन्दोलन को कड़ी चुनौती देना था। इसमें सफलता मिली है। इस आन्दोलन का प्रभाव अब नहीं रह गया। यह बात ध्यान देने की है कि कांग्रेस और वामपन्थ समर्थक मीडिया कर्मियों ने राहुल के बयान के ठीक बाद अयोध्या की ओर धावा बोला। जहाँ से धड़ा-धड़ ऐसे समाचार प्रेषित किये जाने लगे कि अयोध्या में अब श्रीराम मन्दिर में सन्नाटा पसर गया है। दर्शनार्थियों की भीड़ छट गयी है। अयोध्या के व्यवसायी क्षुब्ध हैं। उनका व्यापार ठप हो रहा है। जबकि यह बातें निरी काल्पनिक हैं। अयोध्या में प्रतिदिन 60 हजार से एक लाख लोग पहुँच रहे हैं। यह मानसून का समय है। किसान खरीफ की बुआई में व्यस्त है।
धार्मिक स्थलों पर कर सकते हैं श्रद्धालुओं की गिनती
प्रतिवर्ष सावन में दर्शनार्थियों के समूह बड़े स्तर पर तीर्थों में पहुँचते हैं। हिन्दू मन्दिरों में दर्शन के लिए सावन का महीना बहुत पावन माना जाता है। श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर निर्माण समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि सावन में हर मन्दिर में झूले सजाये जाते हैं। इसकी तैयारियों में काफी समय लगता है। अयोध्या, मथुरा, काशी, चित्रकूट सहित सभी तीर्थों में झूला उत्सव होते हैं। सन्तों की देखरेख में यह उत्सव मनाये जाते हैं। अयोध्या भी इसके लिए सजायी जाती है। यह हर वर्ष का विशेष कार्यक्रम होता है। जिन्हें हिन्दु श्रद्धालुओं की गिनती करनी हो वह सावन महीने में अयोध्या सहित सभी तीर्थों में जाकर देख सकते हैं। सभी जानते हैं कि चार जून 2024 को जो परिणाम आया उसमें भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह हार गये थे। 10 वर्षों से वह लोकसभा सदस्य थे। सपा के अवधेश प्रसाद को कांग्रेस का समर्थन था। अवधेश प्रसाद को जीत मिली। इस जीत से कांग्रेस और सपा से अधिक मुस्लिम राजनीति के धुरन्धरों का अहंकार प्रचण्ड हो गया है। इसीलिए उनका उतावलापन चरम पर है।
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कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय दलों के नेताओं द्वारा मुस्लिम नेताओं के स्वर में स्वर मिलाना हिन्दु जनमानस के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। भाजपा के नीति नियन्ता उत्तर प्रदेश की जनता को यह सफाई नहीं दे पा रहे हैं कि उन्होंने 2024 के चुनाव में ऐसे घटिया प्रत्याशियों को क्यों नहीं बदला जो 10 वर्षों में अपने प्रदर्शन को नहीं सुधार सके। इसके साथ ही रायबरेली, गाजियाबाद, जौनपुर, लखीमपुर जैसी सीटों पर निर्णय करने में भूल क्यों की। जौनपुर से कांग्रेस के बड़े नेता को उतारा गया। रायबरेली में कांग्रेस के पूर्व नेता और सोनिया परिवार के अनन्य सहायक को फिर से टिकट दिया गया।
जौनपुर में जिस कांग्रेस नेता को प्रत्याशी बनाया गया उसने दिग्विजय सिंह के साथ खड़े होकर उस पुस्तक का विमोचन कराया था जिसमें आरएसएस को उग्रवादी संगठन बताया गया था। इस कलंक की अनदेखी करके ऐसे नेता को किसने क्षमादान दिया। यह नेता चुनाव हार गया पर भाजपा में पकड़ बनाने के उसके प्रयत्नों को किसने परवान चढ़ाया यह प्रश्न अनुत्तरित है। पूरे राज्य में आधी से अधिक सीटों पर भाजपा सही निर्णय नहीं कर सकी। इन परिस्थितियों के कारण भाजपा अपराध बोध जैसी स्थिति में फंस गयी। जबकि सामान्य भारतीय मतदाता का मत है कि परिस्थितियों को शीघ्र नियन्तरित करके भाजपा नेताओं को अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर चुनौती स्वीकार करनी चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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