अभिषेक अजनबी
Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 (Loksabha Election 2024) की तैयारी शुरू हो गई है। इस बार बीजेपी की विजय यात्रा को रोकने के लिए विपक्ष जहां महागठबंधन कर चुनौती देने को तैयार है, वहीं बीजेपी भी एनडीए को और मजबूत करने में जुट गई है। क्षेत्रीय दल अपना वजूद बचाने के लिए जहां विपक्ष के महागठबंधन ‘इंडिया’ में जगह बना रहे हैं, वहीं एनडीए के सहयोगी दल नरेंद्र मोदी को एक बार फिर से प्रधानमंत्री मनाने के मुहिम में जुट गए हैं।
यूपी की सियासत में कभी अर्श पर रहने वाली बसपा (BSP) फर्श पर पड़ी हुई है। लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) जमीन की बजाय ट्विटर की राजनीति कर रही हैं। 2012 में यूपी की कुर्सी से उतरने और 2014 लोकसभा चुनाव में शून्य पर आउट होने के बाद बसपा कभी फ्रंट-फुट पर आकर नहीं खेल सकी, और स्थिति अब भी वैसी ही बनी हुई है।
2012 से शुरू हुई दुर्दशा
2007 में सरकार में रहने वाली बसपा (BSP) यहां विपक्ष की स्थिति में भी नहीं बची है। 2009 में 21 सांसदों वाली पार्टी 2014 में शून्य पार आ गई। 2019 में हाथी जब साइकिल पर सवार हुआ, तो मामला थोड़ा सा बना और बसपा के खाते में 10 लोकसभा सीटें आ गईं। लेकिन साइकिल की हवा निकल गई और उसे मात्र 5 सीटें ही मिलीं। अब फिर से लोकसभा चुनाव 2024 करीब है।
विपक्षी एकता के नफा-नुकसान
एक ओर विपक्षी दल जहां एकजुट हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर मायावती (Mayawati) एकला चलो की बात कर रही हैं। जबकि एकला चलो की नीति में नुकसान उनका ही है। यह बात पहले ही स्पष्ट हो चुकी है। लेकिन इस एकला चलो की नीति के पीछे असली वजह क्या है। इसका साफ अंदाज़ा सियासी गलियारों में गश्त लगाने वाले राजनीतिक सिपहसालारों को भी नहीं है।
ट्विटर पर दिखती है ‘माया’ की सॉफ्ट राजनीति
वहीं ट्विटर की राजनीति और माया की रणनीति में एक साफ्ट कार्नर स्पष्ट दिखाई देता है। मायावती के ट्वीट्स के जरिए जितनी बार मध्य प्रदेश सरकार को निशाना बनाती हैं, उतनी ही बार राजस्थान की गहलोत सरकार को आड़े हाथों लेती हैं। मणिपुर की घटना पर 20 जुलाई को थोड़ा कड़वा ट्वीट कर दिया। फिर 21 जुलाई को दो ट्वीट और किए जिससे लगा कि मानो डैमेज कंट्रोल किया जा रहा हो।
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रामगोपाल यादव ने कसा मायावती पर तंज
बसपा सुप्रीमो के इस ट्वीट के बाद सपा नेता रामगोपाल यादव ने मायावती पर हमला बोलते हुए कहा कि “बहनजी को अब बीजेपी में शामिल हो जाना चाहिए। वो बीजेपी की मदद के लिए ऐसा कर रही हैं। ये ऐसा मामला है जिस पर राजनीतिक लोग अपना मुंह बंद करके बैठ जाएं, क्या ऐसा हो सकता है। जहां एक तरफ पूरा मणिपुर अशांत हो। पूरे नॉर्थ ईस्ट पर इसका असर पड़ सकता है। उसमें ऐसी घटनाओं पर विपक्ष कैसे मौन रह सकता है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया होता तो अब तक कोई कार्रवाई भी नहीं होती।” फिलहाल बसपा की बैकफुट वाली बैटिंग जारी है, और सियासी पंडितों का मानना है कि जब तक बसपा अपने पुराने तेवर में फ्रंटफुट पर नहीं खेलेगी तब तक उसका फिर से अर्श पर पहुंचना नामुमकिन है।
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