Dharm Parivartan: भारत में मतान्तरण की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। देशभर में हिन्दु समाज के विविध संगठनों की ओर से मतान्तरण रोकने के लिए कठोर विधान बनाने की मांग तीव्रता से उठने लगी है। अनेक हिन्दु संगठनों का कहना है कि मतान्तरण के कारण भारत की सांस्कृतिक पहिचान के समक्ष गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया है। यह समस्या इतनी पुरानी और विकराल है कि स्वामी विवेकानन्द से लेकर महात्मा गांधी तक ने इसे रोकने की आवश्यकता पर बल दिया था। पर इस पर प्रभावी अंकुश अब तक नहीं लगाया जा सका। निश्चित रूप से इसके पीछे विदेशी शक्तियों का प्रभाव काम करता आ रहा है। जिन्हें नकारते हुए भारतीय अस्मिता की रक्षा करनी होगी।
संविधान की अनुचित व्याख्या की जा रही
भारतीय संविधान में धर्मान्तरण (मतान्तरण) की समस्या को लेकर प्रकट रूप से कोई बात नहीं कही गयी है। अनुच्छेद 25 से लेकर 28 के बीच जो कुछ कहा गया है, उसका सार इतना ही है कि स्वतन्त्र भारत में सभी नागरिकों को अपने धार्मिक प्रावधानों का स्वेच्छा से पालन करने की स्वतन्त्रता प्राप्त होगी। इसमें यह भी बताया गया है कि अपनी स्वेच्छा से भारत का हर व्यक्ति अपने धर्म का पालन और प्रचार-प्रसार कर सकेगा। प्रचार-प्रसार की आड़ में मतान्तरण की कूट चाल चलाते रहने की छूट ले ली गयी। वस्तुत: यह संविधान विरोधी है। संविधान ने मतान्तरण की अनुमति नहीं दी। अपने मजहब अथवा सम्प्रदाय की अच्छी बातों को उजागर करने भर की बात कही है। इसका अनुचित आशय लगाकर भारत के बहुसंख्य हिन्दू समाज के लोगों को मतान्तरित करने का कुचक्र दीर्घकाल से चल रहा है।
ईसाई मिशनरियों और मुसलिम मजहबी संगठनों द्वारा भारत में अपने मजहब और रिलीजन के प्रचार-प्रसार के नाम पर जिस तीव्रता के साथ हिन्दू धर्मावलंबियों का मतान्तरण किया जा रहा है उसके बहुत घातक परिणाम सामने आ चुके हैं। विश्व हिन्दु परिषद सहित हिन्दू समाज के 35 से अधिक संगठनों की ओर से मांग की जा रही है कि ईसाई और मुसलमानों द्वारा प्रलोभन तथा जबरदस्ती करके धर्मान्तरण कराने की घटनाओं ने और जोर पकड़ लिया है। ऐसा करने के पीछे भारत में मजहबी और रिलीजियस राजनीतिक सत्ता स्थापित करने का षडयन्त्र काम कर रहा है। मतान्तरण के लिए प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपये व्यय किये जा रहे हैं। भारत पर इस्लाम का वर्चस्व स्थापित करने के पीछे जहाँ संसार की अनेक मजहबी शक्तियां लगी हुई हैं वहीं भारत के कुछ स्वार्थी राजनीतिक दल देश विरोधियों के इशारों पर थिरक रहे हैं।
ईसाई मिशनरियों ने हिन्दुओं के मतान्तरण के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा रखी है। इन दोनों साम्प्रदायिक शक्तियों द्वारा अनेक राज्यों में सत्ता पर पकड़ बना ली गयी है। जिसके सहारे निरंकुश होकर काम किया जा रहा है। भारत की पहिचान को मिटाने का षडयन्त्र इतना तीव्र हो चुका है कि संसद से लेकर पूरे देश के गली मोहल्लों तक में परस्पर वैमनस्य बढ़ता जा रहा है। मतान्तरण की गतिविधियों पर अंकुश लगाना समय की सबसे बड़ी मांग है। अन्यथा भारत विश्व के उन देशों की तरह हिंसा और रक्तपात का शिकार बन जाएगा जो अपनी मौलिक अस्मिता खो चुके हैं।
भारत में ईसाई मिशनरियों की बाढ़
भारत में ईसाई मिशनरियों के 36 हजार से अधिक जत्थे सक्रिय होने की जानकारी केन्द्र सरकार को है। संसार के विभिन्न ईसाई संगठनों द्वारा यह जत्थे विभिन्न राज्यों में योजनाबद्ध रीति से भेजे जाते हैं। प्रकट रूप से सेवा और शिक्षा का आवरण इन मिशनरी संगठनों पर डालकर यह जताने का प्रयत्न किया जाता है कि भारत के वंचित समाज की सेवा और सहायता के लिए वह ऐसा कर रहे हैं। मिशनरियों के ईसाई संगठन धन उगाही के बड़े केन्द्र बन चुके हैं। अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के लोभ में इन संस्थाओं में पढ़ने वाले बच्चों को उनकी मौलिक धार्मिक मान्यताओं और परम्पराओं से बिलकुल पृथक कर दिया जाता है। उन्हें भारत की संस्कृति और इतिहास का तनिक भी ज्ञान नहीं कराया जाता। इसके विपरीत भारत के बच्चे इन शैक्षिक संस्थाओं में अंग्रेजी के साथ यूरोप और पश्चिम की संस्कृति, परम्पराओं तथा इतिहास की जानकारी के साथ बड़े होते हैं। इनके मन में भारत और भारतीयता के प्रति घृणा की भावना भर दी जाती है। आगे चलकर ऐसे बच्चे भारत की धरती और भारतीय संस्कृति से मुंह मोड़ लेते हैं।
निर्बल हिन्दुओं से उनकी आस्था की छीना -झपटी
ईसाई मिशनरियों ने प्रारम्भ से ही हिन्दू समाज के निर्बल बच्चों और उनके परिवारों को लक्ष्य करके मतान्तरण करना प्रारम्भ किया। ऐसे परिवारों की आर्थिक समस्याओं को ध्यान में रखकर लालच दिया और उनका मतान्तरण कराया। सेवा और शिक्षा के ढोंग की ढोल बजाते हुए ऐसे आयोजन अब खुलकर किये जाते हैं जिनमें भारी भीड़ के बीच हिन्दू देवी-देवताओं, परम्पराओं की खिल्ली उड़ायी जाती है। वोट के लालची अनेक राजनीतिक दलों की खुली सहायता ईसाई और मजहबी संगठनों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। स्वतन्त्रता के नाम पर जब भारत का विखण्डन हुआ तब भारतीय भू-भाग में केवल 76 लाख ईसाई बचे थे। वर्ष 2011 के बाद घोषित तौर पर ईसाइयों की कुल संख्या तीन करोड़ का अंक पार कर चुकी है। जबकि मतान्तरण के कारण अघोषित तौर पर भारत में पाँच करोड़ से अधिक ईसाइयों का संख्या बल हो चुका है। ईसाई मिशनरियों को सोनिया गांधी के कारण कांग्रेस पार्टी का सम्बल बहुत काम आ रहा है। कांग्रेस के नेता खुले तौर पर मतान्तरण के समर्थक बनते जा रहे हैं। यह उनकी विवशता हो सकती है किन्तु भारत की पहिचान के लिए यह अब तक का सबसे भयावह संकट है।
भारत के इस्लामीकरण की घोषणा भारत के भीतर काम कर रहे इस्लामिक केन्द्रों और इनके नेताओं द्वारा समय-समय पर की जाती है। प्रारम्भ में पाकिस्तान के अतिवादी इस्लामी संगठन और वहाँ की सरकार भारत में इस्लाम का वर्चस्व बढ़ाने की गतिविधियों में सीधे सहायक बनी रहती थी। अब पाकिस्तान के स्वर में स्वर मिलाकर कई अन्य इस्लामी शक्तियां भारत के इस्लामीकरण के पक्ष में खड़ी दिखायी दे रही हैं। इस प्रकार के अतिवादी संगठनों को भारत के कतिपय राजनीतिक दलों के बदले सुरों के कारण बल मिला है। अब यह कहा जाने लगा है कि भारत के वर्तमान विपक्ष के बहुसंख्य नेता हिन्दू समाज के मतान्तरण की व्यापक गतिविधियों में सहायक की भूमिका निभा रहे हैं। यही कारण है कि इस्लामी अथवा मिशनरी मतान्तरण की गतिविधियों को बड़ी रफ्तार मिली है।
स्वतन्त्रता के बाद तीव्र हुआ मतान्तरण
भारत में 1947 में स्वतन्त्रता मिलने के समय 03 करोड़ 20 लाख मुसलिम रह गये थे। जो 2023 में 20 करोड़ के आंकड़े के पार हो चुके हैं। मुसलिम संगठनों का मानना है कि हिन्दू समाज के कई वर्गों अर्थात जातियों के वोट बैंक के साथ जुड़कर उनके लिए सत्ता पर नियन्त्रण पाने की स्थितियां बन चुकी है। 2024 के आम चुनाव से पहले इसी समीकरण को आधार मानकर भाजपा को सत्ता से दूर करने की आकांक्षा से कांग्रेस सहित उसके सहयोगी राजनीतिक दल उतावलापन दिखा रहे थे। ऐसे दलों के साथ युति बनाकर भारत की सत्ता को हिन्दू प्रभुत्व से मुक्त करने का सपना मिशनरी और इस्लामी संगठन कर्ता देख रहे हैं। ऐसी स्थिति में मतान्तरण के विरुद्ध कतिपय राज्यों ने जो विधान बनाये हैं उनको और प्रभावी बनाने की चर्चाएं प्रारम्भ हो गयी हैं।
घुसपैठ और मतान्तरण से उत्पन्न हुआ संकट
भारत सरकार के अनेक मन्त्री इस मत के हैं कि मतान्तरण और घुसपैठ यदि नहीं रोकी गयी तो भारत का भविष्य अन्धकार मय हो जाएगा। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि ईसाई करण और इस्लामी करण भारत की सांस्कृतिक पहिचान के समक्ष बड़े खतरे हैं। इन खतरों को और गम्भीर होने देने से पहले रोकना होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वतन्त्रता के बाद से भारत पर यूरोपीय और अमेरिकी प्रभुत्व बना रहा है। अमेरिका ने 1982 में ईसाई संस्थाओं के दबाव में एक विधान बनाया था। जिसमें कहा गया था कि जो देश ईसाई मिशनरियों के काम में बाधा बनेंगे उन्हें अमेरिका और यूरोप मिलकर रोकेंगे। 1986 तक इस विधान को और प्रभावी बना दिया गया। जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ईसाई मिशनरियों के संगठनों को धर्म प्रसार और रिलीजियस गतिविधियों के विस्तार अर्थात मतान्तरण में जिस देश की सरकारें रुकावट डालेंगी उनके साथ आर्थिक सम्बन्ध और सहयोग की गतिविधियां रोक दी जाएंगी।
विधान में ऐसा संशोधन भारत को डराने के लिए ही लागू किया गया था। इसके कारण भारत में बड़े पैमाने पर ईसाई और इस्लामिक प्रभुत्व बढ़ा है। हिन्दु संगठनों का कहना है कि मतान्तरण के बाद भी आरक्षण जैसी सुविधाएं पूर्व की भांति देते रहना सर्वथा अनुचित है। इसके साथ ही समान नागरिक संहिता लागू नहीं होने के कारण हिन्दु समाज के समक्ष संकट उत्पन्न हो रहा है। इसीलिए मतान्तरण पर कठोर दण्ड की व्यवस्था लागू करने, मतान्तरित लोगों को आरक्षण की परिधि से बाहर करने की मांगे उठ रही हैं। भारत में इस्लाम और ईसाई संगठनों के कारण अनुमानत: 15 करोड़ हिन्दुओं की धार्मिक आस्था छीन ली गयी है। यह सर्वथा अनुचित है। ऐसे लोगों को मूल धर्म में वापस लाने के प्रयत्न हिन्दु संगठनों को मिलकर करने होंगे।
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मतान्तरण से हिन्दू लड़कियों को बचाना होगा
हिन्दू संगठनों की यह मांग सर्वथा उचित है कि लव जिहाद जैसी अपराधिक गतिविधियों पर कठोर दण्ड का विधान लागू किया जाना आवश्यक है। लव जिहाद के माध्यम से हिन्दू लड़कियों को फंसाने के बाद मतान्तरित किया जाता है। ऐसे मतान्तरण को अवैध घोषित करने की मांग भारत सरकार से की गयी है। जब तक हिन्दू लड़कियों के विवाह के लिए मतान्तरण पर रोक का प्रावधान नहीं है। अबोध लड़कियों को मतान्तरित करके निकाह किया जाता है। यह अपराध है जिसे पाक्सो अपराध की श्रेणी में रखना होगा। हिन्दू संगठनों का कहना है कि यह अपराधिक षडयन्त्र रोक पाना कठिन नहीं है।
वस्तुत: इसके लिए प्रशासन तन्त्र की इच्छा और न्यायपालिका में निष्पक्ष न्यायिक दृष्टि का अभाव है। भारत सरकार से विविध संगठनों की मांग है कि इस सन्दर्भ में त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिए। अन्यथा हिन्दू समाज से उसकी धार्मिक आस्था छीनने का उपक्रम निर्बाध चलता रहेगा। समय बीतने के साथ यदि अहिन्दु समर्थक राजनीतिक सत्ता केन्द्र में स्थापित हो गयी तो भारत की सांस्कृतिक पहिचान पर पूर्ण ग्रहण लगने की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
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