आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
मैं फिल्मी दुनिया के अधिकांश चेहरों का गणित और मानसिकता बहुत अच्छी तरह से जानता हूं। मनोज मुंतशिर शुक्ला को भी बहुत अच्छी तरह से जानता हूं। उससे दो मुलाकातें भी मुबई-दिल्ली में हुई। बातचीत में मुझे वह कभी नहीं लगा कि इसकी सनातन के प्रति कोई निष्ठा है या फिर इसके अंदर देशभक्ति की कोई बात है, खासकर मुबंई फिल्मी दुनिया में मुसलमानों के वर्चस्व और मुसलमानों की हिंसक गतिविधियों, मुस्लिम हीरो द्वारा हिन्दू लड़कियों के मानसिक-शारीरिक शोषण के प्रति कोई विचार या चिंता है। मुझे सिर्फ पैसे और नाम अर्जित करने की दौड़ में भागने वाला व्यक्ति लगा।
सोशल मीडिया पर ही नहीं बल्कि अन्य प्लेटफार्मों पर भी मनोज मुंतशिर को ब्राम्हण कह कर महिमा मंडन खूब किया जाता है। उसे महान राष्ट्रवादी बताया जाता है, प्रंचड विद्वान बताया जाता है। यह भी कहा जाता है कि मनोज मुंतशिर ब्राम्हण है इसलिए वह विद्वान है। मैं जब जातिवादी लोगों को इस तरह बात करते सुनता था, तब मुझे बहुत गुस्सा आता था। लेकिन मैंने कभी कलम नहीं चलायी, क्योंकि इसके पहले उसका सनातन विरोधी कोई खास सक्रियता नहीं दिखायी दी थी। वास्तव में मोदी राज के प्रकोप से बचने या फिर मोदी राज में सुविधाजनक स्थिति में रहने के लिए मनोज मुंतशिर जैसे गिरगिट बाज देशभक्त और राष्ट्रवादी होने का नाटक जरूर करते हैं।
मनोज मुंतशिर का सनातनी प्रेम और राष्ट्रवादी होने की पोल खुल गयी। उसने आदिपुरुष फिल्म में ऐसा संवाद लिखा, जिसको सुनकर किस सनातनी का गुस्सा नहीं फूटेगा? उसने अपने संवाद में सनातनी चिन्हों को दागदार करने, लांक्षित करने और अपमानित करने की कोई कसर नहीं छोड़ी है। ऐसे संवाद लेखन तो मुस्लिम लेखक भी करने से डरते थे। लेकिन राष्ट्रवादी का खोल ओढ़कर उसने सनातन की ऐसी-तैसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
फिर ब्राम्हणों की यूनियन बाजी शुरू हो गयी। कितु-पंरतु का खेल शुरू हो गया। जातिवादी ब्राम्हण मनोज मुंतशिर को बचाने के लिए आगे आ गये। सोशल मीडिया पर अपने आप को घोर राष्ट्रवादी कहने वाले लोग भी अपनी जाति की बाढ़ में शामिल हो गये और कहने लगे कि सनातन विरोधी संवाद फिल्मी की जरूरत थी, जिसे संवाद अच्छा नहीं लगता वे आदिपुरुष फिल्म नहीं देखें। मनोज मुंतशिर एक महान राष्ट्रवादी और विद्वान है, सिर्फ एक संवाद के कारण उस पर उंगली मत उठाओ। इसके अलावा मुंतशिर के पक्ष में ब्राम्हणों ने अनेक तर्क भी दिये।
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मनोज मुंतशिर अगर ब्राम्हण न होकर कोई अन्य जाति का होता तो फिर अपने आप को राष्ट्रवादी कहने वाले ब्राम्हण सोशल मीडिया पर ही नहीं, बल्कि राजनीतिक तौर पर भी बड़ा बखेड़ा करते, उसकी जाति को भी छोल-छोल कर गाली देते, सड़कों पर उतर कर विरोध करते, मनोज मुंतशिर को फिल्मी दुनिया से बाहर करने का फरमान सुनाते। ब्राम्हण प्रसून जोशी का भी विरोध नहीं करते, जो आदिपुरुष सहित अन्य सनातन विरोधियों की फिल्मों को प्रमाण पत्र जारी करता है।
मनोज मुंतशिर को सबक सिखाया जाना चाहिए था। उसके खिलाफ प्रंचड विरोध की जरूरत थी। क्योंकि उसने सनातन को लांक्षित किया, अपमान किया, बदनाम किया। इसके साथ प्रसून जोशी को भी सबक सिखाया जाना चाहिए, जिसने आदिपुरुष को प्रमाणपत्र दिया। मनोज मुंतशिर जैसे संवाद लेखकों की हिम्मत नहीं है कि वे इस्लाम के खिलाफ इस तरह का संवाद लेखन कर सके। अगर वे ऐसा करेंगे तो फिर सलमान रूश्दी और तसलीमा नसरीन, नूपुर शर्मा बन जायेंगे। सनातन शांति का धर्म है, इसीलिए वे सनातन को ही आसान शिकार बनाते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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