नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर मचे राजनीतिक बवाल के बीच, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर अपना पक्ष स्पष्ट किया है। आयोग ने कोर्ट से साफ कहा है कि मतदाताओं के मताधिकार से बड़े पैमाने पर वंचित होने के जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वे ‘बेहद बढ़ा-चढ़ाकर’ पेश किए गए हैं। चुनाव आयोग का आरोप है कि निहित राजनीतिक हितों को साधने के लिए इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है।
सांसद डोला सेन की याचिका पर आया जवाब
यह हलफनामा सांसद डोला सेन द्वारा दायर जनहित याचिका के जवाब में आया है, जिसमें उन्होंने 24 जून और 27 अक्टूबर 2025 को जारी SIR आदेशों की वैधता को चुनौती दी थी। आयोग ने अपने जवाबी हलफनामे में जोर देकर कहा कि यह पुनरीक्षण प्रक्रिया संवैधानिक रूप से अनिवार्य, सुस्थापित और एक नियमित रूप से संचालित की जाने वाली प्रक्रिया है।
क्यों जरूरी है SIR
चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि मतदाता सूचियों की शुद्धता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए यह प्रक्रिया बेहद आवश्यक है। आयोग ने बताया कि यह SIR संविधान के अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की संबंधित धाराओं पर आधारित है, जो आयोग को आवश्यकतानुसार मतदाता सूचियों में संशोधन करने का अधिकार देता है।
दोहरी एंट्री का जोखिम: पिछले दो दशकों में तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और मतदाताओं की गतिशीलता (एक जगह से दूसरी जगह जाना) के कारण मतदाता सूची में नाम जोड़ना और हटाना एक नियमित चलन बन गया है, जिससे दोहराई गई (Duplicate) और गलत प्रविष्टियों का जोखिम बढ़ गया है।
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राजनीतिक दलों की शिकायतें: देश भर के राजनीतिक दलों की लगातार शिकायतों के कारण, अखिल भारतीय स्तर पर विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्णय लिया गया है।
ऐतिहासिक परंपरा: आयोग ने बताया कि 1950 के दशक से ही समय-समय पर ऐसे संशोधन किए जाते रहे हैं, जिनमें 1962-66 और 1983-87 जैसे बड़े देशव्यापी संशोधन शामिल हैं।
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