श्रीधर अग्निहोत्री

भारतीय सिनेमा का एक चमकता सितारा हमेशा के लिए बुझ गया है। शास्त्रीय नृत्य की माहिर कलाकार और सदाबहार अभिनेत्री मधुमति ने 87 साल की उम्र में आखिरी सांस ले ली। वह सिर्फ एक शानदार डांसर ही नहीं, बल्कि अभिनय और अभिव्यक्ति का एक ऐसा दुर्लभ मेल थीं, जिन्होंने पारंपरिक कला की शालीनता को फिल्मों की दुनिया की चुस्ती के साथ जोड़ दिया था।

मधुमति का सिनेमा सफर उस जमाने में शुरू हुआ था जब पर्दे पर नृत्य को सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि भावनाओं की एक जबान माना जाता था। उन्होंने ‘आँखें’ से लेकर ‘अमर अकबर एंथनी’ और ‘चरस’ से ‘फूल और पत्थर’ तक कई फिल्मों में अपनी अदाओं से पर्दे को जिंदा कर दिया। उनका डांस सिर्फ शरीर की थिरकन नहीं, बल्कि दिल की गहराइयों से निकली एक कविता थी, जो उनकी आँखों में बसती थी और उनके कदमों की थाप पर गूँजती थी।

आपमें से कई लोगों को फिल्म ‘मेरे हुजूर’ (1968) का वह मशहूर गाना “झनक झनक तोरी बाजे पायलिया” जरूर याद होगा, जिसमें राजकुमार पर नाचती हुई वह अभिनेत्री दिखाई देती हैं। हैरानी की बात यह है कि ज्यादातर लोग उन्हें हेलेन समझ बैठते थे, लेकिन वह असल में मधुमति थीं। हेलेन से मिलती-जुलती शक्ल के कारण वह अक्सर इस तरह की भ्रम पैदा कर देती थीं, लेकिन उनकी अपनी एक अलग पहचान थी, जो उनके नृत्य की शुद्धता और अभिनय की गरिमा से बनी थी।

Madhumati

अपने करीब 25 साल लंबे फिल्मी करियर में उन्होंने ‘जानवर’ (1965), ‘झुक गया आसमान’ (1968), ‘सुहागरात’ (1968), ‘पवित्र पापी’ (1970) जैसी कई यादगार फिल्में दीं। बी.आर. चोपड़ा और रामानंद सागर जैसे दिग्गज निर्देशकों की फिल्मों में वह अक्सर नजर आईं। फिल्म ‘हमराज’ का गाना “न मुँह छिपा के जियो, न सर झुका के जियो” आज भी लोगों के जेहन में ताजा है, जिसमें उन्होंने सुनील दत्त के साथ जबर्दस्त डांस किया था।

‘पवित्र पापी’ का “ले ले सैयाँ ओढ़नी पंजाबी” और ‘तलाश’ का “तेरे नैना तलाश करे जिसे” जैसे गाने उनकी लोकप्रियता के सबूत बने रहेंगे। फिल्म ‘ये रात फिर न आएगी’ (1966) का गाना “हुजूर-ए-आला…” तो आज भी उनकी शोहरत का पर्याय बना हुआ है।

मधुमति का जन्म मुंबई के एक पारसी परिवार में हुआ था और उनका असली नाम हूटाक्सी दारा रिपोर्टर था। उनके पिता न्यायाधीश थे और माँ गृहिणी। तीन भाइयों और तीन बहनों में वही नृत्य के प्रति सबसे ज्यादा समर्पित थीं। उनके बड़े भाई पीलू दारा रिपोर्टर एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट अंपायर भी रहे। मधुमति को बचपन से ही नाचने का शौक था। उनके पिता ने उन्हें फिल्मों में काम करने की इजाजत इस शर्त पर दी थी कि वह सिर्फ डांस ही करेंगी, एक्टिंग नहीं। और यही डांस उन्हें उनकी पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ (1960) तक ले गया।

फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। स्टेज और सिल्वर स्क्रीन, दोनों पर उन्होंने सौंदर्य और अनुशासन की एक मिसाल पेश की। ‘अमर अकबर एंथनी’ उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई।

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फिल्मों से दूर जाने के बाद उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाई। सुनील दत्त और नरगिस से उनके गहरे रिश्ते थे, जिसकी वजह से उन्होंने ‘अजन्ता आर्ट्स’ बैनर बनाया और कई सफल शो किए। बाद में उन्होंने मुंबई में एक डांस स्कूल भी खोला, जहाँ अमृता सिंह, गोविंदा, अक्षय कुमार, फराह और सोनम जैसे सितारों ने डांस सीखा।

साल 2002 में अपने पति मनोहर दीपक के गुजर जाने के बाद, मधुमति ने खुद को पूरी तरह अपने परिवार और छात्रों के लिए समर्पित कर दिया। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके सिखाए हर शिष्य और उन्हें देखने वाला हर दर्शक यही कहता है- नृत्य थम सकता है, लेकिन उसकी मिठास कभी खत्म नहीं होती। मधुमति चली गईं, मगर उनकी थिरकन आज भी सिनेमा के पर्दे पर जिंदा है।

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