अनिल पण्डित
नेहरू-गांधी-अम्बेडकर का प्रयोग कैसे करना है? यह भारत के मुसलमान भाइयों से सीखा जाना चाहिए। अभी कुछ दिनों पहले शाहीनबाग के प्रोटेस्ट में बुर्का पहने कई मुस्लिम स्त्रियाँ एक हाथ में संविधान और दूसरे हाथ में गांधी- अम्बेडकर की फ़ोटो लिए वर्तमान सरकार के द्वारा लाए गए CAA का विरोध कर रही थी। अब देखिए नेहरू-गांधी की तुलना सेक्युलर तालिबान से कर दी गई है। कांग्रेस के मुँह पर तमाचे तो हमेशा से ही पड़ते रहते है और दिमागी रोग से ग्रस्त खूंखार वामियों से तो क्या कहिएगा।
भारतीय मुसलमान भाइयों की पड़ताल एक मनोवैज्ञानिक दायरे में होनी चाहिए और साथ में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भी देखा जाना चाहिए और साथ में वामियों से इनकी क्यों बनती है ये भी देखा जाना चाहिए। वामियों के अनुसार दुनिया दो हिस्सों में विभाजित है, एक तरफ शोषक और दूसरी तरफ शोषित। अब थोड़ा मेरे भाइजानों के बारे में जान लीजिए। मुस्लिम धर्म के सिद्धांतों के अनुसार विश्व दो हिस्सों में बंटा हुआ है- एक तरफ “दार-उल-इस्लाम” तथा दूसरी तरफ “दार-उल- हर्ब।”
दार-उल-इस्लाम का अर्थ है, वह देश जहां मुसलमानों का शासन है। दार-उल-हर्ब का अर्थ है, वह देश जिसमें मुसलमान रहते हैं लेकिन उसपर उनका शासन नहीं होता है। जो मुसलमान अपने आप को दार-उल-हर्ब में पाते हैं उनके बचाव के लिए हिज़रत ही उपाय नहीं है। मुस्लिम धार्मिक कानून की दूसरी आज्ञा ज़िहाद (धर्मयुद्ध) है जिसके तहत हर मुसलमान शासक का यह कर्तव्य हो जाता है कि इस्लाम के शासन का तबतक विस्तार करता रहे जब तक सारी दुनिया मुसलमानों के नियंत्रण में नहीं आ जाती।
संसार के दो खेमों में बंटने की वजह से सारे देश या तो दार-उल-इस्लाम (इस्लाम का घर) या दार-उल-हर्ब (युद्ध का घर) की श्रेणी में आते है। तकनीकी तौर पर हर मुस्लिम शासक जो इसके लिए सक्षम है उसका कर्तव्य है कि वह दार-उल-हर्ब को दार-उल-इस्लाम में बदल दे और भारत में जिस तरह मुसलमानों के हिज़रत का मार्ग अपनाने के उदहारण है, वहां ऐसे भी उदहारण है कि उन्होंने ज़िहाद की घोषणा करने में संकोच नहीं किया।” (“पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन”, डॉ. बी.आर.आंबेडकर, पृष्ठ संख्या 296-297)
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आप लोग CAA और NRC के विरोध पर चौंक रहे हैं, आप तब्लीगी जमात के थूकने पर चौंक रहे हैं, आप शाहीन बाग पर चौंक रहे हैं। आप तालिबान समर्थकों पर चौंक रहे हैं। अरे यही तो ज़िहाद (धर्मयुद्ध) है जिसके द्वारा हिंदुस्तान को दार-उल-इस्लाम बनाएं जाने का काम चल रहा है। CAA, NRC दार-उल-इस्लाम पर चोट है, इसलिए तो इनका विरोध है। मोदी-शाह वे व्यक्तित्व है जो हिंदुत्व की दीवार का निर्माण कर रहे है ताकि दार-उल-इस्लाम हिंदुस्तान में न घुसने पाए, इसलिए इन दोनों से भाइजानों को नफरत है। पर इन दोनों मज़दूरों के पीछे 100 करोड़ लोगों की ताकत है।
(इस लेख के कुछ तथ्य “पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन”, डॉ. बीआर आंबेडकर की पुस्तक से लिए गए हैं।)
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