नई दिल्ली: पोप फ्रांसिस (pope francis) 88 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए, ईसाई धर्म के लिए एक युग का अंत लेकर आए। ईस्टर के ठीक अगले दिन उनका निधन हुआ, जिससे पूरी कैथोलिक दुनिया शोक में डूब गई। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगला पोप कौन होगा?
वेटिकन की परंपरा के अनुसार, कॉन्क्लेव नामक एक विशेष सम्मेलन के दौरान 80 वर्ष से कम उम्र के कार्डिनल्स अगला पोप चुनते हैं। आइए जानते हैं वो 5 प्रमुख चेहरे जो इस दौड़ में सबसे आगे माने जा रहे हैं:
1. लुइस एंटोनियो टैगल (फिलीपींस)
67 वर्षीय लुइस एंटोनियो टैगल को “एशियाई फ्रांसिस” कहा जाता है क्योंकि उनके विचार काफी हद तक पोप फ्रांसिस जैसे ही हैं, सहानुभूतिपूर्ण, समावेशी और बदलाव के पक्षधर। वह वेटिकन के प्रभावशाली विभाग “इवेंजेलाइजेशन डिकैस्टरी” के प्रमुख रह चुके हैं।
2. पिएट्रो पारोलिन (इटली)
वेटिकन के प्रमुख राजनयिक और राज्य सचिव, पिएट्रो पारोलिन (70 वर्ष) की पहचान संतुलन और स्थिरता लाने वाले नेता के रूप में है। चर्च के आंतरिक प्रशासन में उनकी गहरी समझ उन्हें मज़बूत दावेदार बनाती है।
3. पीटर तुर्कसन (घाना)
सामाजिक न्याय, पर्यावरण और गरीबी जैसे विषयों पर मुखर, पीटर तुर्कसन (76) अगर चुने जाते हैं तो वह आधुनिक युग के पहले अफ्रीकी पोप होंगे। उनके नेतृत्व से चर्च को वैश्विक दक्षिण में नई ऊर्जा मिल सकती है।
4. पीटर एर्डो (हंगरी)
रूढ़िवादी विचारधारा के समर्थक, 72 वर्षीय पीटर एर्डो चर्च की पारंपरिक शिक्षाओं को बनाए रखने के पक्षधर हैं। वह यूरोपीय बिशप सम्मेलनों के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं।
5. माटेओ जुप्पी (इटली)
बोलोग्ना के आर्कबिशप और पोप फ्रांसिस के नज़दीकी, माटेओ जुप्पी (69) को उदारवादी और करुणाशील नेतृत्व के लिए जाना जाता है। वह युवा और प्रगतिशील दृष्टिकोण लाने वाले उम्मीदवार माने जा रहे हैं।

कब और कैसे चुना जाएगा अगला पोप
पोप की मृत्यु के बाद 15 से 20 दिनों के भीतर कॉन्क्लेव बुलाया जाता है। सिस्टिन चैपल में 80 साल से कम उम्र के कार्डिनल गुप्त मतदान करते हैं। नया पोप बनने के लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी होता है। सफेद धुआं उठना नए पोप के चयन का संकेत होता है, जबकि काला धुआं दर्शाता है कि अभी चुनाव जारी है।
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चर्च की दिशा अब किस ओर
अगले पोप को एक ऐसा चर्च विरासत में मिलेगा, जो यूरोप-अमेरिका में घटती उपस्थिति और अफ्रीका-एशिया में बढ़ते प्रभाव के बीच संतुलन तलाश रहा है। साथ ही LGBTQ+, तलाक, पादरियों की शादी और लैंगिक समानता जैसे मुद्दों पर चर्च की भूमिका की फिर से व्याख्या की जा रही है।
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