संसार के लोग जिस देवबन्द नगर को इस्लामी केन्द्र दारुल उलूम के नाम से जानते हैं वह नगर वस्तुत: एक प्रागैतिहासिक हिन्दू मन्दिर के नाम पर बसा है। यह मन्दिर त्रिपुर सुन्दरी बाला देवी का है। इस मन्दिर के मुख्य द्वार पर एक शिलालेख लगा हुआ है। इस शिलालेख की भाषा की पहिचान अब तक नहीं हो पायी। यह मन्दिर कब बना किसने बनवाया यही बातें इस शिलालेख में लिखी होंगी। ऐसा कहा तो जाता है पर पुरातत्ववेत्ता अब तक इस सन्दर्भ में कोई उचित उत्तर नहीं दे पाये। इसका मूल कारण यह है कि शिलालेख की लिपि अब तक पढ़ी नहीं जा सकी।
देवबन्द के इस पवित्र देवस्थान के समक्ष एक देवी कुण्ड है। इस कुण्ड के सामने 11 मुखी महादेव अर्थात शिवजी की मूर्ति स्थापित है। इस मन्दिर के साक्ष्यों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता इसे महाभारत काल या उसके पूर्व स्थापित किया गया मानते हैं। महाभारत ग्रन्थ में कुरुवंश और पाण्डु पुत्रों द्वारा त्रिपुर सुन्दरी माँ बाला देवी की पूजा किये जाने की बात आती है। महाभारत काल में इस मन्दिर के आसपास बहुत घना वन था। इसी घने वन के बीच देवी वन था। देवी वन के नाम पर इस क्षेत्र का नाम देवबन्द पड़ा था।
देवबन्द की सिद्धपीठ में स्थित 11 मुखी महादेव मन्दिर में मुख्य शिवलिंग छोटे आकार के 10 शिवलिंगों से घिरा हुआ है। यहाँ श्रद्धालु एक साथ 11 शिवलिंगों की पूजा करते हैं। इस मन्दिर के सन्दर्भ में मान्यता है कि जब कभी कोई श्रद्धालु संशय रहित होकर 41 दिनों तक प्रतिदिन यहाँ जलाभिषेक और बेलपत्र आदि के साथ अर्चन करता है तो उसकी कठिन से कठिन मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
देवबन्द के त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर और सिद्धपीठ शिव मन्दिर की महत्ता को स्वतन्त्र भारत की सरकारों ने सेक्लुरिज्म के नाम पर कभी महत्व नहीं दिया। सदा उपेक्षा की जाती रही। तो दूसरी ओर शिवभक्तों की भीड़ इस मन्दिर में दर्शन और पूजन के उद्देश्य से प्रतिवर्ष आती रहती है। मन्दिर के सन्दर्भ में अनेक तरह की किवदन्तियां और प्रसंग प्रचलन में हैं। पर सबसे विचित्र बात यह है कि देवबन्द के इस्लामी केन्द्र दारुल उलूम के लिए भारत की सेक्युलर कही जाने वाली पार्टियां मुसलिम मतों के लालच में जो- सो न्यौछावर करती आ रही हैं। त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर और त्रिपुर शक्ति पीठ की उपेक्षा पुरातत्व विभाग द्वारा किये जाने का मुख्य कारण यह है कि सनातन संस्कृति के प्रति उपेक्षा का भाव रखने वाले जहाँ इस स्थान को शत्रु जैसी दृष्टि से देखते हैं वहीं हिन्दु समाज के लोग भी अपने इस पुण्य स्थल को भुलाते जा रहे हैं। स्थानीय हिन्दु समाज इस्लामी केन्द्र के कारण सदा दबाव और भय की स्थिति में रहता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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