चीन की विस्तारवादी नीति का सबसे बड़ा अस्त्र पाकिस्तान के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ है। चीन जिसे हड़प कर बर्बाद करना चाहता है उसे न चाहते हुए भी भारी कर्ज के बोझ से लाद देता है। पाकिस्तान के विवेकशून्य राजनेताओं को चीन ने इसी अस्त्र से अपने चंगुल में फंसा लिया। पाकिस्तान पर चीन ने अपनी मुद्रा युआन से 60 अरब का बोझ लाद दिया। एक युआन का मूल्य पाकिस्तान के लगभग 40 रुपयों के बराबर होता है। इस प्रकार यह देश 2400 अरब पाकिस्तानी रुपये के बोझ में दबा हुआ है। आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी राशि तो मूलधन है। इस पर चक्रवृद्धि ब्याज लगना स्वाभाविक है।
चीन के इस कर्ज की एक भी मुद्रा पाकिस्तानी राजकोष में नहीं गयी। सबसे विचित्र बात यह है कि पाकिस्तान में ग्वादर बन्दरगाह से बलूचिस्तान, वाल्टिस्तान, गिलगित, चित्राल होते हुए अक्सायी चिन तक चीन ने एक बड़ी सड़क का अधूरा निर्माण किया है। इस पूरी परियोजना को पूर्ण किये बिना चीन के इंजीनियरों और एक लाख से अधिक चीनी श्रमिकों को वहाँ से भागना पड़ा है। क्योंकि बलूचिस्तान के नागरिक इसका विरोध कर रहे हैं। एक आत्मघाती हमले में चीन के छह बड़े इंजीनियर और 40 से अधिक श्रमिक एक दिन में मार डाले गये। चीनी श्रामिकों और अधिकारियों की हत्याओं का सिलसिला कई वर्षों से चल रहा है।
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चीन ने 2400 अरब पाकिस्तानी रुपये के मूल्य के बराबर कर्जा लादने के बाद कई और परियोजनाओं की शुरुआत नये कर्जों के आधार पर करके अधूरा छोड़ दिया है। इनमें उपरोक्त सड़क के दोनों ओर 12 हजार फैक्ट्रियां बनायी जा रही थीं। कई नदियों पर बांध बनना प्रारम्भ हुए थे। विद्युत परियोजनाओं को भी चीन ने अपने हाथ में लिया था। जिसके लिए निर्धारित धनराशि पाकिस्तान पर ऋण के मद में सूचीवद्ध हो चुकी है। यह समस्त परियोजनाएं भी ठप हो गयी हैं। आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि चीन ने पाकिस्तान को कर्ज के इतने बड़े बोझ के नीचे दबा दिया है कि यदि पाकिस्तान के आका अपने देश के बराबर की भूमि को 10 बार नीलाम करें तो भी चीन का ऋण चुकाना उनके लिए कठिन होगा। पाकिस्तान की मीडिया इस सन्दर्भ में बड़े उपहासपूर्ण भाव से कहती है जिन्होंने ऋण के लिए आवेदन किये वह भुगतान के समय जीवित रहे तो भी जेलों में बन्द मिलेंगे। ऐसी दशा में चीन अपने प्रिय देश पाकिस्तान के साथ कैसा वर्ताव करेगा, कोई नहीं जानता। चीन का दांव विफल मानने वालों का कहना है कि सम्पूर्ण परियोजना अधर में लटकी है जो ऋण के भुगतान की शर्त पूरी होने में बड़ी बाधा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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