निश्चित रूप से किसी पार्टी का संगठन उस पार्टी की सरकार से बड़ा होता है। मुझे यहां पर प्रयागराज का एक विवरण याद आ रहा है। उस समय प्रयागराज के धर्मवीर उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे तथा संभवतः विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। दोनों ही मेरे मित्र थे। एक दिन मैं सुलेमसराय इलाके में स्थित धर्मवीर के आवास पर बैठा हुआ था तथा पार्टी के अन्य पदाधिकारी आदि भी वहां उपस्थित थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री अपने पद से इस्तीफा देने के इच्छुक थे, क्योंकि धर्मवीर को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा थी।
धर्मवीर के पास बैठे लोगों में इसी विषय पर चर्चा हो रही थी। उस वक्त धर्मवीर ने टिप्पणी की थी कि संगठन सरकार से बड़ा होता है, इसलिए बिना उनकी अनुमति के मुख्यमंत्री इस्तीफा नहीं दे सकते। संगठन पर हावी होने की जवाहरलाल नेहरू की प्रवृत्ति को इंदिरा गांधी ने इतना चरम पर पहुंचा दिया था कि उनकी इच्छा ही संगठन की इच्छा बन गई थी। उस समय कांग्रेसियों का ‘इंदिरा इज इंडिया’ का नारा बहुत जोरों पर था। उसी दौर में एक बार प्रयागराज में जिला कांग्रेस की एक सभा हो रही थी, जिसमें पत्रकार के रूप में मैं मौजूद था। उस सभा में राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इंदिरा गांधी की हावी होने की उस प्रवृत्ति की बहुत तारीफ की थी।
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी पिछले दिनों कहा कि संगठन सरकार से बड़ा होता है। हालांकि जो चर्चा है, उसके अनुसार उनके कथन का उद्देश्य मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की ताकत को कमजोर करना था। कोई भी सिद्धांत व्यक्तिविशेष एवं परिस्थिति पर भी निर्भर करता है। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी संगठन का जो वर्तमान रूप है, उसे लोग निकम्मे संगठन के रूप में निरूपित कर रहे हैं। लोगों का मत है कि लोकसभा के पिछले चुनाव में भाजपा की सीटें जो कम हुई हैं, उसके लिए संगठन पूरी तरह जिम्मेदार है। वह हवाई किले बांधने में लगा रहा तथा सुदृढ़ नींव के अभाव में लोकसभा चुनाव के समय वह किला भरभराकर गिर गया। ‘बूथ प्रमुख,’‘पन्ना प्रमुख’ आदि का कहीं कोई उपयोगी अस्तित्व नहीं था। यहां तक कि मतदान के दिन भी इन लोगों का कुछ अतापता नहीं लग रहा था।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश भाजपा का संगठन दो हाथों में है- प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी एवं महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह। ये दोनों तो अहंकार से ग्रस्त हैं ही, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित का भी वही हाल है। यही कारण है कि भाजपा संगठन पूरी तरह निष्क्रिय एवं अनुपयोगी सिद्ध हो रहा है। इसी से पार्टी-कार्यकर्ताओं का बढ़ता जा रहा असंतोष पार्टी को भीषण क्षति पहुंचा रहा है। उस असंतोष को दूर करने के लिए जो उपाय किए जा रहे हैं, वे छिछले सिद्ध हो रहे हैं। संगठन के कर्णधारों पर अपेक्षित नियंत्रण का अभाव है।
प्रदेश भाजपा के महामंत्री (संगठन) का जो हाल है, उसका मात्र एक उदाहरण पर्याप्त है। लोकसभा-चुनाव के समय बहुत लोग सुविख्यात महंतश्री देव्यागिरि जी को भाजपा में शामिल कराना चाहते थे, किन्तु बताया जाता है कि संगठन मंत्री ने यह कहकर मना कर दिया था कि ऐसे हजारों साधु-संत भाजपा के पास हैं। संगठन के कर्णधारों के आचरण ने लोकसभा के चुनाव में पार्टी को बहुत क्षति पहुंचाई। भाजपा सरकार के मंत्रियों का आचरण भी अहंकारपूर्ण होने से लोकसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान हुआ।
वर्षों पूर्व जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, उस समय भारतीय जनता पार्टी के बहुत धाकड़ नेता सुंदर सिंह भंडारी उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रभारी थे। उनके-जैसे कुशल संगठनकर्ता एवं नेतृत्वकर्ता बिरले हुआ करते हैं। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह-जैसी विभूति सत्तासीन थी। सुंदर सिंह भंडारी का देहावसान होने से उत्तर प्रदेश भाजपा में कड़े अनुशासन का अभाव हो गया तथा प्रदेश-भाजपा बिखरनी शुरू हो गई थी। स्वार्थी तत्व कल्याण सिंह को चलने नहीं दे रहे थे। धीरे-धीरे भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में चौथे नंबर पर पहुंच गई थी। बाद में प्रदेश अध्यक्ष बनने पर लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने उस निष्प्राण पार्टी को पुनः जीवंत किया था।
वैसे, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की उपलब्धता भी आसान नहीं मानी जाती है। उनसे भेंट हो पाना टेढ़ी खीर समझा जाता है। यहां तक कि ‘जनता दर्शन’ में भी प्रायः मुख्यमंत्री के बजाय अन्य लोग जनता की फरियाद सुनते हैं। जनता की समस्याओं का संतोषजनक रूप में निपटारा नहीं हो पाता है। नौकरशाही बुरी तरह हावी है, जिससे प्रदेश की जनता तो त्रस्त है ही, पार्टी-कार्यकर्ताओं में भी असंतोष व्याप्त है। लेकिन देश में दशकों तक हिंदूविरोधियों के हाथ में सत्ता रहने से उस दौर में हिंदुओं ने जो भीषण उपेक्षा और दमनचक्र झेला, उत्तर प्रदेश की जनता को योगी आदित्यनाथ ने ही उस यंत्रणा से मुक्ति दिलाई। इसी से उन्हें ‘हिंदू हृदय सम्राट’ माना जा रहा है। उनकी योग्यता, क्षमता एवं दृढ़ता तथा उनके प्रखर राष्ट्रवादी व्यक्तित्व के कारण प्रदेश की देशभक्त जनता उन्हें अपना उद्धारक व कर्णधार मानती है।
प्रदेश में योगी आदित्यनाथ-जैसी हिंदूवादी छवि किसी की नहीं है। इसका एक प्रमाण यह है कि बंगलादेश में हिंदुओं का जो नरसंहार हो रहा है, उस पर उत्तर प्रदेश में सबकी जुबान बंद है, किन्तु योगी आदित्यनाथ ने दहाड़कर कहा है कि पड़ोस जल रहा है और वहां हिंदुओं को चुन-चुनकर मारा जा रहा है। उन्होंने हिंदुओं से यह अपील भी की कि वे इतिहास से सीख लेकर एकजुट हो जाएं। इस समय उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी संगठन की ‘ओवरहॉलिंग’ की सख्त जरूरत है। यहां ऐसा वातावरण बनना चाहिए कि पार्टी-कार्यकर्ता पार्टी-मुख्यालय को अपना घर समझें। उसे ‘कारपोरेट स्थल’ का जो रूप दे दिया गया है, वह नुकसानदेह हो रहा है। मुख्यालय-परिसर में आम कार्यकर्ताओं की भीड़ के बजाय बड़ी-बड़ी कारों वाले धन्नासेठों का अस्तित्व दिखाई देता है। इस वातावरण को बदला जाना चाहिए, ताकि ऐसे लोगों के बजाय मुख्यालय-परिसर प्रदेशभर से आए हुए कार्यकर्ताओं से भरा रहे।
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भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश-मुख्यालय में जनता एवं पार्टी-कार्यकर्ताओं की नित्य सुनवाई की जो व्यवस्था थी और जिसे समाप्त कर दिया गया है, वह व्यवस्था अतिकारगर रूप में पुनः शुरू की जाए। पार्टी के प्रदेश-अध्यक्ष नित्य तीन-चार घंटे कार्यकर्ताओं के बीच मौजूद रहें तथा कार्यकर्ताओं से अहंकारपूर्वक नहीं, बल्कि आत्मीयतापूर्वक बातें करें। कार्यकर्ताओं की शिकायतों पर पार्टी-मुख्यालय से जो पत्र शासन व प्रशासन में भेजे जाएं, उन पर समुचित रूप में त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए। पार्टी-कार्यकर्ताओं को महसूस होना चाहिए कि प्रदेश में उनकी अपनी सरकार है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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