वेद कहते हैं, राजा यदि सात्विक है तो राष्ट्र को वैभवशाली बन जाने में कोई बाधा ही नहीं है। श्रीराम चरित मानस के उत्तर काण्ड में यही धारणा गोस्वामी तुलसीदास जी स्थापित करते हैं, सात्विक श्रद्धा धेनु सुहाई। वेद का कथन और गोस्वामी जी की धारणा केवल लिखित या वाचिक शब्द नहीं हैं। ये प्रयोगोपरांत की स्थापनाएं हैं। ये वही स्थापनाएं हैं, जिनके आधार पर भारत को केंद्र मानकर पृथ्वी संचालित होती थी। समस्त आवर्त एक था जिसको एक ही सात्विक चक्रवर्ती संचालित करता था। आज का परिदृश्य कई शताब्दियों के बाद ऐसी ही परंपरा का निर्माण करता दिख रहा है।
इस तथ्य को कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं। भारत के राष्ट्रपति भवन प्रति दिन शिवार्चन हो रहा है। प्रधानमंत्री निवास में योग, साधना और आराधना की जाती है। गृहमंत्री का आवास शुद्ध सात्विक शाकाहारी और सनातनी परंपरा में अवस्थित है। अधिकांश राज्यों के राजभवनों और मुख्यमंत्री आवासों में भी सात्विक वातावरण है। राजभवन और मुख्यमंत्री आवासों में अधिकांश में सनातन, सात्विक संस्कृति उपस्थित है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के आवास या कार्यालय को तो अलग ही स्वरूप में देखना होगा। स्वयं एक योगी और संत ही विराजमान हैं।
तात्पर्य यह कि भारत का राजनीतिक फलक इस समय सात्विक श्रद्धा से परिपूर्ण दिख रहा है। भारत के सभी तीर्थों में अब प्रतिपल संबंधित तीर्थ देव पूजित और आराधित हैं। सभी के उन्नत स्वरूप के दर्शन लोग कर रहे हैं। विश्व भारत के इस नवीन स्वरूप को देख रहा है, यद्यपि यह स्वरूप अतिप्राचीन है। त्रेता में चक्रवर्ती महाराज दशरथ को धर्मधुरंधर की संज्ञा दी गई थी। धर्म अर्थात जीवन संस्कृति के लिए स्थापित सभी मानविंदुओं पर खरे। धर्म मूल्य था। समस्त सृष्टि और प्रकृति के प्रति कर्तव्य पालन था। समस्त जीवों की सुरक्षा का दायित्व था। मनुष्य को जीवन जीने की कला से परिपूर्ण करने की राजव्यवस्था की जिम्मेदारी थी। राजा को प्रजा की चिंता थी। राज्य बचाने की नहीं बल्कि राज्य को समस्त जीवों, वनस्पतियों, प्रकृति और संस्कृति के साथ सुरक्षित करने की जिम्मेदारी चक्र स्वरूप थी। वैसे ही जैसे कालचक्र सदैव घूम रहा है। वही राज चक्र भी है और धर्म चक्र भी।
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वर्तमान भारत की ओर इस समय दुनिया बड़ी उम्मीद से देख रही है। दुनिया भारत की सात्विक शक्ति से परिचित हो रही है। राजप्रासादों से लेकर नगरों और गांवों तक में व्यापक स्वरूप ले रही सात्विकता अब दुनिया को भा रही है। भारत का प्रत्येक स्वर दुनिया को आकर्षित कर रहा है। विश्व परिदृश्य में भारत का वर्तमान नेतृत्व प्राचीन चक्रवर्ती की भूमिका में दिख रहा है। भारत के भीतर अपने नेतृत्व के प्रति जितना समर्पण और विश्वास है उससे कहीं ज्यादा भारत की भौगोलिक सीमा के बाहर है।
यह सात्विक श्रद्धा की शक्ति है, जिसने नरेंद्र मोदी नाम के नायक को पिछले 10 वर्षों में महानायक बना दिया है। सनातन का महायोद्धा जो अब युगचक्रवर्ती बन चुका है। विश्व का दृश्य इसी चक्रवर्ती को दिखा भी रहा है और इसी से उम्मीदें भी पाले हुए है। सात्विक भारत वैभव के शिखर चूमने को आतुर है। वेद वचन प्रमाणित हो रहा है। मानस की चौपाई का अर्थ भी समझ में आ रहा है और निहितार्थ भी।
वंदे मातरम।।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
(लेखक भारत संस्कृति न्यास के अध्यक्ष और संस्कृति पर्व पत्रिका के संपादक हैं।)
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