1980 Moradabad Riots: देश में दंगे कहीं भी हों, उसमें एक विशेष वर्ग का नाम आ ही जाता है। हालांकि हर दंगे की जांच होती है, लेकिन सरकारें जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक होने से रोक कर इस विशेष समुदाय के लोगों को बचा लेती है। शायद यही वजह है कि दंगाई आतंकी होने के बावजूद भी इस समुदाय के लोगों को शांतिप्रिय बोल दिया जाता है। दंगों की जांच रिपोर्ट को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार (Yogi Sarkar) ने बड़ा फैसला लिया है। योगी सरकार (Yogi Sarkar) यूपी के मुरादाबाद में 1980 में हुए दंगों (1980 Moradabad Riots) की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का फैसला किया है। मुरादाबाद दंगों की जांच के लिए उस समय सक्सेना आयोग (Saxena Commission) का गठन किया गया था। लेकिन सरकारों ने आयोग की रिपोर्ट को सामने नहीं आने दिया। मगर अब राज्य की योगी सरकार (Yogi Sarkar) ने सक्सेना आयोग (Saxena Commission) की रिपोर्ट को विधानसभा में रखने की अनुमति दे दी है।
आयोग की इस रिपोर्ट से जहां कई चेहरे बेनकाब होंगे वहीं सपा के मुरादाबाद सांसद एसटी हसन ने योगी सरकार के इस फैसला की तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि मुरादाबाद दंगों की रिपोर्ट सबके सामने आनी चाहिए। बता दें कि 13 अगस्त, 1980 में ईद की नमाज के बाद मुरादाबाद में हुए दंगों (1980 Moradabad Riots) की रिपोर्ट को यूपी कैबिनेट ने विधानसभा में रखने की अनुमति जबसे दी है, तब से सियासी गलियारों में इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई है। लोग इस दंगे की कहानी और पीड़ितों के बारे में सबकुछ जानना चाहते हैं। आरोप है कि मुरादाबाद में ईद की नमाज के बाद एक धर्म विशेष के लोगों को फंसाने और सियासी फायदे के लिए सांप्रदायिक हिंसा कराई गई थी। इस हिंसा में 83 लोगों की जान चली गई थी और 112 लोग घायल हुए थे। हालांकि सरकारी आंकड़े सच से परे होते है, इसलिए इसमें सिर्फ पांच लोगों की मौत की बात का जिक्र है।
मुस्लिम लीग के तत्कालीन अध्यक्ष दंगों के लिए जिम्मेदार
1980 का मुरादाबाद दंगे ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, लेकिन तब से अब तक किसी भी सरकार ने सक्सेना आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं होने दिया। गौरतलब है कि दंगे के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में आयोग गठित किया था। जांच आयोग ने 20 नवंबर, 1983 को राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। जांच में आयोग ने उस समय मुस्लिम लीग के प्रदेश अध्यक्ष रहे शमीम अहमद खान और उनके समर्थकों के साथ-साथ दो अन्य मुस्लिम नेताओं को दंगे के लिए दोषी पाया था और इनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर सिफारिश भी की थी।
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पुलिस और जिला प्रशासन दोष मुक्त
जानकारी के मुताबिक सक्सेना आयोग को दंगे की जांच में बीजेपी, आरएसएस या किसी हिंदू संगठनों के हिंसा भड़काने में कोई भूमिका या प्रमाण नहीं मिले थे। आयोग ने जांच रिपोर्ट में पीएसी-पुलिस और जिला प्रशासन को भी आरोप से मुक्त कर दिया था। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ज्यादातर मौतें पुलिस फायरिंग में नहीं, बल्कि भगदड़ मचने से हुई थीं। इसलिए पीएसी-पुलिस और जिला प्रशासन को इसके लिए दोषी नहीं माना जा सकता।
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