
पंकज सनातनी
पूरी संभावना थी कि लोकसभा से ‘वक्फ संशोधन बिल’ पास हो जाएगा, लेकिन इसका निहितार्थ क्या है, यह समझने की आवश्यकता है। सबसे पहले आप यह समझिए कि मोदी के राजनीतिक मार्ग की सबसे बड़ी बाधा क्या है? सही से देखा जाए तो मुसलमानों का एकजुट होकर भाजपा के विरुद्ध वोट करना भाजपा के और अधिक विस्तार में वर्तमान की सबसे बड़ी बाधा है। क्योंकि हिन्दू एकमुश्त वोट कभी कर नहीं सकता है। मुस्लिमों की आबादी जिस स्तर से बढ़ रही है, उस हिसाब से वर्ष 2029 में नहीं तो 2034 में मुस्लिम प्रधानमंत्री भारत में बनना तय है।
वक्फ़ संसोधन के अलावा
इधर एक चीज और हुई वह यह कि मोदी ने रमजान में मुसलमानों को ‘सौगात-ए-मोदी’ दिया। स्वाभाविक है कि भाजपा के परम्परागत वोटरों को यह खटकना ही था। मैंने भी आलोचना किया। मौका देखकर साथ ही उन लोगों ने भी विरोध के स्वर में स्वर मिला दिया जो मोदी के शुरू से ही विरोधी रहे हैं। तो एक तरफ ‘सौगात-ए-मोदी’ और दूसरी ओर वक्फ संशोधन बिल। देखने में दोनों एक-दूसरे के विरोधाभाषी लगते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। दोनों का उद्देश्य प्रभावशाली मुस्लिमों और पसमांदा मुस्लिमों में राजनीतिक भेद पैदा करना ही है।
इधर RSS भी मुसलमानों के प्रति नर्म रुख अपनाए हुए है। यह भी इसी दिशा में दीर्घकालिक रणनीति है। अब आप और हम यह कह सकते हैं कि कुछ भी कर लो, मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देने वाले। तो मेरा यह कहना है कि यही बात दलितों के विषय में कभी कहा जाता था, लेकिन भाजपा के प्रयासों से दलित बड़ी संख्या में वोट देने लगे। कुछ समय पहले पिछड़ों के लिए भी यही बात कही जाती थी, लेकिन समय बदला और अब बहुत बड़ी संख्या में पिछड़े बीजेपी को वोट करते हैं। बल्कि अब वह भाजपा के कोर वोटर बन चुके हैं। हो सकता है कि ऐसा हो पाने में लंबा समय लगे, लेकिन RSS और भाजपा ने कई दीर्घकालिक प्रयास किए हैं जो अब फलीभूत हो रहे हैं।
मैं भी भारत के वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था का समर्थक नहीं हूँ, लेकिन इस विषय से अनभिज्ञ नहीं कि यह व्यवस्था लंबे समय तक परिवर्तित नहीं होने वाली। अतः समझदारी यही होगी कि इन परिस्थितियों के बीच ही अपने अनुकूल मार्ग तलाशा जाय। भाजपा का यह प्रयास मुसलमानों के अंदर ध्रुवीकरण करने का है। यह ठीक ऐसे ही है जैसे विभिन्न विपक्षी पार्टियाँ लंबे समय से हिंदुओं के बीच जाति के आधार पर, काल्पनिक शोषक और शोषित के आधार पर करती रही हैं।
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तो हम सब भाजपा को यह क्यों न करने दें। हम विरोध करके क्यों अप्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों को एकजुट रहने में सहायक सिद्ध हों। क्या राजनीतिक और सामाजिक रूप से बंटने और कटने के लिए हिंदू ही बने हैं। विरोध के लिए यह कहा जा रहा है कि भाजपा ने TDP और JDU के सुझावों को मानकर वक्फ संशोधन बिल को निष्प्रभावी बना दिया है। तो फिर यह बताइए कि भाजपा के पास और रास्ता क्या था? सरकार को उनके समर्थन की आवश्यकता पड़ने ही वाली है।
यहां पर प्रश्न यह भी उठ रहा है कि दो बार भाजपा के पास पूर्ण बहुमत थी, तब क्यों नहीं किया? यह बात सच है, लेकिन भाजपा को भी राजनीति करनी है। उसे भी उन मुद्दों को जीवंत रखे रहना है जो लंबे समय तक उसे सत्ता में बनाए रखने में सहायक सिद्ध हों। भाजपा चाहती तो एक ही कार्यकाल में यह सब कुछ निपटा सकती थी लेकिन हिन्दू वोटर इतने कृतघ्न हैं कि वे सारे कृत्य चार दिन में ही भूल जायेंगे। क्योंकि राममंदिर के निर्माण के पश्चात अयोध्या की संसदीय सीट हार जाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।)
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