UP Nikay Chunav: उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव (UP Nikay Chunav) को लेकर सरगर्मी काफी बढ़ गई है। प्रत्याशियों के नामों के एलान के बाद निर्दल से लेकर पार्टी उम्मीदवार सभी अपनी जीत सुनिश्चित कराने में जुट गए हैं। चिलचिलाती धूप में भी प्रत्याशियों का जनसंपर्क अभियान जारी है। यूपी नगर निकाय चुनाव दो चरणों में होने हैं, इसमें पहले चरण में 4 मई को वोट डाले जाएंगे। उत्तर प्रदेश के जालौन की चार नगर पालिका और सात नगर पंचायतों में भी पहले चरण में ही मतदात होने हैं। ऐसे में प्रत्याशी जनता को रिझाने में पूरी ताकत झोक दी है। जालौन की कालपी नगर पालिका (Kalpi Municipality) में भी चुनावी माहौल अपने सुरूर पर है। यह हम इस नगर पालिका (Kalpi Municipality) के इतिहास के बारे में आपको बता रहे हैं। मजे की बात यह है कि कालपी को नगर पालिका का दर्जा देश की आजादी से पहले ही मिल चुका था।
जानकारी के मुताबिक 9 सितंबर, 1868 को अंग्रेजी हुकूमत ने कालपी को नगर पालिका घोषित (Kalpi Municipality) किया था। इसी के साथ ही कोंच के बाद यह जालौन जिले की दूसरी नगर पालिका बनी थी। बुंदेलखंड स्थानीय लोग कालपी को प्रवेश द्वार मानते हैं। कालपी सीट पर बीजेपी, कांग्रेस और बसपा का दबदबा रहा है। हालांकि, वर्ष 1990 के बाद इस सीट पर बसपा और बीजेपी के उम्मीदवारों के बीच ही मुख्य मुकाबला देखने को मिलता है। दिलचस्प बात यह है कि मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद समाजवादी पार्टी का आजतक इस सीट पर खाता नहीं खुला है। जबकि सपा मुस्लिमों के वोट को अपना मानती है। यहां हर चुनाव में चुनाव में सपा को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ता है।
गौरतलब है कि संतोष गुप्ता कालपी नगर पालिका की पहली महिला अध्यक्ष बनी थीं। कालपी को महर्षि वेदव्यास की जन्मस्थली भी माना जाता है। यमुना नदी के तट पर बसी कालपी के बारे में कई कहानियां मशहूर हैं। यहां के लोग का कहना है कि कालपी नगर, प्राचीन काल में ‘कालप्रिया’ नगरी के नाम से जाना जाता था। लेकिन, बाद में इसका नाम बदलकर कालपी हो गया। कालपी के बारे में यह भी दावा किया जाता है कि इसे चौथी शताब्दी में राजा वसुदेव ने बसाया था। कालपी के लोगों का कहना है कि अकबर के मुख्य सलाहकार बीरबल यही के रहने वाले थे। कालपी नगर पालिका का नोटिफिकेशन 9 सितंबर, 1868 को जारी किया गया था। उस वक्त आजादी का आंदोलन अपनी बुलंदी पर था। वर्ष 1944 में पहली बार इस सीट पर अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ था। तब से लेकर अब तक 13 बार यहां अध्यक्ष चुने जा चुके है। इस बार यहां के मतदाता 14वीं बार नगर पालिका अध्यक्ष चुनने जा रहे हैं। इस सीट पर 2 बार महिलाएं भी अध्यक्ष चुनी गई हैं।
इस बार कालपी सीट पर अध्यक्ष पद के लिए 46658 वोटर्स अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनमें 24696 पुरुष और 21962 महिला मतदाता शामिल हैं। इसके साथ ही मतदाता पालिका के 25 वार्ड मेंबर को भी चुनेंगे। कालपी में चुनाव के लिए 22 मतदान केंद्र और 55 मतदेय स्थल बनाये गए हैं। बता दें कि 70 के दशक में इस सीट पर कांग्रेस का वर्चस्व रहा। वहीं 90 के दशक के बाद इस सीट पर बसपा और भाजपा के बीच मुख्य मुकाबला रहता है।
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कालपी सीट का चुनावी इतिहास
आजादी के पहले 21 दिसंबर, 1944 को श्रीप्रकाश जेटली कालपी नगर पालिका अध्यक्ष बने थे। वहीं आजादी के बाद कांग्रेस के जुगराज सिंह अध्यक्ष चुने गए। वर्ष 1953 में कांग्रेस के ही लल्लू राम चौधरी को अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद 1957 से 1959 तक कांग्रेस के रामस्वरूप गुप्ता अध्यक्ष पद पर बने रहे। वर्ष 1964 में लल्लू राम चौधरी फिर से अध्यक्ष चुने गए। जबकि 1969 से 1971 तक मुस्तफा खां अध्यक्ष पद पर आसीन रहे। वर्ष 1988 में जब चुनाव हुए तो इस सीट से कांग्रेस को बेदखल करते हुए निर्दलीय उम्मीदवार जावेद अख्तर एडवोकेट ने जीत का परचम लहराया। वर्ष 1995 में डॉ राम मोहन गुप्ता ने जीत हासिल कर बीजेपी का खाता खोला। वर्ष 2000 में कमर अहमद ने जीत हासिल कर यह सीट बसपा की झोली में डाल दिया। हालांकि, वर्ष 2006 में महिला सीट होने के चलते बीजेपी से संतोष गुप्ता मैदान में उतरीं और वह विजयी रहीं। वर्ष 2017 में यह सीट महिला अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व कर दी गई। इस दौरान बसपा के टिकट पर बैकुंठी देवी चुनाव जीत कर अध्यक्ष बनीं।
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