आचार्य संजय तिवारी
उनको कोई नहीं जानता। कभी नहीं जनता। पूरी पृथ्वी पर घूम-घूम कर अपने राष्ट्र के लिए रस्ते बनाते हैं। देश में देसाई, गुजराल या हामिद जैसे संज्ञा वाले जब सत्ता में आते हैं तो अपने ही उन रणबांकुरों के ठिकाने दुश्मन को भी देकर कुछ करा ही देते हैं। मंगल की रात का यह मंगल भी उन्हीं की बदौलत हो सका। सेना भी वही करती है जो वे तय कर पाते हैं। वह लगातार दुश्मनों की जीभ के अंदर रह कर देश के लिए कुछ खास करते हैं। उनका कार्य अद्भुत होता है। कभी पकड़े या मरे पाए जाते हैं तो देश भी उन्हें सार्वजनिक रूप से अपना नहीं कहता। अद्भुत होते हैं वे जो न तो कभी सम्मान मेडल पाते हैं या कोई सार्वजनिक उपलब्धि उनके हाथ आती है।
ऐसे सभी अज्ञात रणबांकुरों को प्रणाम जिन्होंने खुद को दांव पर लगा कर इस बार भी टारगेट फिक्स किए। जिन्हें कभी कोई श्रेय नहीं दिया जाता, न उनके काम की चर्चा होती है, न कोई हिसाब-किताब। एक धन्यवाद उन अनाम योद्धाओं के लिए तो बनता ही है। थैंक यू RAW.. इतने प्रिसाइज और परफेक्ट टारगेट्स चिन्हित करने के लिए। फ़ौज तो हमारी है ही अचूक, पर आपके सहयोग के बिना ये सब संभव नहीं।
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बालोचिस्तान, अफगानिस्तान, सिंध, पंजाब, खैबर पख़्तून और अननोन गनमैन कितने रूप से आप दुश्मनों को कमजोर करते हो ये बातें न कभी कहीं रिकार्ड्स में आएँगी। न किस्से कहानियों में, न कोई सम्मान ना मेडल, ना ही कोई असाधारण पेचेक। तमाम खतरे, अस्त-व्यस्त निजी जीवन, लेकिन फिर भी आप लोग गुमनाम रहकर देश की जो सेवा कर रहे हो उसके लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद। ये देश सदैव आप अनसंग हीरोज का ऋणी रहेगा। जय हिंद
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