Acharya Vishnu Hari Saraswati
आचार्य श्रीहरि

तुर्की विरोध पर हमारी हैरानी और परेशानी का दूसरा पहलू है। हमारा पहलू यह है जो आपको भी हैरानी-परेशानी में डाल देगा। मैं इस बात से प्रसन्न तो हूं कि तुर्की के खिलाफ स्पष्ट राष्ट्रवाद की ध्वनि सुनी जा सकती है। पर राष्ट्रवाद में विश्वास करते लोग, संस्थान, सरकार तुर्की से मित्रता और सहयोग की रस्सी से बंधे ही क्यो थे? भारत का विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वद्यिालय, मुस्लिमकरण के प्रतीक जामिया मिलिया विश्वविद्यालय आदि शिक्षा जगत के संस्थानों ने तुर्की के साथ मित्रता और सहयोग की संधि से बंधे ही क्यों थे? प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान का तुर्की प्रेम ही क्यों था?

तुर्की के वर्तमान जिहादी और हिंसक तथा पाकिस्तान समर्थक शासक इरदूगान के प्रति आमिर खान का प्रेम और प्रशंसा के जिहाद को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए? अभी तक आमिर खान ने तुर्की के भारत विरोधी करतूत पर मुंह तक नहीं खोला है और उसका राष्ट्र प्रेम जिहादी मानसिकता के नीचे दब गया। वे लाखों भारतीय जो पर्यटन के नाम पर तुर्की जाते हैं और तुर्की की अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए? वर्षा होने पर जिस तरह से सांप बिल से बाहर आ जाता है, मेढक धरती की दरारों से बाहर आकर टर-टर करने लगते हैं, उसी तरह से ऑपरेशन सिंदूर के बाद तुर्की समर्थक शिक्षण संस्थानें, व्यापारी और अन्य लोग अपने आप को राष्ट्रवादी, राष्ट्रप्रेमी घोषित करने में लगे हुए हैं।

तुर्की के साथ अपनी संधियां तोड़ने में लगे हुए हैं, तुर्की विरोध की आंधी आई हुई है, सब कह रहे हैं कि तुर्की ने बहुत ही खतरनाक काम किया है। जिहादी और हिंसक पाकिस्तान का समर्थन किया है। पाकिस्तान की ओर से युद्ध लड़ा है। पाकिस्तान को युद्धक सामग्री दी है, कूटनीतिक स्तर पर भी तुर्की हमारे देश के खिलाफ खतरनाक जिहाद के रास्ते पर चल रहा है। हमें अपना देश प्यारा है। इसलिए हमें तुर्की के साथ सारी संधियां तोड़ देनी चाहिए। सहयोग के वचन समाप्त कर दिये जाने चाहिए। पर्यटकों को भी तुर्की नहीं जाना चाहिए। तुर्की के बदले स्वीटजरलैंड और अन्य यूरोपीय देश जाना चाहिए।

इन उच्च संस्थानों के संचालकों और लोगों से कुछ प्रश्न इस प्रकार से किये जाने चाहिए? क्या आप अनपढ़ और जाहिल किस्म के आदमी हैं। क्या आपको तुर्की की इस्लामिक यूनियनबाजी की जानकारी नहीं थी। क्या आपको तुर्की की पाकिस्तान परस्ती की जानकारी नहीं थी। क्या तुर्की की अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में भारत विरोधी हरकतों की आपको जानकारी नहीं थी? क्या आपको धारा 370 पर तुर्की की जिहादी और हिंसक मानसिकता की जानकरी नहीं थी? क्या इस्राइल के विरोध में तुर्की की मुस्लिम मानसिकता की जानकारी आपको नहीं थी?

यह सभी प्रश्नों पर जेएनयू और जामिया मुस्लिम विश्वविद्यालयों को जानकारी कैसे नहीं होगी? इनके कुलपितयों और प्रोफेसरों को जानकारी कैसे नहीं होगी? उन पर्यटकों को भी जानकारी कैसे नहीं होगी जो शान के साथ तुर्की घूमने जाते हैं और तूर्की की अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं, तुर्की का यशोगान गाते हैं। भारतीय पर्यटकों के पैसों का उपयोग तुर्की भारत के विरुद्ध ही करता है। भारत की वे कंपनियां जो तुर्की की कंपनियों की सहचर हैं और जिनमें वे एक-दूसरे के सहयोगी हैं, व्यापारिक हिस्सेदार हैं। कहने का अर्थ यह है कि सभी यह जानते थे कि तुर्की भारत का घोर विरोधी हैं, भारत का संहार चाहता है, भारत को इस्लामिक देश में तब्दील करना चाहता है। कश्मीर पर पाकिस्तान का पक्ष लेता है, इसके बावजूद ये सभी तुर्की के साथ संबंधों की गहराई में डूबे हुए थे।

तुर्की का भारत विरोधी अपराध बहुत ही घिनौना है, दुस्साहस वाला है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि तुर्की साक्षात भारत के खिलाफ युद्ध में शामिल था। सिर्फ वह पाकिस्तान का मददगार नहीं था बल्कि तुर्की की सेना युद्ध की अग्रिम पक्ति में खड़ी थी और भारत के खिलाफ युद्ध का नेतृत्व कर रही थी। तुर्की ने कुछ हथियार बनाये हैं तो कुछ खरीदे भी है। अपने हथियारों को पाकिस्तान पहुंचाया और अपने हथियार पाकिस्तान सैनिकों को उपलब्ध कराये। खबर तो यह भी है कि पाकिस्तान ने जो जवाबी हमला किया वह चीनी और तुर्की हथियारों के भरोसे ही किया था। खासकर ड्रोन तुर्की ने ही उपलब्ध कराये थे। जानना यह भी जरूरी है कि भारत और पाकिस्तान ड्रोनों के माध्यम से ही एक-दूसरे पर हमले किये थे। अगर तुर्की ने जवाबी कार्रवाई के लिए पाकिस्तान को अपना हथियार नहीं दिया होता और खासकर ड्रोनों की पूरी श्रृंखला नहीं दी होती तो फिर पाकिस्तान दो दिन में ही हार मान लेता।

पाकिस्तान की इतनी क्षमता नहीं थी कि वह स्वयं के बल पर भारत से मुकाबला कर सके या फिर अपना बचाव कर सके। इसका प्रमाण तुर्की ने ही दिया है। तुर्की राष्ट्रपति रजब तैयब इरदूगान ने अपने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि उसने पाकिस्तान और इस्लाम की रक्षा की है। जहां भी इस्लाम पर खतरा आयेगा, हम वहां पर उपस्थित होकर लडेंगे। भारत ने पाकिस्तान पर हमला कर इस्लाम को तौहीन किया था, इसलिए हमनें पाकिस्तान को साथ दिया, सहयोग किया और भारत को पराजित करने में भूमिका निभायी। उसने यह भी कहा कि आगे भी हम पाकिस्तान और कश्मीर पर भारत का विरोध करेंगे। रजब तैयब इरदूगान के कहने का अर्थ यह है कि तुर्की स्थायी तौर पर पाकिस्तान का दोस्त और भारत का दुश्मन बना रहेगा।

आज युद्ध का एक विकल्प आर्थिक बहिष्कार है। जैसे भारत का एक संकल्प पाकिस्तान को और कंगाल बनाना है। उसका माध्यम युद्ध का अन्य विकल्प यानी आर्थिक रूप से कमजोर करना और उसकी समृद्धि के रास्ते को रोकना। भारत ने सिंधु जल समझौता रद्द कर यह संकेत दिया कि वह पाकिस्तान को इसके माध्यम से कंगाल बनायेगा। सिंधु जल समझौते को रद्द कर भारत ने पाकिस्तान की कमर तोड़ने की विसात बिछाई है जिससे पाकिस्तान के होश उड़े हुए हैं, उसके खेतों की समृद्धि मारी जा सकती है। ठीक इसी प्रकार हम तुर्की की आर्थिक कमर तोड़ सकते हैं। आर्थिक कमर तोड़ने के लिए सिर्फ राष्ट्रवाद की प्रखर धारा की आवश्यकता नहीं पड़ेगी? तुर्की के पक्ष में भारत में भी कीड़े-मकौड़े हैं जो इस्लामिक यूनियनबाजी के प्रतीक है और इस्लामिक यूनियनबाजी से ग्रसित हैं। आमिर खान जैसे फिल्मी दुनिया के अन्य हस्तियों का तुर्की प्रेम आसानी से जाने वाला नहीं है, जेएनयू और जामिया मिलिया जैसे शैक्षणिक संस्थानों का भारत विरोधियों के साथ संबंध जोड़ने का जिहाद आसानी से समाप्त नहीं हो सकता है। खासकर भारतीय सिनेमा उद्योग तुर्की में फिल्मी सूट पर आंख मोड़ लेगा, यह कहना मुश्किल है? भारतीय पर्यटक आगे भी तुर्की बहिष्कार का सहचर बनेंगे, इस पर विश्वास करना मुश्किल है।

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भारत सरकार का तुर्की के प्रश्न पर रूख क्या होना चाहिए? भारत सरकार भी तुर्की की करतूत और उसकी इस्लामिक ग्रथि से ग्रसित है। तुर्की का आर्थिक बहिष्कार पर भारत सरकार के पास ही चाकचैबंद कदम उठाने की जिम्मेदारी है। वैसी कपंनियों को हतोत्साहित करने की जरूरत है जो तुर्की संबंधित कंपनियों से किसी न किसी रूप से अभी भी जुड़ी हुई हैं। सिनेमा दुनिया पर तुर्की में फिल्म शुटिंग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, पर तुर्की की यात्रा को लेकर भारतीय पर्यटकों पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। दिल्ली मुबई, अहमदाबाद के हवाई अड्डों ने तुर्की विमानन हवाई ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी सलेबी से संबंध तोड़ दिये हैं। तुर्की के नवनियुक्त राजदूत अली मुरात एरसोय की मान्यता रोक दी गयी है। नागरिकों के सहयोग के बिना भारत सरकार भी तुर्की विरोध और तुर्की की इस्लामिक हिंसक मानसिकता की कमर तोड़ नहीं सकती है। इसलिए तुर्की विरोध की प्रखर धारा बहती ही रहनी चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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