मधुबनी, बिहार: राम झा पिछले छह महीनों से अपने लापता बेटे की तलाश में थानों और दफ्तरों की चौखट पर सिर पटक रहे हैं। वे न बिहार पुलिस से इंसाफ पा सके, न उत्तर प्रदेश से और न ही दिल्ली से। तीनों राज्यों की पुलिस ने अब तक ना एफआईआर दर्ज की, न कोई खोजबीन शुरू की।

क्या है पूरा मामला

बिहार के मधुबनी ज़िले के दलदल गांव के रहने वाले राम झा के बेटे राजू झा 10 फरवरी 2025 को दरभंगा से दिल्ली जाने के लिए निकले थे। मगर अगले ही दिन—11 फरवरी को—राजू गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर मानसिक असंतुलन की स्थिति में देखे गए।

गोरखपुर के शाहपुर थाने की पुलिस ने खुद राम झा को कॉल कर बताया कि उनके बेटे की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, लेकिन फिर भी उसे ट्रेन में बैठाकर दिल्ली रवाना कर दिया गया। तब से लेकर अब तक राजू का कोई पता नहीं चल पाया है।

तीन राज्यों की पुलिस, एक जैसी बेरुख़ी

राम झा ने अपने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए बिहार, यूपी और दिल्ली के कई थानों के चक्कर काटे। लेकिन सभी जगह से एक ही जवाब मिला, यह हमारे क्षेत्राधिकार में नहीं आता। कभी गोरखपुर की पुलिस मधुबनी भेजती है, कभी दिल्ली की पुलिस यूपी की ओर। हर जगह बहाने हैं, कार्रवाई कहीं नहीं।

राम झा कहते हैं

मैं गिड़गिड़ाता रहा, रोता रहा, लेकिन किसी ने रिपोर्ट तक नहीं लिखी। क्या गरीबों के बेटे खोने लायक ही होते हैं?

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पुलिस पर उठते सवाल

जब पुलिस को पहले से युवक की मानसिक स्थिति की जानकारी थी, तो क्या उसे अकेले ट्रेन में भेजना ज़िम्मेदाराना था? जब मामला लापता व्यक्ति का है, तो एफआईआर दर्ज करने में इतना टालमटोल क्यों? क्या न्याय व्यवस्था अब भी सिर्फ रसूखदारों तक सीमित है?

राम झा की अपील

अब थक-हारकर राम झा ने मीडिया और समाज से मदद की गुहार लगाई है। उन्होंने कहा, मेरा बेटा ज़िंदा है या नहीं, मुझे नहीं पता। लेकिन प्रशासन की चुप्पी मुझे रोज़ खा जाती है। आप लोग आवाज़ उठाइए ताकि मैं भी चैन की नींद सो सकूं।

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