RSS centenary celebrations 2025: आरएसएस शताब्दी वर्ष समारोह के तीसरे दिन सवाल-जवाब का सत्र आयोजित हुआ। इस दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत से कई सवाल पूछे गए, जिनका उन्होंने विस्तार से जवाब दिया। एक सवाल में जब पूछा गया कि आधुनिक तकनीक और परंपराओं के संरक्षण की चुनौती को संघ कैसे देखता है, तो भागवत ने कहा, तकनीक का इस्तेमाल करना बुरा नहीं है। मनुष्य का ज्ञान जैसे-जैसे बढ़ेगा, नई तकनीक आती रहेगी। लेकिन ध्यान यह रखना है कि तकनीक मनुष्य की गुलाम रहे, मनुष्य तकनीक का गुलाम न बने।
उन्होंने कहा कि शिक्षा का मकसद केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि संस्कारवान नागरिक तैयार करना होना चाहिए। भागवत ने कहा कि देश की पुरानी शिक्षा प्रणाली को अंग्रेजों के समय खत्म कर दिया गया था। इसलिए नई शिक्षा नीति (NEP) की जरूरत थी। इसमें पंचकोशीय यानी पांच स्तर की समग्र शिक्षा का प्रावधान है। उन्होंने कहा, विदेशों में नौकरियों के लिए ड्रिंकिंग एटिकेट्स सिखाए जाते हैं, लेकिन उसे भारत में सामान्य शिक्षा का हिस्सा बनाना जरूरी नहीं है।
हमें अंग्रेज नहीं बनना, बल्कि अपनी परंपरा के साथ आधुनिक शिक्षा का मेल करना है। भागवत ने कहा कि संगीत, नाट्य और कला जैसे विषयों में रुचि जगाई जानी चाहिए, लेकिन उन्हें अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए।
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गुरुकुल और आधुनिक शिक्षा का संगम
संघ प्रमुख ने सुझाव दिया कि भारत की शिक्षा व्यवस्था को वैदिक काल की 64 कलाओं से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरुकुल पद्धति और आधुनिक शिक्षा का समावेश करना समय की जरूरत है। उन्होंने फिनलैंड की शिक्षा प्रणाली का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां परंपरा और आधुनिकता दोनों का संतुलन है।
परिवार और जनसंख्या पर विचार
अपने संबोधन में भागवत ने जनसंख्या पर भी बात की। उन्होंने कहा कि कम से कम तीन संतानें होनी चाहिए। जिनकी तीन संतानें नहीं हुईं, वे धीरे-धीरे लुप्त हो गए। तीन बच्चों से परिवार का स्वास्थ्य बेहतर रहता है और बच्चे एडजस्ट करना भी सीखते हैं।
अखंड भारत की बात
मोहन भागवत ने कहा कि विभाजन के समय संघ ने इसका विरोध किया था, लेकिन तब उनकी शक्ति कम थी। उन्होंने कहा, अखंड भारत राजनीतिक विचार नहीं है, बल्कि सबकी उन्नति और शांति का मार्ग है। एक न एक दिन यह सपना पूरा होगा।
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