Narendra Bhadauria
नरेन्द्र भदौरिया

Takshashila: अयोध्या के राजा श्रीराम के भाई भारत के दो पुत्र थे तक्ष और पुष्कल। तक्ष के ही नाम पर तक्षशिला विश्वविद्यालय बना था। जो ईस्वी सन प्रारम्भ होने के 700 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आ चुका था। यह विश्वविद्यालय इतना विराट था कि अब तक संसार के किसी कोने में इतने विशाल भूखण्ड पर कोई विश्वविद्यालय नहीं बना है। यह भूखण्ड 1947 से इस्लामिक देश पाकिस्तान के अधिकार में है। सारे भूखण्ड में विशाल तक्षशिला के भग्नावशेष उपेक्षित पड़े हुए हैं। इनमें भवनों की विशाल दिवालें और उनकी नींव स्थल देखकर लोग चकित रह जाते हैं। पाकिस्तान सरकार इन भग्नावशेषों की लूट होते देखती रहती है। ईंटें, पत्थर उखाड़कर ले जाना सामान्य बात है। इन भग्नावशेषों को देखकर शोध करने वाले संसार के नाना देशों के लोग आते हैं। केवल भारत के किसी शोधार्थी को वहां तक पहुंचने की अनुमति अब नहीं दी जाती। यह प्रतिबंध जियाउल हक के समय लगाया गया था।

पाकिस्तान सरकार का कहना है कि भारत का उद्देश्य तक्षशिला को श्रीराम, भरत और सनातन हिन्दू संस्कृति से जोड़ना है। यह बात हमारे देश को स्वीकार नहीं है। वस्तुत: पाकिस्तान के अनेक इस्लामिक विद्वानों ने आपत्ति की थी कि तक्षशिला की बातें उछलने से पाकिस्तान का स्वतन्त्र अस्तित्व कभी उभर नहीं पाएगा। इसलिए या तो तक्षशिला के अवशेष समाप्त कर दिये जाय यह फिर वहां ऐसे शोधार्थी ही जाने पाये जिनकी साहनुभूमित हिन्दू संस्कृति से न हो।

भारत सरकार ने धरोहरों में नहीं दिखाई रुचि

पाकिस्तान की इसी सोच के आधार पर यदा कदा यूरोप के देशों के पुरातत्ववेदताओं को वहॉ जाने दिया जाता है। जो उसकी निर्मिति की कला को देखकर लौट आते हैं। तक्षशिला से जुड़ा साहित्य पाकिस्तान में सुरक्षित नहीं रखा गया। जबकि विभाजन के पूर्व तक उसके अनेक अवशेष सुरक्षित रखे गये थे। इनमें वैदिक साहित्य के साथ ही बड़ी संख्या में शोधपूर्ण पुस्तकें होने की बात कही गई थी। उस समय अंग्रेज सरकार ने भारत और पाकिस्तान को दोनों देशों के प्राचीन स्थलों के उपलब्ध रेकॉर्ड संकलित करके उनकी दो प्रतियां बनायी थीं।

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एक सूची भारत को तो दूसरी पाकिस्तान को सौंपकर अवगत कराया गया था कि उनकी प्राचीन धरोहर किसे किस रूप में दी गई है। भारत के प्रधानमंत्री को मिली सूची में तक्षशिला का सारा विवरण होने के साथ प्राचीन मन्दिरों, गुरुद्वारा और अन्य प्राचीन धरोहरों का विवरण मिला था। तक्षशिला अथवा हिन्दू संस्कृति से जुड़े पाकिस्तान में रहे मन्दिरों का कोई विवरण भारत सरकार ने जनता से कभी साझा नहीं किया। इससे स्पष्ट है कि नेहरू सरकार की नीयत अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने की नहीं रही। परिणाम यह कि भारत ने कभी पाकिस्तान से तक्षशिला या अन्य विशिष्ट धरोहरों के बारे में कोई जानकारी नहीं ली और न ही अपने विशेषज्ञों को वहॉ जाकर शोध करने की अनुमति दिलायी।

60 विद्याओं के शिक्षण के साथ होता था शोध

तक्षशिला का स्थल रावलपिण्डी नगर से 18 किमी की दूरी पर 10 किलो मीटर से अधिक की परिधि में फैला हुआ है। यह विश्वविद्यालय 60 विद्याओं के शिक्षण के साथ शोध कार्यों के लिए निर्मित हुआ था। मध्य भाग में इसका केन्द्रीय अधिष्ठान था। सभी 60 विषयों के लिए अलग अलग बड़े परिक्षेत्र थे जिनमें शिष्यों की शिक्षण कक्षों के साथ पुस्तकालय, शोध केन्द्र, क्रीडा स्थल एवं अन्य गतिविधियों के परिसर थे।

आयुधों की शोध पर सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था तक्षशिला में थी। वैदिक साहित्य का सम्पूर्ण वांग्यमय जिनमें वेद, पुराण, उपनिषद अर्थात आगम और निगम दोनों प्रकार के शास्त्र यहां बड़े विधान से सुरक्षित रखे गये थे। शिक्षण का प्रबन्धन ऋषियों मुनियों के साथ पाण्डित्य प्राप्त विद्वान करते थे। सभी विषयों के शिक्षण के उपरान्त शिक्षार्थियों को सप्ताह में दो दिन शास्त्रार्थ के लिए अलग अलग विराट कक्षों में एकत्र होना पड़ता था।

तक्षशिला की स्थापना से पहले श्रीराम के भाई भरत के जीवन की एक घटना बहुत उल्लेखनीय है। एक बार भरत के नाना के देश कैकेय पर गान्धारों ने आक्रमण कर दिया और बहुत क्षति पहुंचायी। कैकेय देश का बड़ा भूभाग गान्धारों ने छीन लिया था। सूचना पाकर श्रीराम के भाई भरत सेना लेकर अपने नाना की सहायता के लिए पहुंचे और गान्धारों को मार भगाया। उनसे कैकेय राज्य को छीन लिया। इतना ही नहीं गान्धारों के राज्य सहित कई अन्य कबीलों को उस क्षेत्र से दूर ढकेल दिया।

भरत पुत्र राजा तक्ष ने कराया था निर्माण

वर्तमान कजाकिस्तान से अफगानिस्तान, गान्धार, पाकिस्तान तक फैला यह भू भाग भरत को मिल गया। भरत और माण्डवी से दो पुत्र थे। बड़े बेटे का नाम था तक्ष और छोटे का पुष्कल। भरत के बाद पूरा राज्य दो भागों में बट गया। तक्षखण्ड और पुष्कलावती। वाल्मीकि रामायण और वायुपुराण में इसका वर्णन है। तक्ष का राज्य तक्षखण्ड बहुत समृद्ध और विकसित हुआ। यह सिन्धु नदी के पूर्व में स्थित था। तक्ष के बसाये तक्षखण्ड का वर्तमान नाम ताशकन्द है। इसके राजा सनातनी थे। उनके बाद यहॉ मतान्तरण हुआ। सनातन संस्कृति का लोप हो गया। बाद के वर्षों में इस्लाम ने इस क्षेत्र के सभी पुण्य स्थलों को क्षतिग्रस्त किया। हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों के प्रतीक स्थलों को नष्ट किया।

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भरत पुत्र राजा तक्ष बहुत प्रतापी थे। उनके समय इस क्षेत्र की बहुत प्रगति हुई। उन्हीं के समय में ही एक पूर्ण विकसित नगर बसाया गया। जिसका नाम पड़ा तक्षशिला। यहॉ वैदिक शिक्षा का विश्व का सबसे बड़ा केन्द्र विकसित हुआ। जिसे तक्षशिला नाम मिला। यह केन्द्र ज्ञान का अपने समय का सबसे श्रेष्ठ केन्द्र सिद्ध हुआ। यहीं बाद में अशोक के कालखण्ड में वेदों के साथ बौद्ध शिक्षा का केन्द्र भी स्थापित हो गया। तक्षशिला नगर जहॉ बसा था वहॉ तीन बड़े राजमार्ग (पथ) आकर मिलते थे। पहला उत्तर पथ (आज का ग्रैण्ड ट्रैंक रोड) इसे अंग्रेजों के काल में रायल रोड भी कहा गया। उत्तर पथ की स्थापना में तक्ष की बड़ी भूमिका थी। यह पथ बाद में मगध साम्राज्य से पाटिलिपुत्र में जुड़ गया। भारत का अति प्राचीन पथ है। शेरशाह सूरी ने इसका नवीनीकरण किया। दूसरा कैकिशा- पुष्कलावती मार्ग। वर्तमान नार्थ वेस्टर्न रोड-जो अब पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम को जोड़ने वाला प्रमुख मार्ग है। तीसरा सिन्धुपथ जिसे बाद में सिल्क रोड नाम दे दिया गया।

प्राचीन भारत का धरोहर है तक्षशिला

सिन्धु क्षेत्र से चीन और कश्मीर होकर कन्याकुमारी तक भारत के दक्षिण भाग को जोड़ने वाला मार्ग सिन्धुपथ था। मुगलों और फिर अंग्रेजों ने सिन्धुपथ के इतिहास को प्राचीन हिन्दू साम्राज्य के चिन्ह मिटाने के उद्देश्य से सिन्धुपथ का नाम रेशम मार्ग फिर सिल्क रोड कर दिया। इसी सिन्धुपथ से निकलकर कश्मीर से चीन के सिंगझियान प्रान्त तक एक मार्ग जाता है। इसे अब कराकोरम हाईवे कहा जाता है। इस दुर्गम क्षेत्र में यह समस्त विकास भरत के वन्शजों की देन है। तक्षशिला विश्वविद्यालय भी उन्हीं के वन्शजों की उत्पत्ति है।

पाकिस्तान के मुसलिम यद्यपि अपने पूर्वजों से नाता तोड़ने के हठ पर अड़े हैं। वह नहीं समझ रहे कि एक विराट संस्कृति से टूटकर जिस मजहब से जुड़े हैं, उसने उन्हें किस गर्त में पहुंचा दिया। 1980 में यूनेस्कों ने तक्षशिला तिराहे को विश्व का प्राचीनतम सम्पर्क स्थल घोषित किया है। आश्चर्य की बात यह है कि पाकिस्तान सरकार इससे उत्साहित नहीं हुई। क्योंकि उसे लगा कि यह प्राचीन भारत धरोहर को बढ़ावा देने वाली बात है।

अतीत को समेटे हुए हैं खंडहर

तक्षशिला विश्वविद्यालय का वर्तमान स्वरूप खण्डहरों में परिवर्तित होकर अपने स्वर्णिम अतीत को समेटे हुए है। सम्पूर्ण क्षेत्र में इस्लाम ने बहुत बर्बादी की। बहुत नुकसान किया। यह सही है कि तक्षशिला को सबसे पहले हूण जातीय कबीलों के हमले से क्षति पहुंची थी। हूणों से पहले शक जातीय समूह भी वहॉ पहुंचे थे। सभी इतिहासकार इस बात पर सहमत नहीं हैं कि शकों ने भी तोड़फोड़ की थी। अधिकांश का मानना है कि उस समय के हिन्दू वीरों और छात्र समूहों ने उन्हें मार भगाया था। हूणों ने तिब्बत से आकर प्रारम्भिक आक्रमण में क्षति पहुंचायी थी। खदेड़े जाने के बाद सिन्धु के उस पार भाग गये थे। शक और हूण दोनों भारत के कई भागों में पहुंचे इनमें से अधिकांश सनातन संस्कृति में दीक्षित होकर घुल मिल गये।

सिकन्दर के पहुंचने से पहले फाह्यान यहां आया, उसने लिखा कि शिक्षा के कुछ केन्द्र बहुत क्षतिग्रस्त थे, जिन्हें संवारा जा रहा था। कुछ पुस्तकों में चीन के कुछ अन्य बौद्ध यात्रियों के हवाले से कहा गया कि इस्लाम के कुछ जत्थों ने यहॉ बाद में बहुत उत्पात मचाया। कुछ का कहना है कि सिकन्दर के बाद उसकी भटकी हुयी कुछ सेना यहॉ तोड़फोड़ करने आयी थी। वस्तुत: मगध और अन्य राजाओं के बीच तालमेल नहीं रह पाने के कारण तक्षशिला को बड़ी हानि हुई। बची हुई कसर इस्लाम के आक्रान्ता लुटेरों ने पूरी कर डाली। भारत विभाजन में यह इस्लामी क्षेत्र में पड़ गया। परिणाम स्वरूप तक्षशिला अब तक अभागी दशा में है।

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तक्षशिला में विश्वस्तरीय केंद्र थे

कुछ विद्धानों का कहना है कि तक्षशिला को विश्वविद्यालय कहना इसे कम आंकने जैसा है। यह विभिन्न विद्याओं, विधाओं के लिए अलग अलग विश्वविद्यालयों का समूह था। यहॉ दर्शन, अर्थशास्त्र, सैन्य विज्ञान, ज्योतिष भाषा विज्ञान, विविध कलाओं के अलग अलग विश्वस्तरीय केन्द्र थे। वेदों के अध्ययन के लिए अलग केन्द्र थे। तक्षशिला विश्व का प्राचीनतम शिक्षा केन्द्र था। आज इस क्षेत्र में पाकिस्तान ने उद्योग लगा रखे हैं। बड़े कारखाने हैं। बस्तियां हैं। आज उन्हीं मार्गों का प्रयोग किया जा रहा है जो प्राचीन काल में बने थे।

तक्षशिला को संवारने में चाणक्य ने दिया योगदान

महान अर्थशास्त्री चाणक्य ने इस विश्वविद्यालय में कुछ बड़ी चीजे जोड़ी थीं। पहला युद्ध शास्त्र के सभी उपांगों पर शोध करना। दूसरा अर्थशास्त्र और वाणिज्य जैसे विषयों पर विशेषज्ञों को गढ़ना। चाणक्य ने यहां नौ विभागों को समय समय पर अपने कौशल से संवारा। उस काल के नवीनतम आयुध की निर्माणशाला भी चाणक्य ने स्थापित करायी थी। राजनीति और कूटनीति के साथ गुप्तचरों के प्रशिक्षण के निमित्त भी यह बड़ा केन्द्र था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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