Kavita: सच्चा समाजवाद
सच्चा समाजवाद एक अंधा, एक लंगड़ा, दोनों ने एक-दूसरे को पकड़ा। दोनों साथ-साथ चलने लगे, एक-दूसरे पर मरने लगे। बातों के बताशे फोड़ने लगे, राष्ट्रवाद का गला मरोड़ने लगे। उनमें…
सच्चा समाजवाद एक अंधा, एक लंगड़ा, दोनों ने एक-दूसरे को पकड़ा। दोनों साथ-साथ चलने लगे, एक-दूसरे पर मरने लगे। बातों के बताशे फोड़ने लगे, राष्ट्रवाद का गला मरोड़ने लगे। उनमें…
स्त्रियों की स्थिति अब बहुत बेहतर हो चुकी है जब-जब मुझे ऐसा कोई भ्रम होने लगता है मैं चला जाता हूँ सार्वजनिक शौचालय जहां दरवाज़ों के पीछे अनजान स्त्रियों के…
सभी कविताएं पुष्पों की भांति कोमल नहीं होती कुछ कविताएं खूंखार कुत्ते की भांति काटने को दौड़ती हैं उनके अंदर करुणा नहीं आक्रोश भरा होता है। कविताएं सीधी गायों की…
तुम्हारी भीड़ बन लूंगी मुझे तुम भीड़ कर लेना। मगर नजदीक घर के तुम। अपना नीड़ कर लेना।। सुना था जब के तुम आए सभी को प्यार से देखा। कहीं…
जिसके जीवन में राष्ट्र प्रथम, जिसके उर में था पला ताप। क्षण-क्षण राष्ट्र समर्पित था जो, रण बांकुरा अमर राणा प्रताप।। सब सुविधाएं त्याग जो बढ़ा, झुका न टूटा कभी…
आओ चलें गांव में अपने, मिल कर घर द्वार सजाएं। मिलें परस्पर सब नर नारी, ग्रामोत्सव सुखद मनाएं।। यहाँ विरासत पुरखों की है, पितृ कर्म भूमि य़ह मेरी। स्मृतियों की…
कर्तव्य भाव से भरा रहे हर क्षण-पल जीवन सबका। क्रिया शीलता रहे सदा हो सृजनात्म भाव मन का।। निष्क्रिय जीवन से रहें दूर सद कर्म सदा वे कर पायें। वह…
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था व्यक्ति को मैं नहीं जानता था हताशा को जानता था।
रोटियाँ, चटनी और कांदों के साथ माँ थैले में रख देती है दो जोड़ी कपड़ों में तह करके आशा पश्चिम की ओर मुँह कर करती है तिलक लगाती है चावल…
नववर्ष द्वार है खड़ा तुम्हारे, प्रकृति ने उसे सजाया है। है पृथ्वी का प्राकट्य दिवस, जग को बतलाने आया है।। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर्व, श्री सम्पदा साथ में लाया है।…