Poem: ससुरी गरमी
ससुरी गरमी खाय रही है। दिन मा दुइ-दुइ बार नहाई लागै बम्बा मा घुसि जाई। जब देखो तब बिजुरी गायब, ओकरे संगे पानिउ गायब। झाड़ू-पोंछा अबै लगावा, आंधी चली, दंड…
ससुरी गरमी खाय रही है। दिन मा दुइ-दुइ बार नहाई लागै बम्बा मा घुसि जाई। जब देखो तब बिजुरी गायब, ओकरे संगे पानिउ गायब। झाड़ू-पोंछा अबै लगावा, आंधी चली, दंड…
Environment: वातावरण में तनाव है। पृथ्वी का ताप बढ़ रहा है। सभी जीव व्यथित हैं। प्रकृति में अनेक जीव हैं। सब शुद्ध प्राण वायु पर निर्भर हैं। प्राण वायु का…
बाढ़त गर्मी छुटत पसीना, भीजत देह के कोना कोना! पारा चढ़त चुनावी गर्मी, भला दोस्त से दुश्मन होना। तीन जून तक बढ़ी है गर्मी, चार के भीजी खटिया बिछौना! वकरे…
लखनऊ: अप्रैल के जाते जाते तापमान भी अपने शिखर पर पहुंच चुका है। चिलचिलाती धूप और गर्म हवाओं के चलते अप्रैल माह में ही पारा 43 डिग्री के पार चला…