कलम क्रोध में कवि से
कवि! तू झूठा है, यह बात मैं, डंके की चोट पर कहती हूँ! तेरी विरह गाथा के पीछे, मैं एक सचाई देखती हूँ। मैंने तेरा हाल पता किया, तेरे घर…
कवि! तू झूठा है, यह बात मैं, डंके की चोट पर कहती हूँ! तेरी विरह गाथा के पीछे, मैं एक सचाई देखती हूँ। मैंने तेरा हाल पता किया, तेरे घर…
भटक गए हम राहों में, मंजिल का ठिकाना नहीं था। ले गई जिंदगी उन राहों में, जहां हमें जाना नहीं था। कुछ क़िस्मत की मेहरबानी, कुछ हमारा कसूर था। हमने…
पैदा होते ही माँ की कोख से गिरा घुटनों के बल चलते हुए गिरा दौड़ते हुए गिरा सड़क पर साइकिल चलाते हुए गिरा ग्यारहवीं में फेल होने पर समाज की…