Kavita: चटनी और कांदों के साथ माँ

रोटियाँ, चटनी और कांदों के साथ माँ थैले में रख देती है दो जोड़ी कपड़ों में तह करके आशा पश्चिम की ओर मुँह कर करती है तिलक लगाती है चावल…

Kavita: मेरे गाँव! जा रहा हूँ दूर-दिसावर

मेरे गाँव! जा रहा हूँ दूर-दिसावर छाले से उपने थोथे धान की तरह तेरी गोद में सिर रख नहीं रोऊँगा जैसे नहीं रोए थे दादा दादी के गहने गिरवी रखते…

Kavita: मेरी मां को

मेरी मां को तस्वीर के लिए मुस्कुराना नहीं आता मैं जैसे ही खोलती हूं कैमरा वो झेंपने लगती हैं शर्माती हैं आठवीं कक्षा की लड़की सी दो तीन बार पल्लू…

Kavita: नववर्ष द्वार है खड़ा तुम्हारे

नववर्ष द्वार है खड़ा तुम्हारे, प्रकृति ने उसे सजाया है। है पृथ्वी का प्राकट्य दिवस, जग को बतलाने आया है।। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर्व, श्री सम्पदा साथ में लाया है।…

Kavita: दिल अंदर दिलदार है अंदर

दिल अंदर दिलदार है अंदर, प्रीतम प्रेमी प्यार है अंदर। परमपुरुष की सारी रचना, साथ में रचनाकार है अंदर। विष्णु अंदर ब्रह्मा अंदर, शिव अंदर शिवद्वारा अंदर। नवदुर्गा ग्रह चंद…

Kavita: चल अंदर

सूरज बाहर, तारे बाहर, पवन अगन जल चंदा बाहर। महल अटारी, नौकर चाकर, धन-दौलत का धंधा बाहर। बप्पा बाहर अम्मा बाहर, नाना-नानी-मम्मा बाहर। बेटी-बेटा भगनी भाई, कामी और निक्कमा बाहर।…

Kavita: मुनिया कॉलेज जाना चाहती थी

मुनिया कॉलेज जाना चाहती थी मगर “गोल-गोल फूली हुई रोटी बनाना सीख लेना भी कोई पढ़ाई लिखाई से कम है क्या?” ऐसा आजी कहती है। बबुआ सपना बहुत देखता है!…

Kavita: बहुत उदास मन

बहुत उदास मन नहीं लिख पाता सुंदर कविताएँ ना ही गुनगुना पाता है कोई मधुर गीत जो दे सके सुकून अंतरात्मा को बहुत उदास मन चाहता है मुक्ति स्वयं की…

Kavita: मैं जिसे पूरा समंदर चाहिए था

मैं जिसे पूरा समंदर चाहिए था एक क़तरा भी नहीं मिला मुझे ख्वाहिश थी खुद को ढूंढ लाने की फिर आइना भी, टूटा मिला मुझे ना मिलता तू तो जब्त…

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